भारत ने भी अमेरिका और यूरोपीय संघ को दोहरे मापदंडों पर घेरा
अमेरिका की धमकी पर रूस का भारत को समर्थन, भारत बोला- राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं होगा
नई दिल्ली/मॉस्को | 6 अगस्त 2025 — रूस ने अमेरिका की ओर से भारत को दी गई व्यापारिक धमकी के जवाब में भारत का खुलकर समर्थन किया है। क्रेमलिन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है, जिसे अपने आर्थिक हितों के अनुसार अपने व्यापारिक साझेदार चुनने का पूरा अधिकार है। यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर कच्चा तेल रूस से खरीदने के चलते अमेरिकी टैरिफ बढ़ाने की धमकी दी है।
रूस के इस समर्थन के तुरंत बाद भारत ने भी कड़ा पलटवार किया और अमेरिका व यूरोपीय देशों के दोहरे रवैये को उजागर करते हुए कहा कि वे खुद रूस से व्यापार कर रहे हैं, लेकिन भारत को जबरन दोषी ठहराया जा रहा है।
🇷🇺 रूस का साफ संदेश: “भारत स्वतंत्र है, साझेदारी उसका अधिकार”
क्रेमलिन के प्रवक्ता दिमित्री पेस्कोव ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा:
“हम मानते हैं कि संप्रभु देशों को यह अधिकार है कि वे अपने हितों के अनुसार व्यापारिक साझेदार चुनें और स्वतंत्र रूप से यह तय करें कि वे किस प्रकार से आर्थिक सहयोग करना चाहते हैं।”
यह बयान सीधे तौर पर डोनाल्ड ट्रंप की धमकी के खिलाफ है, जिन्होंने हाल ही में कहा था कि भारत रूस से तेल खरीदना बंद करे, नहीं तो अमेरिका उस पर भारी शुल्क लगाएगा।
⚡ ट्रंप की धमकी के बाद भारत का करारा जवाब
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा सोमवार को दिए गए बयान में उन्होंने भारत को रूस से व्यापार करने के लिए जिम्मेदार ठहराया और चेतावनी दी कि वे भारत पर टैरिफ बढ़ाने जा रहे हैं।
भारत सरकार ने इस बयान को “अनुचित और अविवेकपूर्ण” बताते हुए कहा कि ट्रंप एकतरफा और पक्षपाती सोच अपना रहे हैं।
विदेश मंत्रालय ने अपने आधिकारिक बयान में कहा:
“भारत की रूस से तेल और ऊर्जा उत्पादों की खरीद भारतीय उपभोक्ताओं के लिए सस्ती और विश्वसनीय ऊर्जा सुनिश्चित करने के लिए की जा रही है। यह एक व्यापारिक मजबूरी है, जिसे वैश्विक ऊर्जा बाजार की परिस्थितियों ने जन्म दिया है।”
🔍 भारत ने खोले अमेरिका और यूरोपीय संघ के दोहरे रवैये के उदाहरण
भारत ने यह भी स्पष्ट किया कि रूस से व्यापार केवल भारत ही नहीं कर रहा, बल्कि अमेरिका और यूरोपीय देश भी बड़े पैमाने पर रूस से उत्पाद खरीद रहे हैं। भारत ने इसके लिए ठोस आंकड़े भी प्रस्तुत किए:
यूरोप-रूस व्यापार में ऊर्जा के अलावा उर्वरक, खनन उत्पाद, रसायन, लोहा और इस्पात, मशीनरी और ट्रांसपोर्ट उपकरण तक शामिल हैं।
अमेरिका अपने परमाणु उद्योग के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, इलेक्ट्रिक वाहन इंडस्ट्री के लिए पैलेडियम, और फर्टिलाइज़र व केमिकल्स का आयात कर रहा है।
भारत ने कहा, “जब यही काम अन्य देश कर रहे हैं तो केवल भारत को निशाना बनाना कहां तक उचित है?”
🌍 रूस ने अमेरिका पर साधा निशाना: “नई उपनिवेशवादी सोच अपनाई जा रही है”
रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया जखारोवा ने अमेरिका पर सीधा आरोप लगाते हुए कहा कि वाशिंगटन अब भी अपने प्रभुत्व को बचाने के लिए वैश्विक दक्षिण के देशों के खिलाफ नई उपनिवेशवादी नीति अपना रहा है।
उन्होंने कहा:
“अमेरिका आज जिस तरह से एकतरफा प्रतिबंध लगा रहा है और विश्व को अपनी शर्तों पर चलाना चाहता है, वह पूरी दुनिया के लिए एक दुखद सच्चाई बन चुकी है। वह emerging multipolar world (उभरती बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था) में अपने एकाधिकार के खत्म होने को स्वीकार नहीं कर पा रहा।”
🔄 अमेरिका खुद कर रहा रूस से व्यापार
भारत और रूस दोनों की ओर से यह बात दोहराई गई कि 2024 और 2025 में अमेरिका ने खुद रूस से अरबों डॉलर का व्यापार किया है:
2024 में अमेरिका ने रूस से लगभग 3 अरब डॉलर का आयात किया।
2025 के पहले 5 महीनों में ही 2.09 अरब डॉलर का आयात किया जा चुका है, जो पिछले साल की तुलना में 24% अधिक है।
उधर, यूरोपीय संघ ने 2024 में 1.65 करोड़ टन तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) रूस से खरीदी, जो उसके 2022 के आंकड़े को भी पार कर गया।
⚖️ भारत का रुख: हम राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेंगे
भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह अपने राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा के मसले पर किसी भी विदेशी दबाव में नहीं झुकेगा। भारत ने बार-बार कहा है कि उसका रूस से कच्चा तेल खरीदना एक आर्थिक जरूरत है, न कि किसी राजनीतिक गठजोड़ का हिस्सा।
🤝 रूस-भारत की साझेदारी मजबूत होती जा रही
इस पूरे घटनाक्रम में यह भी साफ हुआ कि भारत और रूस के संबंध न केवल ऐतिहासिक हैं, बल्कि बदलती वैश्विक राजनीति में रणनीतिक रूप से भी महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।
जहां पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध को आधार बनाकर व्यापारिक और कूटनीतिक दबाव बना रहे हैं, वहीं भारत ने गुटनिरपेक्ष नीति के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति का अनुसरण करते हुए अपनी ऊर्जा जरूरतों और राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दी है।
📌 निष्कर्ष: भारत वैश्विक शक्ति के रूप में मुखर
इस पूरे विवाद में भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अब केवल एक विकासशील राष्ट्र नहीं, बल्कि एक आत्मनिर्भर, मुखर और वैश्विक मंच पर दृढ़ राष्ट्र बन चुका है।
जहां अमेरिका जैसा महाशक्ति भारत को झुकाने की कोशिश कर रहा है, वहीं भारत ने बिना आक्रामक हुए तथ्यों, तर्कों और आंकड़ों के जरिए अपनी बात मजबूत तरीके से रखी है। रूस का समर्थन और अमेरिका के दोहरे मापदंडों का उजागर होना यह दर्शाता है कि अब विश्व व्यवस्था में एकतरफा आदेशों का दौर खत्म हो रहा है।
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