August 1, 2025 7:21 AM

शेयर बाजार में हाहाकार: खुलते ही डूबे 5 लाख करोड़ रुपये, ट्रंप के टैरिफ ऐलान से मचा भूचाल

  • बाजार खुलते ही निवेशकों के रुपए 5 लाख करोड़ से अधिक मूल्य की संपत्ति कुछ ही मिनटों में डूब गई

नई दिल्ली। वैश्विक आर्थिक तनाव और अमेरिकी नीतियों की आंधी ने गुरुवार को भारतीय शेयर बाजार को हिला कर रख दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से आयात होने वाले उत्पादों पर 25 फीसदी टैरिफ लगाने की धमकी का सीधा असर घरेलू निवेश माहौल पर पड़ा। नतीजा यह हुआ कि बाजार खुलते ही निवेशकों के रुपए 5 लाख करोड़ से अधिक मूल्य की संपत्ति कुछ ही मिनटों में डूब गई। सुबह के कारोबार में बीएसई सेंसेक्स और एनएसई निफ्टी में तेज गिरावट दर्ज की गई। सेंसेक्स लगभग 604 अंकों की गिरावट के साथ 80,800 के आसपास पहुंच गया, जबकि निफ्टी 230 से ज्यादा अंक टूट गया। केवल 15 मिनट के भीतर निवेशकों की संपत्ति रुपए 5.5 लाख करोड़ घटकर रुपए 453.35 लाख करोड़ रह गई।

अमेरिकी टैरिफ नीति का भारतीय बाजार पर सीधा प्रभाव

ट्रंप के इस टैरिफ ऐलान का असर सिर्फ शेयर बाजार तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इससे वैश्विक व्यापार में अस्थिरता और अनिश्चितता का संकेत मिला है। भारत के लिए अमेरिका एक बड़ा निर्यात बाजार है और टैरिफ में 25% की वृद्धि से भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धा सीधे तौर पर प्रभावित होगी। इससे न केवल भारत की निर्यात नीति पर असर पड़ेगा, बल्कि विदेशी निवेशकों के मन में भी संदेह पैदा होगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि ट्रंप का यह कदम सिर्फ एक आर्थिक चेतावनी नहीं बल्कि भू-राजनीतिक दबाव की रणनीति भी है, जिसका मकसद भारत की व्यापार नीति पर दबाव बनाना हो सकता है।

किन सेक्टरों में दिखा सबसे अधिक दबाव

बाजार की गिरावट सेक्टोरल स्तर पर भी व्यापक रही। निफ्टी ऑटो इंडेक्स में लगभग 1% की गिरावट देखी गई, जबकि बैंकिंग, धातु, रियल्टी और फार्मा सेक्टर भी लाल निशान में चले गए। आईटी और एफएमसीजी जैसे पारंपरिक रक्षात्मक सेक्टर भी दबाव से अछूते नहीं रहे। विश्लेषकों के अनुसार, ऑटो सेक्टर पर दोहरी मार पड़ी है — एक ओर आयात महंगा होने की आशंका, दूसरी ओर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से लागत में इजाफा।

अमेरिकी फेडरल रिजर्व की नीति भी बनी गिरावट की वजह

ट्रंप के बयान के अलावा अमेरिकी फेडरल रिजर्व की मौद्रिक नीति भी बाजार को प्रभावित करने वाला एक बड़ा कारक रही। लगातार पाँचवीं बैठक में ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया गया। फेड चेयरमैन जेरोम पॉवेल की ओर से दरों में कटौती को लेकर जो अनिश्चितता जताई गई, उसने वैश्विक निवेशकों की धारणा को और कमजोर किया। यह संकेत कि “सितंबर में भी कटौती की संभावना कम है” — बाजार के लिए नकारात्मक संदेश रहा।

कच्चे तेल की कीमतों में स्थिरता, लेकिन चिंता कायम

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते सप्लाई लाइन पर संकट मंडरा रहा है, और इसके बीच अमेरिकी राष्ट्रपति की धमकियों ने वैश्विक ऊर्जा बाजार को और अस्थिर कर दिया है। हालांकि ब्रेंट क्रूड की कीमतें गुरुवार को लगभग 73 डॉलर प्रति बैरल पर स्थिर रहीं और डब्ल्यूटीआई 70 डॉलर से नीचे रहा, लेकिन यह स्पष्ट है कि यदि टकराव और गहराया, तो तेल की कीमतें फिर उछाल मार सकती हैं। कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से भारत जैसे आयात-निर्भर देशों की आर्थिक स्थिरता पर सीधा असर पड़ता है। तेल महंगा हुआ तो महंगाई बढ़ेगी, जिसका असर रिजर्व बैंक की नीति और आम आदमी की जेब पर होगा।

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram