पंजाब फर्जी एनकाउंटर मामला: 5 पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद, CBI कोर्ट का बड़ा फैसला
चंडीगढ़। पंजाब के तरनतारन जिले में वर्ष 1993 में हुए फर्जी एनकाउंटर मामले में सीबीआई की मोहाली स्थित विशेष अदालत ने एक ऐतिहासिक निर्णय देते हुए सेवानिवृत्त एसएसपी सहित पांच पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। यह फैसला 30 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद आया है, जिसमें न्याय की प्रतीक्षा कर रहे परिजनों को आखिरकार राहत मिली है।
सात निर्दोष युवकों की हत्या का मामला
यह मामला 27-28 जुलाई, 1993 का है। पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि तीन युवक — शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह — पुलिस हिरासत से सरकारी हथियार लेकर फरार हो गए थे। इसके बाद पुलिस ने 28 जुलाई को एक कथित मुठभेड़ में सात युवकों को मार गिराने का दावा किया।

लेकिन जांच में सामने आया कि यह मुठभेड़ फर्जी थी और मारे गए युवक न तो फरार थे, न ही उनके पास कोई हथियार था। इस फर्जी मुठभेड़ को थाना वैरोवाल और थाना सहराली के अंतर्गत दिखाया गया था।
सीबीआई जांच में खुला मामला
मामले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 12 दिसंबर 1996 को इसकी जांच सीबीआई को सौंपी थी। सीबीआई ने तीन वर्षों की विस्तृत जांच के बाद 1999 में एफआईआर दर्ज की। यह मामला शहीद हुए शिंदर सिंह की पत्नी नरिंदर कौर की शिकायत पर दर्ज किया गया था।
जांच में यह तथ्य भी सामने आया कि मारे गए युवकों की पहचान स्पष्ट होने के बावजूद उन्हें “लावारिस शव” बताकर अंतिम संस्कार कर दिया गया, ताकि कोई सबूत न बचे।

कोर्ट का फैसला और दोषियों की सूची
1 अगस्त 2025 को सीबीआई कोर्ट ने पांच पूर्व पुलिस अधिकारियों को दोषी करार दिया था। इसके बाद सोमवार को उन्हें उम्रकैद और साढ़े तीन-तीन लाख रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। दोषियों के नाम हैं:
- रिटायर्ड एसएसपी भूपेंद्रजीत सिंह
- रिटायर्ड डीएसपी दविंदर सिंह
- रिटायर्ड इंस्पेक्टर सूबा सिंह
- रिटायर्ड इंस्पेक्टर रघुबीर सिंह
- रिटायर्ड इंस्पेक्टर गुलबर्ग सिंह
इन सभी पर हत्या और आपराधिक साजिश के तहत मुकदमा चला। पहले इस मामले में कुल 10 पुलिसकर्मी आरोपित बनाए गए थे, जिनमें से 5 की ट्रायल के दौरान मृत्यु हो गई।
न्याय के लिए लंबा संघर्ष
यह फैसला पंजाब के मानवाधिकार इतिहास में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। फर्जी मुठभेड़ों को लेकर लंबे समय से सवाल उठते रहे हैं, और यह मामला उन आरोपों की पुष्टि करता है। मृतकों के परिजनों और मानवाधिकार संगठनों ने वर्षों तक न्याय के लिए संघर्ष किया, जिसमें अब जाकर उन्हें सफलता मिली है।
व्यापक संदेश
सीबीआई कोर्ट का यह फैसला सत्ता और वर्दी के दुरुपयोग के खिलाफ एक कड़ा संदेश देता है। यह स्पष्ट करता है कि कानून के नाम पर किसी निर्दोष की जान लेने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना भी ताकतवर क्यों न हो।
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