नई दिल्ली। लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह ने शुक्रवार को उप सेना प्रमुख (वीसीओएएस) का पदभार ग्रहण कर लिया। यह नियुक्ति उन्हें निवर्तमान उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल एनएस राजा सुब्रमणि के स्थान पर मिली है, जो 39 वर्षों की सेवा के बाद सेवानिवृत्त हो गए। अपने कार्यभार के पहले दिन लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह ने राष्ट्रीय युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर राष्ट्र के लिए बलिदान देने वाले वीर जवानों को श्रद्धांजलि दी और साउथ ब्लॉक लॉन में सलामी गारद का निरीक्षण किया।
वीरता की अद्वितीय गाथा
लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह की सैन्य यात्रा अद्वितीय साहस और समर्पण से परिपूर्ण रही है। वर्ष 1989 में श्रीलंका में चलाए गए ऑपरेशन पवन के दौरान वे एक युवा द्वितीय लेफ्टिनेंट के रूप में 13 सदस्यीय त्वरित प्रतिक्रिया दल (क्विक रिएक्शन टीम) का नेतृत्व कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने एक जवाबी हमले में चार लिट्टे आतंकवादियों को मार गिराया और कई अन्य को घायल कर दिया था। इस हमले में पाँच भारतीय सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे। इस असाधारण साहस को याद करते हुए उन्होंने युद्ध स्मारक पर वीर नारियों और शहीदों के परिजनों के साथ पुष्पांजलि अर्पित की।
शानदार सैन्य पृष्ठभूमि
लेफ्टिनेंट जनरल पुष्पेंद्र सिंह को दिसंबर 1987 में पैराशूट रेजिमेंट (विशेष बल) की चौथी बटालियन में कमीशन प्राप्त हुआ था। वे ला मार्टिनियर कॉलेज, लखनऊ, लखनऊ विश्वविद्यालय और प्रतिष्ठित भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून के पूर्व छात्र हैं। उनके सैन्य जीवन में ‘ऑपरेशन पवन’, ‘ऑपरेशन मेघदूत’, ‘ऑपरेशन ऑर्किड’ और ‘ऑपरेशन रक्षक’ जैसे कठिन और चुनौतीपूर्ण अभियानों में सेवाएं शामिल हैं।

अंतरराष्ट्रीय अनुभव और प्रशासनिक दक्षता
जनरल सिंह को लेबनान और श्रीलंका में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में कार्य करने का अनुभव है। यह अनुभव उन्हें अंतरराष्ट्रीय सैन्य परिप्रेक्ष्य में भी दक्ष बनाता है। उन्होंने सेना मुख्यालय में महानिदेशक, ऑपरेशनल लॉजिस्टिक्स एवं स्ट्रैटेजिक मूवमेंट के रूप में भी कार्य किया है, जहाँ उन्होंने सेना की लॉजिस्टिक्स रणनीतियों को प्रभावी रूप से संचालित किया।
जिम्मेदारी का नया अध्याय
उप सेना प्रमुख के रूप में जनरल पुष्पेंद्र सिंह की नियुक्ति ऐसे समय में हुई है जब भारत की सीमाओं पर चुनौतियां बढ़ रही हैं। उनकी वीरता, प्रशासनिक अनुभव और रणनीतिक दृष्टिकोण भारतीय सेना को एक नई दिशा प्रदान करने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं। उनके नेतृत्व में सेना की कार्यप्रणाली में और अधिक प्रभावशीलता, अनुशासन और राष्ट्रप्रेम की भावना को बल मिलेगा।
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