आर-37 (आरवीवी-बीडी) मिसाइल पर विचार: भारतीय वायुसेना की लंबी-दूरी क्षमता को सशक्त बनाने का प्रस्ताव
नई दिल्ली/मॉस्को — भारतीय वायुसेना अपनी लंबी दूरी की हवाई क्षमता को बढ़ाने के उद्देश्य से रूस में निर्मित आर-37 (आरवीवी-बीडी) हवा-से-हवा मार करने वाली मिसाइल के अधिग्रहण पर विचार कर रही है। रक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस सप्ताह रूसी समकक्षों के साथ मुलाकात कर संभावित सौदे और तकनीकी विवेचन पर चर्चा करेंगे। यह निर्णय रणनीतिक तौर पर चीन तथा क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्वियों द्वारा तैनात लंबी-न्यूनतम सीमा की मिसाइलों का जवाब देने के रूप में देखा जा रहा है।

लंबी दूरी, उच्च प्राथमिकता लक्ष्य और रणनीतिक मायने
आर-37 को विश्व की दीर्घ-श्रेणी वाली हवा-से-हवा मिसाइलों में गिना जाता है। इसे विशेषकर तेज गति वाले लड़ाकू विमानों, उन्नत निगरानी विमान (AWACS) और उच्च मूल्य वाले रणनीतिक लक्ष्यों को निशाना बनाने के लिए डिजाइन किया गया है। भारतीय सीनियर अधिकारी इसे घरेलू वायु रक्षा रणनीति के उस हिस्से के रूप में देख रहे हैं जो दुश्मन के की-हाई-वैल्यू लक्ष्य — जैसे कि शत्रु के रडार और कमान-नियंत्रण प्लेटफॉर्म — को दूरी से ही बाधित करने की क्षमता दे सके।
विशेषज्ञों के अनुसार, आर-37 का क्रय यदि अंतिम रूप लेता है तो यह भारतीय वायुसेना को लंबी दूरी पर लक्ष्य मार गिराने की बढ़ी हुई क्षमता देगा, जिससे समकक्ष वायु शक्ति को वैसा ही जवाब दिया जा सकेगा जैसा हाल में पाकिस्तान द्वारा प्रयोग की गई चीनी पीएल-15 मिसाइल जैसी प्रणालियों से मिल रहा है।
चीन-प्रेरित चुनौतियों का प्रतिरूप और जवाबी रणनीति
पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्रीय वायुशक्ति में दीर्घ-श्रेणी क्षमताओं का विकास तेज हुआ है। इसी संदर्भ में भारतीय रक्षा निकाय आर-37 को एक व्यावहारिक विकल्प मान रहे हैं ताकि सीमा पार से आ सकने वाली उच्च श्रेणी की हवाई धमकियों का प्रभावी प्रत्युत्तर दिया जा सके। अधिकारी यह भी मानते हैं कि यदि विरोधी पक्ष की दूरस्थ मारक क्षमता पर नियंत्रण हासिल किया जा सके तो ऑपरेशनल योजनाओं में व्यापक रूप से लचीलापन आएगा।
वर्तमान में भारतीय पक्ष के समक्ष यह चुनौती है कि किस तरह से नई प्रणालियों को मौजूदा विमानों और रडार-नेटवर्क के साथ अच्छी तरह एकीकृत किया जाए। इसके लिए तकनीकी समन्वय, प्रशिक्षण और लॉजिस्टिक समर्थन पर भी गंभीर चर्चा आवश्यक होगी।
तकनीकी और परिचालन पहलुओं पर विचार-विमर्श आवश्यक
रक्षा मंत्रालय के प्रतिनिधियों और वायुसेना कमान के अधिकारियों द्वारा रूसी पक्ष के साथ होने वाली बैठकों में मिसाइल की सटीक क्षमता, लक्ष्य-परिक्षेपण सिस्टम, मिसाइल-निर्देशन, इंटरऑपरेबिलिटी व रखरखाव जैसे मुद्दों पर विस्तृत चर्चाएँ होंगी। खरीद के साथ-साथ स्थानीयकरण, स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता और दीर्घकालिक रखरखाव अनुबंध (एलओआई/एमओयू) प्रमुख बिंदु होंगे।
विशेषज्ञों का कहना है कि केवल हथियार खरीद कर लेना पर्याप्त नहीं; उसके बाद उसे अपने परिचालन ढाँचे में प्रभावी ढंग से शामिल करना और प्रशिक्षण-मानक स्थापित करना भी निर्णायक होता है। इसलिए इस प्रक्रिया में परीक्षण-उड़ानें, संयुक्त अभ्यास और तकनीकी हस्तांतरण पर भी जोर दिया जा सकता है।

क्षेत्रीय संतुलन और जोखिम-प्रबंधन
आर-37 जैसी लंबी-रेंज मिसाइलों के प्रवेश से क्षेत्रीय व्यवस्थाओं में सामरिक संतुलन पर प्रभाव पड़ेगा। यही कारण है कि निर्णय लेते समय राजनीतिक, कूटनीतिक और रणनीतिक मापदण्डों का समग्र मूल्यांकन आवश्यक है। खरीद की घोषणा अथवा तैनाती से प्रतिस्पर्धी देशों की प्रतिक्रिया, सीमा पार रणनीतियों और क्षेत्रीय रक्षा साझेदारियों पर पड़ने वाले प्रभावों का भी आकलन किया जाएगा।
आगे की प्रक्रिया में संसद, रक्षा खरीद समिति और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के तकनीकी तथा नीति समन्वयों के अनुरूप सभी आवश्यक अनुमोदन और पारदर्शी प्रक्रिया से काम किया जाएगा ताकि दीर्घकालिक रणनीतिक और परिचालन हित सुनिश्चित हो सकें।
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