रेपो रेट 5.5% पर बरकरार: आरबीआई की मौद्रिक नीति में तटस्थ रुख जारी, महंगाई में राहत

मुंबई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बुधवार को मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीसरी द्विमासिक बैठक के बाद देश की नीतिगत दरों में किसी बदलाव की घोषणा नहीं की। उन्होंने स्पष्ट किया कि रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर यथावत रखने का निर्णय सर्वसम्मति से लिया गया है। यह फैसला देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति, मुद्रास्फीति के रुझानों और भविष्य के संभावित जोखिमों को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

नीतिगत दरों में कोई बदलाव नहीं, ईएमआई पर नहीं पड़ेगा असर

रेपो रेट, यानी वह दर जिस पर आरबीआई वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है, को यथावत रखने का मतलब है कि जिन लोगों के ऋण नीतिगत दरों से जुड़े हैं, उनकी ईएमआई में फिलहाल कोई बदलाव नहीं होगा। पिछले कुछ महीनों में रेपो दर में क्रमशः फरवरी और अप्रैल में 25-25 आधार अंकों और जून में 50 आधार अंकों की कटौती की गई थी। इस प्रकार, फरवरी से जून के बीच कुल 100 आधार अंकों की कटौती की जा चुकी है।

विकास दर का अनुमान 6.5% पर बरकरार

आरबीआई ने मौजूदा वित्त वर्ष 2025-26 के लिए विकास दर के अनुमान को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। गवर्नर मल्होत्रा ने कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था की संरचना मजबूत है और वैश्विक अस्थिरता के बावजूद यह आगे बढ़ने की क्षमता रखती है। उन्होंने विश्वास जताया कि आगामी त्योहारी सीजन में उपभोग में वृद्धि होगी, जिससे मांग आधारित वृद्धि को बल मिलेगा।

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महंगाई पर राहत, अनुमान घटाकर 3.1% किया गया

महंगाई के मोर्चे पर भी रिजर्व बैंक ने राहत की खबर दी है। आरबीआई गवर्नर ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के लिए महंगाई का अनुमान 3.7 प्रतिशत से घटाकर 3.1 प्रतिशत कर दिया गया है। यह गिरावट मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की कीमतों में आई नरमी के कारण संभव हुई है। जून 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित मुद्रास्फीति गिरकर 2.1 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले छह वर्षों का न्यूनतम स्तर है। खाद्य मुद्रास्फीति में भी उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई है – यह जून में (-)1.06 प्रतिशत रही, जबकि मई में यह 0.99 प्रतिशत थी।

समिति की संरचना और निर्णय प्रक्रिया

मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) छह सदस्यों की होती है, जिसमें आरबीआई के तीन वरिष्ठ अधिकारी – गवर्नर संजय मल्होत्रा, डिप्टी गवर्नर पूनम गुप्ता और कार्यकारी निदेशक राजीव रंजन – शामिल हैं। इनके साथ सरकार द्वारा नामित तीन बाहरी सदस्य – नागेश कुमार, सौगत भट्टाचार्य और राम सिंह – भी समिति में भाग लेते हैं। यह समिति हर दो महीने में बैठक कर ब्याज दरों की समीक्षा करती है और देश की मौद्रिक दिशा तय करती है।

नीति में 'तटस्थ रुख' का क्या अर्थ है?

आरबीआई द्वारा 'तटस्थ रुख' अपनाना इस बात का संकेत है कि निकट भविष्य में मौद्रिक नीति को न सख्त किया जाएगा और न ही अत्यधिक ढीला। इसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना है, जिससे विकास और मुद्रास्फीति दोनों के बीच संतुलन साधा जा सके। इस रुख से यह भी संकेत मिलता है कि यदि परिस्थितियाँ अनुकूल रही तो निकट भविष्य में ब्याज दरों में कुछ नरमी की संभावना बनी रह सकती है।

भूराजनीतिक परिस्थितियों और वैश्विक व्यापार का असर

गवर्नर मल्होत्रा ने वैश्विक परिदृश्य पर टिप्पणी करते हुए कहा कि बदलती भूराजनीतिक स्थितियां भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भी हैं और अवसर भी। उन्होंने कहा कि वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में पुनर्गठन और भारत के बढ़ते रणनीतिक महत्व के कारण देश के सामने अनेक नए अवसर खुल रहे हैं। इसके अलावा, सरकार और आरबीआई की संयुक्त रूप से अपनाई गई सहायक नीतियां अर्थव्यवस्था को सहारा दे रही हैं।

मानसून और त्योहारी सीजन की सकारात्मक भूमिका

इस बार मानसून अपेक्षाकृत अच्छा रहा है, जिससे खरीफ फसलों की पैदावार बेहतर रहने की उम्मीद है। गवर्नर ने कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में आय और मांग में सुधार होगा, जिससे त्योहारी सीजन में उपभोग में तेजी आने की संभावना है। यह घरेलू मांग को बल देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।


भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट को 5.5% पर स्थिर रखने का निर्णय महंगाई में राहत, आर्थिक स्थिरता और वैश्विक अनिश्चितताओं को ध्यान में रखते हुए लिया गया है। मौद्रिक नीति में तटस्थ रुख को बनाए रखते हुए रिजर्व बैंक ने यह संदेश दिया है कि फिलहाल अर्थव्यवस्था संतुलन की स्थिति में है और किसी बड़े हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। आने वाले महीनों में त्योहारी सीजन, कृषि उत्पादन और वैश्विक हालात देश की मौद्रिक दिशा को प्रभावित करेंगे।



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