Trending News

June 1, 2025 3:24 PM

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जताई आपत्ति, पूछा – संविधान में समयसीमा तय करने का अधिकार किसे?

  • तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में जो फैसला सुनाया था, उस पर अब राष्ट्रपति ने औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई

नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया आदेश पर संवैधानिक सवाल खड़े कर दिए हैं। 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में जो फैसला सुनाया था, उस पर अब राष्ट्रपति ने औपचारिक आपत्ति दर्ज कराई है। उन्होंने कहा कि संविधान में राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर निर्णय के लिए किसी निश्चित समयसीमा का कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय ने यह सीमा किस आधार पर तय की?

सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसकी संवैधानिक व्याख्या

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राज्यपाल को भेजे गए विधेयकों पर राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। साथ ही यह भी कहा गया कि यदि इस अवधि में निर्णय नहीं लिया जाता, तो राष्ट्रपति को राज्य सरकार को कारण बताना होगा। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधानसभा को लौटा सकते हैं, लेकिन अगर विधानसभा उसे दोबारा पारित करती है तो राष्ट्रपति को निर्णय लेना होगा।

न्यायिक समीक्षा और अनुच्छेद 201 की व्याख्या

कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति के निर्णय की न्यायिक समीक्षा संभव है। यानी अगर यह पाया जाता है कि राज्यपाल या राष्ट्रपति ने मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत कोई कदम उठाया है, तो उस पर कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है। अदालत ने इसे ‘संवैधानिक संतुलन’ बनाए रखने के लिए आवश्यक बताया।

राष्ट्रपति का रुख: न्यायपालिका की सीमा तय हो

राष्ट्रपति ने अब इस पूरे आदेश पर गंभीर सवाल उठाते हुए न्यायपालिका की भूमिका और सीमा पर स्पष्टता मांगी है। उन्होंने संकेत दिया कि यह आदेश कार्यपालिका की स्वतंत्रता में न्यायिक हस्तक्षेप का मामला बन सकता है। उनका कहना है कि जब तक संविधान में ऐसा कोई प्रावधान न हो, तब तक कोई भी संस्था इस तरह की समयसीमा तय नहीं कर सकती।

विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन की नई बहस

यह विवाद अब एक नई संवैधानिक बहस की ओर बढ़ रहा है – जिसमें सवाल यह है कि क्या न्यायपालिका कार्यपालिका के संवैधानिक कार्यों पर समयसीमा थोप सकती है? और अगर हां, तो उसकी संवैधानिक वैधता और सीमाएं क्या हैं?

Share on facebook
Share on twitter
Share on linkedin
Share on whatsapp
Share on telegram