संसद में स्थापित होंगे पुरी रथ यात्रा के पहिए, ओडिशा की संस्कृति को मिलेगा राष्ट्रीय सम्मान

नई दिल्ली। भारतीय संसद परिसर अब एक और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक धरोहर का साक्षी बनने जा रहा है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने पुरी रथ यात्रा में इस्तेमाल किए गए रथों के तीन पहिए संसद भवन में स्थापित करने की मंजूरी दे दी है। यह निर्णय न केवल संसद परिसर की ऐतिहासिक गरिमा को बढ़ाएगा बल्कि देश की सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक परंपराओं को भी राष्ट्रीय पहचान दिलाएगा।

प्रस्ताव से मंजूरी तक का सफर

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ओम बिरला हाल ही में पुरी दौरे पर गए थे। उसी दौरान श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) ने यह प्रस्ताव उनके समक्ष रखा कि रथ यात्रा के दौरान उपयोग किए गए रथों के पहियों को संसद भवन में स्थापित किया जाए। लोकसभा अध्यक्ष ने इसे तुरंत सहमति दी और अब संसद परिसर में भगवान जगन्नाथ, देवी सुभद्रा और भगवान बलभद्र के रथों—नंदीघोष, दर्पदलन और तालध्वज—के पहिए स्थापित होंगे।

संस्कृति का प्रतीक बनेंगे रथ के पहिए

इन पहियों को संसद में लगाने का उद्देश्य केवल सजावट नहीं है, बल्कि यह देश की आध्यात्मिक परंपरा, लोक विश्वास और सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक होगा। ओडिशा की रथ यात्रा विश्वविख्यात है और हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इसमें भाग लेते हैं। इस यात्रा के बाद परंपरा अनुसार रथों को खंडित कर दिया जाता है। ऐसे में संसद परिसर में रथ के पहियों की स्थायी स्थापना इसे राष्ट्रीय धरोहर बना देगी।

एसजेटीए के मुख्य प्रशासक अरबिंद पाधी ने ‘एक्स’ पर लिखा, “हम लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के आभारी हैं कि उन्होंने रथ यात्रा के दौरान इस्तेमाल किए गए तीनों रथों के पहियों को संसद परिसर में स्थापित करने की अनुमति दी। यह निर्णय ओडिशा की संस्कृति को राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाएगा।”

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पांच तरह की लकड़ियों से बनते हैं रथ

पुरी की रथ यात्रा के रथ पूरी तरह हाथ से बनाए जाते हैं और इनमें पांच खास किस्म की लकड़ियों का उपयोग होता है। इनमें फासी, धौरा, सिमली, सहजा और मही की लकड़ी प्रमुख हैं। खासकर धौरा की लकड़ी से बने पहिए सबसे मजबूत और टिकाऊ माने जाते हैं। बिना किसी स्केल या आधुनिक उपकरण के, पारंपरिक तरीकों से कारीगर लगभग 45 फीट ऊंचे और 200 टन से अधिक वजनी रथों का निर्माण करते हैं। यह प्रक्रिया लोककला और शिल्प परंपरा का अद्वितीय उदाहरण है।

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संसद में सांस्कृतिक प्रतीकों की श्रृंखला

संसद परिसर में यह दूसरा अवसर होगा जब किसी सांस्कृतिक धरोहर को स्थापित किया जाएगा। इससे पहले मई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद भवन में ‘सेंगोल’ (राजदंड) स्थापित किया था। यह वही राजदंड है जिसे 14 अगस्त 1947 को ब्रिटिश हुकूमत ने पं. जवाहरलाल नेहरू को सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक के रूप में सौंपा था। लंबे समय तक आनंद भवन और इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित रखने के बाद 75 साल बाद इसे संसद भवन में सम्मानपूर्वक स्थापित किया गया।

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रथ के पहियों की स्थापना के साथ संसद एक बार फिर भारतीय संस्कृति की विविधता और परंपराओं को आत्मसात करने का उदाहरण बनेगा। यह निर्णय केवल प्रतीकात्मक नहीं है बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देगा कि भारतीय लोकतंत्र अपनी जड़ों और सांस्कृतिक धरोहरों से गहराई से जुड़ा हुआ है।