चंडीगढ़।
पंजाब और हरियाणा के बीच लंबे समय से चला आ रहा पानी विवाद एक बार फिर तूल पकड़ता नजर आ रहा है। इसी कड़ी में आज 5 मई को पंजाब विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया, जिसमें कई अहम प्रस्तावों पर चर्चा और निंदा प्रस्ताव पारित करने की तैयारी की गई है। सत्र की शुरुआत जम्मू-कश्मीर के पहलगाम आतंकी हमले में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित कर की गई, लेकिन इसके बाद सदन का पूरा ध्यान पानी विवाद पर केंद्रित रहा।
पंजाब सरकार की योजना है कि सत्र में हरियाणा को पानी न देने का प्रस्ताव पारित किया जाए। इसके साथ ही भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड (BBMB) और भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी लाया जा रहा है। यह विवाद दरअसल हरियाणा द्वारा अधिक पानी की मांग और केंद्र सरकार की भूमिका को लेकर गहराता जा रहा है।
‘धक्का बर्दाश्त नहीं करेंगे’ — पंजाब का तीखा रुख
राज्य सरकार की ओर से मंत्री और आप प्रदेश अध्यक्ष अमन अरोड़ा ने कहा—
“प्यार से पंजाबियों की जान ले लो, लेकिन धक्का बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पंजाब ने हरियाणा को 4,000 क्यूसिक पानी मानवता के आधार पर दिया, लेकिन अब हम पर जबरन दबाव बनाया जा रहा है।”
अरोड़ा का यह बयान इस बात को साफ करता है कि पंजाब अब अपने जल अधिकारों को लेकर और कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र और हरियाणा मिलकर पंजाब पर जबरन निर्णय थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जो अब स्वीकार नहीं किया जाएगा।
राजनीतिक एकता की झलक
विपक्ष में बैठी कांग्रेस पार्टी ने भी इस मुद्दे पर सरकार के साथ खड़े होने की बात कही। कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा—
“21 साल पहले जब इसी तरह की स्थिति बनी थी, तब अन्य दलों ने कांग्रेस का समर्थन किया था। अब हम पंजाब सरकार के साथ खड़े हैं।”
यह बयान राज्य में राजनीतिक एकता का संकेत देता है, जहां पानी को लेकर दलगत राजनीति से ऊपर उठकर संयुक्त मोर्चा अपनाने का संकेत दिया गया है।
BBMB और BJP के खिलाफ प्रस्ताव
पंजाब सरकार BBMB की कार्यशैली और उसमें पंजाब के अधिकारों की अनदेखी को लेकर पहले से नाराज़ रही है। अब इस विशेष सत्र में BJP और बोर्ड के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाकर यह जताया जा रहा है कि जल प्रबंधन में पंजाब की भूमिका को नजरअंदाज किया जा रहा है।
पृष्ठभूमि में सतलुज-यमुना लिंक नहर विवाद
इस विवाद की जड़ सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर से जुड़ी है, जिसे हरियाणा अपने हिस्से का पानी लेने के लिए पूरा करवाना चाहता है। लेकिन पंजाब का दावा है कि राज्य के पास अतिरिक्त पानी नहीं है और यह उसका अधिकार है। केंद्र बार-बार इस मुद्दे पर हस्तक्षेप कर चुका है, लेकिन समाधान नहीं निकल पाया।
विश्लेषण
पंजाब में जल राजनीति अब संवेदनशील मोड़ पर पहुंच गई है। एक तरफ राज्य अपनी खेती और नागरिकों की जरूरतों के लिए पानी को लेकर चिंतित है, वहीं हरियाणा और केंद्र इसे राष्ट्रीय संसाधन मानते हुए समान वितरण की मांग कर रहे हैं।
इस बार विधानसभा में प्रस्ताव पारित होने के बाद विवाद और अधिक संवेदनशील हो सकता है। केंद्र सरकार को अब मध्यस्थता की भूमिका गंभीरता से निभानी होगी ताकि दोनों राज्यों के हितों का संतुलन सुनिश्चित किया जा सके।
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