राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आईआईटी रुड़की में हुई प्रमुख जन गोष्ठी, समाज में जागृति का आह्वान
“हिंसाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार और मिथ्याचार सबसे बड़ी समस्या” — भैय्याजी जोशी, आईआईटी रुड़की में आरएसएस की शताब्दी गोष्ठी
हरिद्वार, 16 अक्टूबर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सरकार्यवाह और अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भैय्याजी सुरेश जोशी ने कहा कि आज मानव समाज की सबसे बड़ी समस्या हिंसाचार, दुराचार, भ्रष्टाचार और मिथ्याचार है, और इनसे मुक्ति का मार्ग केवल संस्कार, शिक्षा और आत्मचिंतन से ही संभव है।
वे गुरुवार को आईआईटी रुड़की में आयोजित प्रमुख जन गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे, जो आरएसएस के शताब्दी वर्ष समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित की गई। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शिक्षाविद, विद्यार्थी और सामाजिक कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
🔹 “भारत का लक्ष्य विश्व का शुद्धिकरण है”
भैय्याजी जोशी ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज विश्व ने भारत को एक बड़ी जिम्मेदारी दी है— वह है विश्व का शुद्धिकरण और मार्गदर्शन।
“भारत ने सदैव विश्व को श्रेष्ठ देने की भावना रखी है। जब भी मानवता संकट में आई, भारत ने अध्यात्म, संस्कृति और विचारों से उसका समाधान प्रस्तुत किया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहा है।”
उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य केवल संगठन निर्माण नहीं, बल्कि राष्ट्र के नैतिक पुनर्जागरण का आंदोलन है।

🔹 “संघ ने 100 वर्षों में भारत का वास्तविक रूप दिखाया”
आरएसएस के 100 वर्षों की यात्रा पर बोलते हुए जोशी ने कहा कि पिछले एक शताब्दी में संघ ने यह दिखाया है कि भारत केवल भौगोलिक इकाई नहीं, बल्कि सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक है।
“संघ ने समाज को वह भारत दिखाया है, जिसका उल्लेख स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद ने किया था— ऐसा भारत जो धर्म, विज्ञान और संस्कार के सम्मिलन से विश्व का मार्गदर्शन कर सकता है।”
उन्होंने कहा कि भारत के जीवन मूल्यों का निर्माण हजारों वर्षों की जीवन यात्रा में हुआ है, जो सामान्य लोगों की तपस्या और श्रम से उपजे हैं।
🔹 “भारत को जानो, मानो और बनाओ”
भैय्याजी जोशी ने युवाओं से आह्वान किया कि वे “भारत को जानो, भारत को मानो और भारत को बनाओ” के मंत्र को जीवन में अपनाएं।
उन्होंने कहा,
“भारत के निर्माण में हर समाज, हर वर्ग की भूमिका रही है। इतिहास गवाह है कि महाराणा प्रताप को युद्ध में भील समाज का सहयोग मिला। आज भी हमें उसी एकता और समरसता को अपनाना है।”
🔹 “शौर्य का अर्थ है दुर्बल की रक्षा करना”
उन्होंने कहा कि शौर्य का अर्थ केवल युद्ध नहीं है, बल्कि दुर्बल और असहाय की रक्षा करना है। यही भारत की दृष्टि है।
“भारत की संस्कृति सिखाती है कि शक्ति का प्रयोग संरक्षण के लिए किया जाए, विनाश के लिए नहीं। हमें नई पीढ़ी को बताना होगा कि भारत का चिंतन केवल तर्क नहीं, जीवन दर्शन है।”
🔹 “शिक्षा मानव बनाती है, मशीन नहीं”
भैय्याजी ने कहा कि समाज संचालन के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण तत्व है।
“शिक्षा मनुष्य को मशीन नहीं, मानव बनाती है। तकनीकी विकास आवश्यक है, परंतु उसके साथ मानवता का भाव भी जुड़ा होना चाहिए। औद्योगिकरण तभी सार्थक होगा जब वह समाज में सकारात्मक संदेश दे।”
उन्होंने कहा कि कलाकारों, धर्माचार्यों और शिक्षकों को समाज में सकारात्मक दिशा और नैतिक दृष्टि स्थापित करने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए।
🔹 “राजनीति राष्ट्र के आधार पर होनी चाहिए”
जोशी ने कहा कि राजनीति केवल सत्ता के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र के कल्याण के लिए होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की राजनीति यदि राष्ट्रहित से प्रेरित रहेगी, तो समाज की हर समस्या का समाधान स्वतः संभव हो जाएगा।
🔹 “संघ समाज के सहयोग से ही आगे बढ़ा है”
आरएसएस की भूमिका पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि पिछले 100 वर्षों में संघ ने कभी अपने अस्तित्व को व्यक्तिगत या राजनीतिक रूप में नहीं देखा, बल्कि समाज के सहयोग से समाज के उत्थान का कार्य किया है।
“संघ को जो शक्ति मिली है, वह समाज के सहयोग से मिली है, और भविष्य में भी संघ उसी जनशक्ति के साथ आगे बढ़ेगा। हमारा उद्देश्य व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण करना है।”
🔹 कार्यक्रम में व्यापक सहभागिता
कार्यक्रम का संचालन डॉ. प्रवीण एरन ने किया। इस अवसर पर आरएसएस के क्षेत्रीय प्रचारक प्रमुख जगदीश, प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र, सह प्रांत प्रचारक चंद्रशेखर, राकेश, अनुज, ललित शंकर, मनोज, विवेक, बंशीधर और अनेक स्वयंसेवक उपस्थित रहे।
आईआईटी रुड़की के प्राध्यापकों, विद्यार्थियों और पूर्व छात्रों ने भी इस गोष्ठी में सहभागिता की और सामाजिक एकता व भारतीय चिंतन पर चर्चा की।
भैय्याजी जोशी के इस भाषण ने संदेश दिया कि भारत की सच्ची शक्ति उसके मूल्यों, संस्कारों और समाज की एकता में निहित है। उन्होंने कहा कि संघ का आगामी शताब्दी काल भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का युग होगा, जो विश्व के लिए दिशा-प्रदर्शक सिद्ध होगा।
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