विद्युत के प्रयोग और आविष्कार पर विस्तृत विवरण देती है अगस्त्य संहिता
नई दिल्ली। आधुनिक विज्ञान भले ही विद्युत को माइकल फैराडे और अन्य वैज्ञानिकों के योगदान से जोड़ता हो, लेकिन प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इसका उल्लेख हजारों साल पहले ही मिल जाता है। ऋषि अगस्त्य द्वारा रचित अगस्त्य संहिता में विद्युत के उपयोग, निर्माण और इसके विभिन्न रूपों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यही नहीं, इस ग्रंथ में विद्युत अपघटन, बैटरी निर्माण और इलेक्ट्रोप्लेटिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का भी उल्लेख किया गया है।
विद्युत अपघटन और वैमानिक ऊर्जा का उल्लेख
अगस्त्य संहिता में जल के विद्युत अपघटन की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है। ग्रंथ में कहा गया है कि यदि जल में विशेष प्रक्रिया द्वारा सौ कुंभों की शक्ति का प्रयोग किया जाए, तो यह प्राण वायु और उदान वायु में परिवर्तित हो जाएगा—
“अनेन जलभङ्गोस्ति प्राणो दानेषु वायुषु। एवं शतानां कुम्भानां संयोगः कार्यकृत् स्मृतः।।”
इसके अलावा, ऋषि अगस्त्य ने यह भी बताया कि इस उदान वायु को वायुबंधक वस्त्रों से रोका जाए, तो इसे वैमानिक ऊर्जा के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
“वायुबन्धकवस्त्रेण निबद्धो यानमस्तके। उदानः स्वलघुत्वे विमर्त्याकाश यानकम्।।”
विद्युत बैटरी और इलेक्ट्रोप्लेटिंग का वर्णन
अगस्त्य संहिता में बैटरी निर्माण की भी विधि दी गई है। इसमें तांबे और अन्य धातुओं पर सोने या चांदी की परत चढ़ाने की प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है। यह आधुनिक इलेक्ट्रोप्लेटिंग तकनीक के समान है।
“यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधौ, आच्छादयति तत् ताम्र स्वर्णेन रजतेन वा। सुवर्णलिप्तं तत् ताम्रं शातकुम्भमिति स्मृतम्।।”
इसका अर्थ है कि जब तांबे को यवाक्षर (सोने या चांदी के नाइट्रेट) और तेजाब के मिश्रण में डुबोया जाता है, तो उस पर सोने या चांदी की परत चढ़ जाती है।
विद्युत के प्रकार और भारतीय ज्ञान परंपरा
ऋषि अगस्त्य ने विद्युत के विभिन्न प्रकारों को भी परिभाषित किया है—
- तड़ित – रेशमी वस्त्रों के घर्षण से उत्पन्न विद्युत
- सौदामिनी – विभिन्न रत्नों के घर्षण से उत्पन्न विद्युत
- विद्युत – बादलों के घर्षण से उत्पन्न विद्युत
- शतकुंभी – सेलों अथवा कुंभों द्वारा उत्पन्न विद्युत (बैटरी)
- हृदनि – संरक्षित विद्युत
- अशनी – चुम्बकीय दंड से उत्पन्न विद्युत
विद्युत विज्ञान के क्षेत्र में भारत का योगदान
भारतीय ग्रंथों में विद्युत विज्ञान का इतना विस्तृत विवरण होने के बावजूद आज भी माइकल फैराडे को विद्युत विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है। किंतु अगस्त्य संहिता के संदर्भों के आधार पर यह स्पष्ट है कि वैदिक काल में ही विद्युत विज्ञान का ज्ञान था और ऋषि अगस्त्य इसके वास्तविक आविष्कारक माने जा सकते हैं।
ऋषि अगस्त्य को दक्षिण भारत में अगतियम और अगन्तियांगर के नाम से भी जाना जाता है। उनके योगदान को देखते हुए भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनः स्थापित करने की आवश्यकता है, जिससे हमारी प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियों को उचित सम्मान मिल सके।
स्वदेश ज्योति के द्वारा
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