76वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया और भारतीय संविधान की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला। राष्ट्रपति मुर्मू ने सबसे पहले देशवासियों को गणतंत्र दिवस की बधाई दी और इस विशेष अवसर पर अपनी बात शुरू की। उन्होंने अपने संबोधन में भारतीय संविधान को “जीवंत दस्तावेज” करार दिया और बताया कि यह हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का सबसे अहम आधार है। राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, “हमारा संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सामूहिक अस्मिता का प्रतीक है। यह हमें हमारी पहचान और एकता को समझने में मदद करता है।”
राष्ट्रपति मुर्मू ने आगे कहा कि किसी राष्ट्र के इतिहास में 75 साल का समय बहुत छोटा लगता है, लेकिन भारत के संदर्भ में यह कालखंड बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने उदाहरण के रूप में कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत ने बहुत सी महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की हैं और इस अवधि में देश की चेतना में अभूतपूर्व जागरूकता आई है। भारत ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से अब तक हर कदम पर खुद को एक मजबूत और प्रगतिशील राष्ट्र के रूप में स्थापित किया है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय जनता के संघर्ष, साहस और समर्पण के कारण भारत आज दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ते देशों में से एक बन चुका है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी कहा कि 75 वर्षों का समय भारतीय लोकतंत्र के सशक्त होने का प्रमाण है, जिसमें सभी वर्गों और समाज के लोगों ने समान अवसरों और अधिकारों का उपयोग किया है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय संविधान का प्रभाव केवल कानूनी दायरे तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे जीवन के हर पहलू में गहराई से समाहित है। यह संविधान हमारे सभी सामाजिक और सांस्कृतिक पहलुओं को प्रभावित करता है, और यही कारण है कि इसे “जीवंत दस्तावेज” कहा जाता है, जो समय के साथ बदलती जरूरतों और स्थितियों के अनुरूप खुद को ढालता है।
अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान को “हमारे देश का अमूल्य धरोहर” बताया और कहा कि इसे हम सभी को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि संविधान के आदर्शों पर चलकर ही हम देश को आगे बढ़ा सकते हैं और हर नागरिक को अपने अधिकार और कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
इसके साथ ही, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने व्यक्तिगत अनुभवों का भी जिक्र किया। वे भारत की 15वीं राष्ट्रपति हैं और इस सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचने वाली पहली आदिवासी महिला और दूसरी महिला राष्ट्रपति हैं। उन्होंने अपने इस सम्मान को भारत के आदिवासी समुदाय और महिलाओं के लिए एक प्रेरणा स्रोत बताया और कहा कि इस पद पर पहुंचने के बाद उनका यह कर्तव्य बनता है कि वे हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा करें और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा दें।
राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी कहा कि उन्हें यह पद प्राप्त करना एक गर्व का विषय है और यह उनके लिए एक ऐतिहासिक क्षण है, क्योंकि वे भारत के संविधान और लोकतांत्रिक संस्थाओं का प्रतीक बन चुकी हैं। उन्होंने कहा, “हमारे संविधान ने हमें जो अधिकार दिए हैं, उनके द्वारा हम अपने राष्ट्र को प्रगति की दिशा में आगे बढ़ा सकते हैं।”
वहीं, 64 वर्षीय राष्ट्रपति मुर्मू ने यह भी कहा कि वे भारत के सबसे कम उम्र में राष्ट्रपति बनने का रिकॉर्ड भी बना चुकी हैं, और इस उपलब्धि ने उन्हें और भी जिम्मेदार बना दिया है। उनके लिए, यह सम्मान केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि यह पूरे आदिवासी समुदाय और महिलाओं के लिए एक बड़ी जीत है।
राष्ट्रपति मुर्मू के इस संबोधन में यह संदेश भी था कि संविधान की अवधारणा केवल एक कानूनी फ्रेमवर्क नहीं है, बल्कि यह हमारे राष्ट्र की आत्मा है। उन्होंने अपने भाषण के माध्यम से भारतीयों को यह प्रेरणा दी कि वे अपने संविधान के आदर्शों का पालन करें, समाज में समानता की भावना फैलाएं और देश के समग्र विकास में अपना योगदान दें।
इस तरह, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर दिया गया संबोधन न केवल भारतीय संविधान के महत्व पर बल देने वाला था, बल्कि यह भारतीय लोकतंत्र की सशक्त स्थिति और उसकी धारा में बदलाव की कहानी भी थी। उनके इस ऐतिहासिक संबोधन ने देशवासियों को एक बार फिर यह याद दिलाया कि संविधान के आदर्शों पर चलकर ही हम एक सशक्त और समृद्ध राष्ट्र बना सकते हैं।