शरद पूर्णिमा 2025 : खीर बनाने की परंपरा, पूजा विधि, कथा और शुभ उपाय
नई दिल्ली, (स्वदेश ज्योति)।
हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह रात केवल चंद्र दर्शन या खीर खाने की परंपरा भर नहीं, बल्कि प्रकृति, आध्यात्मिकता और औषधीय ऊर्जा के अद्भुत संगम का पर्व है। माना जाता है कि इस रात चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होता है और उसकी किरणों में अमृत तत्व का संचार होता है, जो शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करता है।
🌕 शरद पूर्णिमा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व
शरद पूर्णिमा का उल्लेख कई पुराणों — जैसे स्कंद पुराण, पद्म पुराण और गरुड़ पुराण — में मिलता है। कहा गया है कि यह वह रात है जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी सबसे कम होती है, और उसकी रोशनी में सात्विक तरंगें प्रवाहित होती हैं।
शास्त्रों में इसे कौमुदी उत्सव भी कहा गया है, जिसका अर्थ है — चंद्रमा की शीतलता से भरी रात।
मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और जो व्यक्ति श्रद्धा, भक्ति और पवित्र भाव से उनका पूजन करता है, उसे धन, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि का वरदान प्राप्त होता है।

🍚 खीर की परंपरा और उसका वैज्ञानिक पक्ष
शरद पूर्णिमा की रात को खीर बनाकर चांदनी में रखने की परंपरा हजारों साल पुरानी है। धार्मिक मान्यता है कि चंद्रमा की किरणों में औषधीय गुण होते हैं। जब दूध, चावल और चीनी से बनी खीर पर ये किरणें पड़ती हैं, तो वह अमृतमयी ऊर्जा से युक्त हो जाती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से भी, इस समय वातावरण में शीतलता और नमी के कारण चंद्र किरणों में यूवी और औषधीय तरंगों की मात्रा अधिक होती है। यह किरणें भोजन के सूक्ष्म अणुओं में सकारात्मक परिवर्तन करती हैं, जिससे वह स्वास्थ्यवर्धक बन जाता है।
🙏 शरद पूर्णिमा की कथा : मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु का आशीर्वाद
पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय मां लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा — “प्रभु, मैं चाहती हूं कि धरती पर ऐसे दिन अवश्य हों जब लोग अपनी नकारात्मकता को त्यागकर पवित्र भाव से मेरी आराधना करें।”
भगवान विष्णु ने कहा — “आश्विन मास की पूर्णिमा को मैं तुम्हें यह वर देता हूं कि इस दिन जो भी व्यक्ति स्नान कर, व्रत रखकर और खीर का प्रसाद अर्पित करेगा, उसे तुम्हारा आशीर्वाद प्राप्त होगा।”
तभी से शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा कहा जाने लगा — जिसका अर्थ है कौन जाग रहा है? यानी वह रात जब मां लक्ष्मी स्वयं घूमकर देखती हैं कि कौन जागकर उनका पूजन कर रहा है।

🌸 क्या करें शरद पूर्णिमा की रात
शरद पूर्णिमा की रात को चंद्रमा की पूजा के साथ-साथ कई आध्यात्मिक और स्वास्थ्यवर्धक उपाय किए जाते हैं।
🕯️ 1. खीर बनाकर चांदनी में रखें
- ताजे दूध, धुले चावल और शुद्ध चीनी या गुड़ से खीर बनाएं।
- इसे चांदी या मिट्टी के पात्र में रखें।
- ऊपर से पतले कपड़े या जाली से ढकें ताकि चंद्रमा की किरणें सीधे उस पर पड़ सकें।
- यह प्रक्रिया लगभग 1–2 घंटे तक चले।
🙌 2. मन को शांत रखकर खीर बनाएं
- कहा जाता है कि खीर बनाते समय व्यक्ति का मन शांत और निर्मल होना चाहिए।
- कोई गुस्सा, क्रोध या नकारात्मकता नहीं होनी चाहिए।
- संभव हो तो मंत्र जप या भजन करते हुए खीर तैयार करें।
💫 3. मां लक्ष्मी का पूजन करें
- रात्रि 12 बजे चंद्रमा की पूजा करें।
- मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाएं।
- खीर का प्रसाद अर्पित करें और लक्ष्मी मंत्र का जाप करें —
“ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः”
🌼 4. ध्यान और जागरण
- शरद पूर्णिमा की रात जागरण करने का भी विशेष महत्व है।
- कहा गया है कि जो इस रात भक्ति में जागता है, उसे मां लक्ष्मी स्वयं दर्शन देती हैं।
- ध्यान या जप करते हुए यह रात बिताना अत्यंत शुभ माना जाता है।
🪔 क्या उपाय करें शरद पूर्णिमा के दिन
- धन लाभ के लिए:
मां लक्ष्मी के सामने 11 कौड़ियां रखें, उन पर हल्दी और अक्षत चढ़ाएं। अगले दिन उन्हें तिजोरी में रखें। - स्वास्थ्य के लिए:
पूर्णिमा की चांदनी में 10–15 मिनट ध्यान लगाएं, यह मानसिक शांति और ऊर्जा देती है। - वैवाहिक जीवन की सुख-शांति के लिए:
पति-पत्नी साथ में चंद्रमा को अर्घ्य दें और खीर का प्रसाद ग्रहण करें। - संतान सुख के लिए:
इस दिन भगवान कृष्ण और राधा रानी की पूजा विशेष फलदायी मानी जाती है।
🌕 चांदनी में अमृत स्नान का रहस्य
प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की रोशनी में बैठना प्राकृतिक औषधि के समान है। यह शरीर के तापमान को संतुलित करता है, मन को शीतलता देता है और नींद संबंधी समस्याओं को दूर करता है।
इसीलिए लोग इस रात खुले आसमान के नीचे लेटकर चांदनी स्नान का आनंद लेते हैं।

🌸 आध्यात्मिक संदेश
शरद पूर्णिमा केवल पूजा का पर्व नहीं, बल्कि आंतरिक शुद्धता और संतुलन का प्रतीक है। यह हमें सिखाती है कि जैसे चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से पूर्ण होकर सम्पूर्णता का प्रतीक बनता है, वैसे ही मनुष्य को भी अपनी सोलह गुणों — करुणा, प्रेम, संयम, क्षमा, नम्रता, त्याग, और भक्ति — से पूर्ण बनने का प्रयास करना चाहिए।
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