राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर भोपाल में भव्य श्रेणी मिलन पथ संचलन, एकता और समरसता का अनूठा संदेश
भोपाल, 12 अक्टूबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में रविवार को भोपाल का तात्या टोपे स्टेडियम राष्ट्रभाव, अनुशासन और एकता की अद्भुत झलक का साक्षी बना। संघ के भोपाल विभाग द्वारा आयोजित इस “श्रेणी मिलन पथ संचलन” में हजारों स्वयंसेवक एकजुट होकर राष्ट्रभक्ति की भावना के साथ कदमताल करते नजर आए। पूरा स्टेडियम घोष की गूंज, योगासनों की लय और अनुशासित संचलन की दृढ़ता से गुंजायमान रहा।
तात्या टोपे स्टेडियम में अनुशासन और राष्ट्रभाव का अद्भुत संगम
कार्यक्रम का प्रारंभ तात्या टोपे स्टेडियम से हुआ, जहां सुसज्जित गणवेश में तीन हजार से अधिक स्वयंसेवकों ने अपनी अनुशासित पंक्तियों के साथ प्रदर्शन किया। स्वयंसेवकों का संचलन जब घोष की स्वर-लहरियों पर कदमताल करता हुआ आगे बढ़ा, तो पूरा वातावरण राष्ट्रभाव से ओतप्रोत हो उठा।
मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश रोहित आर्य, मुख्य वक्ता के रूप में सह-क्षेत्र प्रचारक प्रेमशंकर, और मंच पर प्रांत संघचालक अशोक पांडे तथा विभाग संघचालक सोमकांत उमालकर उपस्थित रहे।
इस आयोजन में चिकित्सा, शिक्षा, विधि, उद्योग, प्रशासन, कला, खेलकूद, कृषि तथा मातृशक्ति सहित समाज के विविध वर्गों से जुड़े प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
राष्ट्र की एकता, अनुशासन और स्वाभिमान का जीवंत प्रतीक
जब स्वयंसेवकों की श्रेणियां एक स्वर में कदमताल करती हुई न्यू मार्केट होते हुए वापस स्टेडियम लौटीं, तो यह दृश्य अनुशासन और एकजुटता का भव्य प्रतीक बन गया। करीब ढाई किलोमीटर लंबा यह पथ संचलन मार्गभर पुष्पवर्षा और जयघोष के बीच आगे बढ़ा।
आम नागरिकों, व्यापारियों, छात्रों और सामाजिक संगठनों ने स्वयंसेवकों का फूलों से स्वागत किया। राज्य मंत्री कृष्णा गौर, महापौर मालती राय, सांसद आलोक शर्मा, विधायक रामेश्वर शर्मा, भगवानदास सबनानी सहित अनेक जनप्रतिनिधियों ने भी पथ संचलन का अभिनंदन किया।
संघ स्थापना का उद्देश्य — संगठन से राष्ट्र निर्माण तक
मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति रोहित आर्य ने अपने संबोधन में कहा कि
“संघ ने अपने कार्यों से समाज में अनुशासन, आत्मीयता और राष्ट्रीय एकता की भावना को मजबूत किया है। यह संगठन केवल विचारधारा नहीं, बल्कि जीवनशैली का प्रतीक है।”
मुख्य वक्ता प्रेमशंकर ने अपने उद्बोधन में डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा संघ की स्थापना के उद्देश्य पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि
“संघ का जन्म केवल संगठन खड़ा करने के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र को संगठित, समर्थ और संस्कारित बनाने के संकल्प से हुआ था। डॉ. हेडगेवार ने अनुभव किया कि देश की समस्याओं की जड़ समाज की विखंडित चेतना में है, इसलिए उन्होंने संगठन के माध्यम से व्यक्ति और राष्ट्र निर्माण का कार्य प्रारंभ किया।”
गुरुजी गोलवलकर के विचारों की प्रेरणा
प्रेमशंकर ने द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘गुरुजी’ के विचारों को भी स्मरण किया। उन्होंने कहा कि
“गुरुजी ने संघ को मात्र संगठन नहीं, बल्कि एक जीवंत राष्ट्रशक्ति के रूप में स्थापित किया। उनके नेतृत्व में संघ का कार्य शिक्षा, संस्कृति, ग्रामविकास और सेवा के क्षेत्रों में विस्तृत हुआ, जिससे संगठन समाज के हर वर्ग तक पहुंचा।”
समरसता, एकता और ‘पंच परिवर्तन’ का सूत्र
वक्ताओं ने अपने भाषणों में समरसता और एकजुटता को राष्ट्र की शक्ति का मूल बताया। उन्होंने कहा कि समाज का कोई भी वर्ग बड़ा या छोटा नहीं होता —
“समान सम्मान और सहभागिता ही सच्ची समरसता का प्रतीक है।”
संघ के ‘पंच परिवर्तन’ के सिद्धांत का उल्लेख करते हुए बताया गया कि संघ व्यक्ति, परिवार, समाज, राष्ट्र और विश्व — इन पांच स्तरों पर सकारात्मक परिवर्तन के लिए कार्य कर रहा है।
मुख्य वक्ताओं ने कहा कि
“संघ की परंपरा केवल शाखाओं तक सीमित नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में राष्ट्रभाव और आत्मानुशासन की चेतना को फैलाने का प्रयास है।”
समाज के हर वर्ग की सक्रिय भागीदारी
कार्यक्रम में महिलाओं, युवाओं, शिक्षकों, चिकित्सकों, उद्योगपतियों और विद्यार्थियों की भागीदारी उल्लेखनीय रही। इस अवसर पर मंच से यह संदेश दिया गया कि
“कोई भी हिन्दू छोटा-बड़ा नहीं होता, सभी एक सूत्र में बंधकर ही भारत को विश्व में सर्वोच्च बना सकते हैं।”
भोपाल विभाग में रविवार को ही चालीस से अधिक पथ संचलन आयोजित हुए, जिनमें हजारों स्वयंसेवकों ने राष्ट्रगीत की गूंज के साथ अनुशासन और समर्पण की मिसाल पेश की।
पुष्पवर्षा और स्वागत का भावपूर्ण दृश्य
पथ संचलन के दौरान तात्या टोपे स्टेडियम से न्यू मार्केट तक का मार्ग पुष्पवर्षा, जयघोष और स्वागत बैनरों से सजा रहा। लोगों ने छतों और दुकानों से स्वयंसेवकों पर फूल बरसाए। हर कदम पर राष्ट्रभाव की लहर महसूस की गई — मानो पूरा शहर एक साथ “भारत माता की जय” का उद्घोष कर रहा हो।
राष्ट्रभाव और शताब्दी वर्ष की प्रेरणा
संघ के इस श्रेणी मिलन पथ संचलन ने न केवल अनुशासन और संगठन की शक्ति को प्रदर्शित किया, बल्कि यह स्पष्ट किया कि संघ का शताब्दी वर्ष केवल उत्सव नहीं, बल्कि आत्मचिंतन और राष्ट्रनिर्माण का अभियान है। यह आयोजन उस संकल्प का प्रतीक बना, जिसमें समाज का हर वर्ग राष्ट्र के प्रति अपनी जिम्मेदारी को महसूस करता है।
✨ स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!