- ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के दूसरे चरण को दिल्ली के रिज क्षेत्र से औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया
- गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली 700 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रृंखला में हरियाली लौटाई जाएगी
नई दिल्ली। विश्व पर्यावरण दिवस 2025 के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की सबसे चुनौतीपूर्ण पर्यावरणीय चुनौतियों में से एक – मरुस्थलीकरण और वनों की कटाई – से निपटने के लिए एक महत्वाकांक्षी परियोजना की शुरुआत की। अरावली ग्रीन वॉल परियोजना और ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के दूसरे चरण को दिल्ली के रिज क्षेत्र से औपचारिक रूप से लॉन्च किया गया।
क्या है अरावली ग्रीन वॉल परियोजना?
यह परियोजना अरावली पर्वतमाला के पुनर्जीवन की दिशा में केंद्र सरकार की एक गंभीर पहल है, जिसका मकसद लगभग 64 लाख हेक्टेयर भूमि पर हरित पट्टी विकसित करना है। इस योजना के तहत 29 जिलों में 1000 नर्सरियों की स्थापना की जाएगी और गुजरात से लेकर दिल्ली तक फैली 700 किलोमीटर लंबी पर्वत श्रृंखला में हरियाली लौटाई जाएगी। सरकार के अनुसार, इस परियोजना के तहत बनने वाली 5 किलोमीटर चौड़ी हरित पट्टी न केवल पर्यावरणीय क्षरण को रोकेगी, बल्कि जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में भी मददगार होगी। यह क्षेत्र मरुस्थलीकरण, खनन, वनों की कटाई और अतिक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है।
प्रधानमंत्री ने दिल्ली के रिज क्षेत्र में किया पौधारोपण
इस लॉन्च के अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्वयं दक्षिण दिल्ली स्थित रिज क्षेत्र में पौधा रोपण किया। उनके साथ हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और दिल्ली के मुख्यमंत्री भी अपने-अपने राज्यों से इस अभियान में वर्चुअली जुड़े।
‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान को मिली नई ऊर्जा
प्रधानमंत्री ने इसी मौके पर ‘एक पेड़ मां के नाम’ अभियान के दूसरे चरण की भी शुरुआत की। यह अभियान भावनात्मक जुड़ाव के साथ पर्यावरण को जोड़ने का प्रयास है, जहां लोग अपनी माताओं के नाम पर पेड़ लगाकर धरती माता को श्रद्धांजलि देते हैं। इस मुहिम की शुरुआत 5 जून 2024 को हुई थी, और अब तक इसके तहत 109 करोड़ से अधिक पेड़ लगाए जा चुके हैं।
अरावली: चार राज्यों को जोड़ने वाला जीवनदायी श्रृंखला
अरावली पर्वतमाला दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात से होकर गुजरती है। इसमें 29 ज़िले, चार बाघ अभयारण्य, और 22 वन्यजीव अभयारण्य शामिल हैं। इन इलाकों में वनों की कटाई और जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा असर पड़ा है। ऐसे में यह परियोजना जैव विविधता और जल स्रोतों को बचाने की दिशा में एक मजबूत कदम मानी जा रही है।