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March 13, 2025 1:54 AM

राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास बृह्मलीन, अयोध्या में शोक की लहर

**"Ayodhya Ram Mandir Chief Priest Acharya Satyendra Das Hospitalized with Brain Hemorrhage"**

लखनऊ। अयोध्या के श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास बुधवार सुबह 7:00 बजे बृह्मलीन हो गए। 85 वर्ष की आयु में उन्होंने लखनऊ के संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) में अंतिम सांस ली। उनके निधन की पुष्टि SGPGI के प्रवक्ता ने की है।

बीमारी और अस्पताल में भर्ती का विवरण

आचार्य सत्येंद्र दास को 3 फरवरी को SGPGI में भर्ती कराया गया था। उन्हें स्ट्रोक हुआ था, जिसके बाद उनकी तबीयत लगातार बिगड़ती गई। वह न्यूरोलॉजी वार्ड के एचडीयू (हाई डिपेंडेंसी यूनिट) में उपचाराधीन थे। डॉक्टरों ने उन्हें बचाने का हरसंभव प्रयास किया, लेकिन बुधवार सुबह वह इस नश्वर संसार को त्यागकर ब्रह्मलीन हो गए।

अयोध्या में शोक की लहर

उनके निधन से अयोध्या सहित पूरे हिंदू समाज में शोक की लहर दौड़ गई। श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने उनके निधन की आधिकारिक घोषणा की और बताया कि उनकी पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए अयोध्या ले जाया जाएगा।

प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और संत समाज की श्रद्धांजलि

आचार्य सत्येंद्र दास के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपत राय, और रामलला मंदिर व्यवस्था से जुड़े अन्य पदाधिकारियों ने गहरी संवेदना व्यक्त की।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा,
“आचार्य सत्येंद्र दास जी का संपूर्ण जीवन श्रीराम जन्मभूमि की सेवा में समर्पित रहा। उन्होंने रामलला की अनवरत सेवा कर अपनी साधना को पूर्ण किया। प्रभु श्रीराम से उनकी आत्मा की शांति की प्रार्थना करता हूँ।”

रामलला मंदिर में दी जाएगी अंतिम श्रद्धांजलि

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने बताया कि आचार्य सत्येंद्र दास की पार्थिव देह को रामलला मंदिर ले जाया जाएगा, जहां अंतिम श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार विधि-विधान से संपन्न होगा।

आचार्य सत्येंद्र दास का योगदान अयोध्या और हिंदू समाज के लिए अतुलनीय था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय श्रीराम मंदिर की सेवा में समर्पित किया और अंतिम समय तक रामलला की पूजा-अर्चना में लगे रहे। उनके निधन से रामलला मंदिर की परंपरा में एक बड़ा शून्य उत्पन्न हो गया है।

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