आरबीआई ने रेपो रेट 5.5% पर बरकरार रखा, गवर्नर बोले- महंगाई पर काबू और विकास की रफ्तार बनी रहेगी
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने बुधवार को अपनी तीन दिवसीय बैठक के बाद नीतिगत दर यानी रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर बरकरार रखने का निर्णय लिया। यह फैसला सर्वसम्मति से लिया गया। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बैठक के बाद पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थितियों में मौद्रिक नीति को स्थिर रखना आर्थिक वृद्धि और मुद्रास्फीति नियंत्रण दोनों के लिए आवश्यक है।
अनुकूल मानसून और महंगाई में गिरावट से मिला सहारा
गवर्नर मल्होत्रा ने कहा कि हाल ही में हुए अनुकूल मानसून, खाद्य कीमतों में कमी और मौद्रिक नरमी ने आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में मदद की है। इन कारणों से मौद्रिक नीति समिति ने यह निष्कर्ष निकाला कि नीतिगत दर को वर्तमान स्तर पर बनाए रखना ही सबसे उचित कदम है।
उन्होंने बताया कि खुदरा मुद्रास्फीति (सीपीआई) में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। अगस्त में यह घटकर 2.07 प्रतिशत पर आ गई, जो पिछले छह सालों में सबसे निचला स्तर है। इससे उपभोक्ताओं को राहत तो मिली ही है, साथ ही सरकार और केंद्रीय बैंक को नीति निर्धारण में लचीलापन भी प्राप्त हुआ है।
जीएसटी सुधारों से महंगाई नियंत्रण और खपत को बढ़ावा
एमपीसी की सिफारिशों पर बोलते हुए आरबीआई गवर्नर ने कहा कि जीएसटी को और अधिक युक्तिसंगत बनाने की दिशा में चल रहे सुधारों का असर महंगाई पर गहराई से पड़ेगा। इससे न केवल कीमतों पर दबाव कम होगा, बल्कि घरेलू खपत और औद्योगिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिलेगा।
उन्होंने कहा कि मौद्रिक नीति का रुख फिलहाल "तटस्थ" रखा गया है। इसका अर्थ है कि न तो ब्याज दरों में तत्काल वृद्धि की संभावना है और न ही किसी बड़ी कटौती की।
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टैरिफ से विकास दर पर खतरे की आशंका
गवर्नर मल्होत्रा ने हालांकि यह भी स्वीकार किया कि आगामी महीनों में कुछ बाहरी चुनौतियाँ आर्थिक विकास के रास्ते में रुकावट बन सकती हैं। उन्होंने विशेष रूप से टैरिफ और वैश्विक व्यापारिक दबाव का उल्लेख करते हुए कहा कि इसकी वजह से इस वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में वृद्धि की गति कुछ धीमी हो सकती है।
हालांकि उन्होंने विश्वास जताया कि जीएसटी सुधारों और घरेलू उपभोग की मजबूती से इन चुनौतियों का असर कुछ हद तक कम किया जा सकेगा।
चालू खाता घाटा रहेगा नियंत्रित
मल्होत्रा ने यह भी बताया कि प्रवासी भारतीयों की ओर से भेजे जा रहे मजबूत रेमिटेंस के कारण चालू खाता घाटा (कैड) टिकाऊ स्तर पर बना रहेगा। यह भारत की वित्तीय स्थिरता और निवेश माहौल के लिए सकारात्मक संकेत है।
फरवरी से अब तक 100 आधार अंक की कटौती
आरबीआई ने फरवरी 2025 से अब तक 100 आधार अंक (1%) की दर कटौती की है। फरवरी और अप्रैल में रेपो दर में 25-25 आधार अंक की कटौती की गई थी, जबकि जून में 50 आधार अंक घटाकर इसे 5.5 प्रतिशत तक लाया गया। गवर्नर ने बताया कि यह निर्णय लगातार घटती खुदरा मुद्रास्फीति को ध्यान में रखकर लिया गया था।
सरकार ने केंद्रीय बैंक को यह सुनिश्चित करने का जिम्मा सौंपा है कि सीपीआई आधारित मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत पर बनी रहे, जिसमें 2 प्रतिशत का उतार-चढ़ाव स्वीकार्य है। वर्तमान में मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत से नीचे बनी हुई है, जो मौद्रिक नीति की सफलता को दर्शाता है।
भविष्य की राह: स्थिरता और सावधानी
आरबीआई गवर्नर ने अंत में स्पष्ट किया कि मौद्रिक नीति समिति का प्राथमिक लक्ष्य कीमतों को स्थिर रखना और आर्थिक विकास को संतुलित गति प्रदान करना है। मौजूदा हालात में दरों को यथावत रखने का फैसला इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उन्होंने संकेत दिए कि यदि मुद्रास्फीति नियंत्रण में बनी रहती है और वैश्विक आर्थिक माहौल स्थिर रहता है, तो आगे और नरमी के लिए भी गुंजाइश बन सकती है।
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