नागपुर में संघ की प्रार्थना सीडी का लोकार्पण, मोहन भागवत ने आपातकाल की स्मृतियाँ साझा कीं
नागपुर, 27 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शनिवार को नागपुर के रेशिमबाग स्थित डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर में संघ की प्रार्थना पर आधारित ध्वनिचित्रफीती (सीडी) का लोकार्पण किया। इस अवसर पर उन्होंने आपातकाल के दिनों को याद किया और बताया कि कैसे जेल में बंद स्वयंसेवक भी हर दिन संघ की प्रार्थना करना नहीं भूले।
आपातकाल की स्मृतियाँ और स्वयंसेवकों का संकल्प
डॉ. भागवत ने कार्यक्रम में कहा, “आपातकाल के दौरान कई स्वयंसेवकों को पुलिस ने जेल में डाल दिया था। उनमें से कुछ नियमित तो कुछ अनियमित थे। लेकिन कैद के बावजूद वे रोज प्रार्थना करते थे। एक स्वयंसेवक ने पैरोल पर बाहर आकर मुझसे कहा कि जेल में रोज प्रार्थना करने का अवसर मिलता है, जबकि शाखा के नियमित कार्य में कभी-कभी कठिनाई हो जाती थी।”
उन्होंने इसे संघ की प्रार्थना की शक्ति और आत्मबल का प्रतीक बताया। उनके अनुसार, प्रार्थना केवल शब्द नहीं है बल्कि यह सामूहिक संकल्प और समर्पण का भाव है।

संघ की प्रार्थना का महत्व
डॉ. भागवत ने कहा कि संघ की प्रार्थना “नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमि…” से लेकर “भारत माता की जय” तक सामूहिक भावना और मातृभूमि के प्रति समर्पण का द्योतक है। उन्होंने कहा, “प्रार्थना में भारत माता से कुछ मांगा नहीं जाता, उसमें केवल उनके अधिकारों और कृपा का उच्चारण होता है। जब कोई कुछ मांगता है, तो वह परमेश्वर से मांगता है, लेकिन मां के लिए वह केवल आदर ही प्रकट करता है।”
संस्कृत प्रार्थना का विकास
संघ की प्रार्थना का आरंभिक रूप केवल एक भावना थी, जिसे बाद में शब्दबद्ध किया गया। पहले मराठी और हिंदी में प्रार्थनाएँ प्रचलित रहीं, लेकिन अखिल भारतीय स्तर पर एकरूपता लाने के लिए इसे संस्कृत में रचा गया। डॉ. भागवत ने बताया कि भिडे मास्टर, जो स्वयंसेवक और संस्कृत के विद्वान थे, उन्होंने इस भावना को संस्कृत में शब्दबद्ध किया और आज वही प्रार्थना पूरे संघ में गूंजती है।
संगीतबद्ध प्रार्थना की विशेषता
इस अवसर पर संगीतकार राहुल रानडे ने बताया कि संघ की प्रार्थना भारत माता पर आधारित है और इसे लंदन के रॉयल फिलहारमोनिक ऑर्केस्ट्रा द्वारा संगीतबद्ध किया गया। उन्होंने कहा, “यह एक अनोखा क्षण था क्योंकि लगभग 85 वर्षों बाद ब्रिटिश कलाकारों ने भारत माता का वादन किया। यह संघ की प्रार्थना को अंतरराष्ट्रीय मंच पर विशेष सम्मान दिलाता है।”
प्रार्थना को गायक शंकर महादेवन और अन्य ख्यातनाम कलाकारों ने अपनी आवाज दी। रानडे ने इसे एक आध्यात्मिक और राष्ट्रीय भावनाओं को जोड़ने वाला प्रयास बताया।
लोकार्पण समारोह का वातावरण
ध्वनिचित्रफीती के लोकार्पण कार्यक्रम में आयोजक हरीश मिमानी, चितले उद्योग समूह के निदेशक इंद्रनील चितले, और अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन आशुतोष अडोणी ने किया, जबकि आभार प्रदर्शन इंद्रनील चितले ने किया।
समारोह के दौरान डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि प्रार्थना केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि आत्मिक साधना है। लंबे समय तक प्रार्थना करने वाले स्वयंसेवक इसके भाव में पूर्ण रूप से दृढ़ हो जाते हैं और वही शक्ति उन्हें कठिन परिस्थितियों में भी स्थिर बनाए रखती है।
सामूहिकता और राष्ट्रीय चेतना का संदेश
इस मौके पर सरसंघचालक ने यह भी स्पष्ट किया कि संघ की प्रार्थना व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामूहिक संकल्प है। यह इस बात का प्रतीक है कि “हम सब मिलकर मातृभूमि के लिए क्या कर सकते हैं।” यही भावना संघ को जोड़ती है और उसे निरंतर शक्ति देती है।
कार्यक्रम का वातावरण पूरी तरह भक्ति, राष्ट्रभक्ति और गर्व की भावना से ओत-प्रोत रहा।
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