अफगान राजदूत के रूप में गुल हसन हसन की पहचान स्वीकार
रूस ने तालिबान को दी मान्यता, बना पहला देश
मॉस्को। रूस ने अफगानिस्तान में तालिबान के शासन को आधिकारिक मान्यता देकर एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है। अब रूस दुनिया का पहला देश बन गया है जिसने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता प्रदान की है। इसके साथ ही रूस ने तालिबान को आतंकी संगठनों की अपनी आधिकारिक सूची से भी हटा दिया है, जिससे तालिबान को लेकर उसकी नीति में एक बड़ा बदलाव आया है।
रूसी विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में बताया गया कि अफगानिस्तान के नवनियुक्त प्रतिनिधि गुल हसन हसन ने मॉस्को में अपनी पहचान संबंधी आधिकारिक दस्तावेज प्रस्तुत किए, जिसे रूस ने स्वीकार कर लिया है। इससे स्पष्ट है कि रूस ने अब तालिबान द्वारा नियुक्त अधिकारियों को वैध राजनयिक दर्जा देना शुरू कर दिया है।
🌍 अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अब भी संशय
गौरतलब है कि 2021 में तालिबान के अफगानिस्तान की सत्ता में लौटने के बाद से अभी तक किसी भी देश ने उसे औपचारिक रूप से राज्य के रूप में मान्यता नहीं दी थी। अमेरिका, यूरोपीय यूनियन, चीन, भारत, और अधिकतर मुस्लिम देश अब तक तालिबान को मान्यता देने से परहेज कर रहे हैं। इन देशों की प्रमुख चिंता तालिबान शासन के मानवाधिकारों, खासकर महिलाओं के अधिकारों, पर किए गए फैसलों को लेकर है।
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🔁 नीति में बदलाव क्यों?
रूस का यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि पहले रूस ने तालिबान को आतंकी संगठन के रूप में चिन्हित किया था। लेकिन अब उसी संगठन को मान्यता देकर रूस ने यह संकेत दिया है कि वह क्षेत्रीय स्थिरता और भू-राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए तालिबान से सीधा संवाद और संबंध स्थापित करना चाहता है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह फैसला रूस की एशिया-केंद्रित कूटनीति का हिस्सा है, जहां वह अफगानिस्तान में अपनी भूमिका को मजबूत करना चाहता है, खासकर तब जब अमेरिका और उसके सहयोगी देश वहां से पीछे हट चुके हैं।
📌 तालिबान के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत
यह मान्यता तालिबान के लिए एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक जीत मानी जा रही है। इससे तालिबान सरकार को वैश्विक स्तर पर वैधता मिलने का रास्ता खुल सकता है, जिससे भविष्य में अंतरराष्ट्रीय व्यापार, निवेश और सहायता प्राप्त करना आसान हो जाएगा।
❗ लेकिन सवाल अब भी बरकरार
हालांकि रूस ने मान्यता तो दे दी है, लेकिन यह देखना बाकी है कि तालिबान अपने शासन में किस तरह का व्यवहार करता है। क्या वह समावेशी सरकार, मानवाधिकारों की रक्षा और शिक्षा तथा महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देगा, या फिर वही कठोर नीति अपनाए रखेगा जो उसकी पहचान बन चुकी है – यह आने वाला समय बताएगा।
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