- मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के एक सरकारी स्कूल में ऐसा ही भयावह हादसा होते-होते टल गया
शहडोल । देशभर में सरकारी स्कूलों की जर्जर होती इमारतें अब बच्चों की जान पर भारी पड़ रही हैं। राजस्थान में स्कूल की छत गिरने की घटना के कुछ ही दिनों बाद अब मध्य प्रदेश के शहडोल जिले के एक सरकारी स्कूल में ऐसा ही भयावह हादसा होते-होते टल गया।
बोडरी ग्राम पंचायत में स्थित शासकीय प्राथमिक स्कूल की छत भरभराकर गिर गई, लेकिन सौभाग्य से हादसे से ठीक पहले बच्चों ने खतरा भांप लिया और भागकर अपनी जान बचा ली।
हादसे के समय स्कूल में मौजूद थे 33 बच्चे
यह हादसा उस वक्त हुआ जब स्कूल में पढ़ाई चल रही थी। उस समय एक से पांचवीं कक्षा तक के 33 छात्र कक्षा में मौजूद थे। अचानक तेज आवाज के साथ स्कूल की छत दरकने लगी। शिक्षकों और बच्चों ने स्थिति को समझते हुए तत्परता दिखाई और बच्चे तेजी से बाहर भागे। कुछ ही पलों बाद पूरी छत ढह गई। हादसे के बाद मौके पर अफरातफरी मच गई।
25 साल पुरानी इमारत, पहले भी दी गई थी चेतावनी
प्राप्त जानकारी के अनुसार, स्कूल की यह इमारत वर्ष 1999-2000 में निर्मित हुई थी और पिछले कुछ वर्षों से इसकी स्थिति लगातार खराब होती जा रही थी। शिक्षकों ने कई बार लिखित रूप में प्रशासन को छत की जर्जर हालत की जानकारी दी थी, जिसमें स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है।
पिछले वर्ष छत की मरम्मत भी की गई थी, लेकिन वह अस्थायी समाधान था। इसके बावजूद प्रशासन ने इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया।
बच्चों में भय का माहौल, अभिभावक डरे
हादसे के बाद पूरे क्षेत्र में भय और नाराजगी का माहौल है। छात्र अभी भी डरे हुए हैं और अभिभावकों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजने से मना करना शुरू कर दिया है।
अभिभावकों का कहना है कि अगर बच्चों ने समय रहते छत गिरने का आभास नहीं किया होता, तो शायद आज यह खबर किसी बड़े शोक संदेश में बदल चुकी होती।
प्रशासनिक लापरवाही पर उठे सवाल
इस हादसे ने एक बार फिर प्रशासनिक लापरवाही को उजागर कर दिया है।
शिक्षकों के पत्र, चेतावनी और स्कूल की जमीनी हकीकत के बावजूद कोई भी जिम्मेदार अधिकारी स्कूल का निरीक्षण करने तक नहीं पहुंचा।
यह एक ऐसा उदाहरण बन गया है जो बताता है कि प्रशासन तब ही जागता है जब जान जोखिम में पड़ती है।
फिलहाल निजी भवन में चलेंगी कक्षाएं
घटना के बाद जिला प्रशासन की ओर से कहा गया है कि स्कूल की मरम्मत पूरी होने तक कक्षाएं एक निजी भवन में संचालित की जाएंगी।
हालांकि, स्थानीय लोग इस तात्कालिक व्यवस्था से संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि स्थायी समाधान के बिना इस तरह के हादसे भविष्य में दोहराए जा सकते हैं।
शिक्षा व्यवस्था पर सवाल, कब होगी जिम्मेदारी तय?
यह घटना सिर्फ एक छत गिरने की नहीं, बल्कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा व्यवस्था की जर्जर मानसिकता की तस्वीर भी है।
क्या बच्चों की जान की कीमत इतनी कम हो गई है कि प्रशासन महज कागज़ी जवाब देकर जिम्मेदारी से बच सकता है?
अब समय आ गया है कि राज्य सरकार और शिक्षा विभाग ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई के साथ-साथ जवाबदेही भी तय करे, ताकि भविष्य में किसी मासूम की जान जोखिम में न आए।