- प्राकृतिक जलस्रोतों में विसर्जन अब भी रहेगा प्रतिबंधित
मुंबई। गणेशोत्सव को लेकर मूर्तिकारों और गणेश मंडलों के लिए एक बड़ी राहत सामने आई है। बंबई उच्च न्यायालय ने प्लास्टर ऑफ पेरिस (पीओपी) से बनी गणेश प्रतिमाओं के निर्माण और बिक्री पर लगाए गए प्रतिबंध को हटा दिया है। हालांकि अदालत ने साफ किया है कि इन मूर्तियों का विसर्जन केवल कृत्रिम तालाबों में ही किया जा सकेगा, किसी भी हाल में इन्हें झीलों, नदियों या समुद्र जैसे प्राकृतिक जलस्रोतों में नहीं विसर्जित किया जा सकता।
यह निर्णय मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मारणे की पीठ ने सुनाया। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया है कि तीन सप्ताह के भीतर एक समिति गठित की जाए, जो पीओपी मूर्तियों के सुरक्षित विसर्जन को लेकर दिशा-निर्देश और वैकल्पिक उपाय तय करेगी।
मूर्तिकारों और मंडलों ने ली राहत की सांस
यह फैसला खास तौर पर उन हजारों मूर्तिकारों के लिए राहत लेकर आया है जो पारंपरिक रूप से पीओपी से मूर्तियां बनाते आए हैं। साथ ही गणेश मंडलों को भी बड़ी राहत मिली है, जो हर साल गणेशोत्सव के लिए बड़ी संख्या में मूर्तियां स्थापित करते हैं।
हाल के वर्षों में पर्यावरणीय चिंताओं के चलते पीओपी पर रोक लगाई गई थी, क्योंकि इसके जल स्रोतों में विसर्जन से पानी में प्रदूषण होता है और जलीय जीवन प्रभावित होता है। इसके चलते मूर्तिकारों और गणेश मंडलों को मिट्टी की मूर्तियों की ओर रुख करना पड़ा, जो महंगी और नाजुक होती हैं।
पर्यावरण संतुलन के लिए सख्ती भी बरकरार
हालांकि कोर्ट ने निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध हटाया है, लेकिन पर्यावरणीय मानकों पर कोई समझौता नहीं किया गया। पीठ ने दो टूक कहा कि कोई भी मूर्ति — चाहे वह किसी भी सामग्री की बनी हो — प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जित नहीं की जा सकती।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की एक विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कोर्ट ने कहा कि पीओपी से मूर्तियां बनाई जा सकती हैं, लेकिन उनके निष्पादन (विसर्जन) के लिए विशेष उपाय अनिवार्य होंगे। ऐसे में कृत्रिम विसर्जन टैंक और प्रशासनिक निगरानी आवश्यक होगी।

अदालत ने क्यों बदला फैसला?
पीओपी प्रतिबंध के खिलाफ दायर याचिका में तर्क दिया गया था कि मूर्तिकारों की आजीविका इससे बुरी तरह प्रभावित हो रही है, जबकि विसर्जन को लेकर वैकल्पिक उपाय अपनाए जा सकते हैं। कोर्ट ने इस याचिका को उचित मानते हुए उत्पादन और बिक्री की अनुमति तो दी, लेकिन विसर्जन पर पर्यावरण नियमों को सख्ती से लागू रखने का आदेश भी दिया।
आगे क्या होगा?
- राज्य सरकार को तीन सप्ताह में समिति बनानी होगी
- विसर्जन के लिए हर नगर निकाय को कृत्रिम तालाब सुनिश्चित करने होंगे
- मूर्तिकारों और आयोजकों को विसर्जन नियमों पर जागरूक किया जाएगा
- नियम तोड़ने पर दंडात्मक कार्रवाई संभव होगी
यह फैसला परंपरा और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। आने वाले दिनों में यह देखना होगा कि गणेशोत्सव की तैयारियों में प्रशासनिक दिशा-निर्देश कितनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं।