पितृपक्ष 2025: 122 साल बाद बना दुर्लभ संयोग, जानें तर्पण की विधि और पितरों की शांति के उपाय

इस वर्ष का पितृपक्ष बेहद खास होने वाला है। 7 सितंबर 2025 को भाद्रपद पूर्णिमा से इसकी शुरुआत होगी और 21 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या के साथ इसका समापन होगा। विशेष बात यह है कि इस बार पितृपक्ष की शुरुआत पूर्ण चंद्र ग्रहण से और समापन सूर्य ग्रहण से हो रहा है। ज्योतिषीय दृष्टि से ऐसा दुर्लभ संयोग 122 साल बाद बना है। मान्यता है कि ऐसे समय में किए गए तर्पण और श्राद्ध कर्म का फल कई गुना बढ़ जाता है और पितरों की आत्मा को विशेष तृप्ति मिलती है।

पितृपक्ष का महत्व

पितृपक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। यह 16 दिन का समय पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृ ऋण से मुक्ति के लिए समर्पित होता है। शास्त्रों में कहा गया है— “श्राद्धेना पितृणः तृप्तिः” यानी श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं और संतानों को आशीर्वाद देते हैं। जिन घरों में श्राद्ध विधिपूर्वक किया जाता है, वहां सुख-समृद्धि, संतति की वृद्धि और शांति बनी रहती है। वहीं, इसे न करने पर पितृदोष का भय बना रहता है, जिससे जीवन में बाधाएं, आर्थिक संकट और मानसिक अशांति उत्पन्न हो सकती है।

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तर्पण की विधि

तर्पण पितृपक्ष का सबसे महत्वपूर्ण कर्म है। इसे करने के लिए निम्न विधि का पालन करना चाहिए:

  1. स्थान का चयन:
    तर्पण किसी पवित्र नदी, तालाब, सरोवर या घर के आंगन में जल भरकर भी किया जा सकता है। नदी या तीर्थस्थल पर तर्पण को सर्वोत्तम माना गया है।
  2. सामग्री की व्यवस्था:
    कुश, काला तिल, अक्षत (चावल), पुष्प, जल, दूध, शहद, घी, यव (जौ) और पिंडदान के लिए आटे के गोले तैयार करने चाहिए।
  3. विधि:
  • स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और कुश के आसन पर पूर्व या दक्षिण दिशा की ओर मुख करके बैठें।
  • जल में काला तिल, कुश और पुष्प मिलाकर दोनों हाथों से अंजलि बनाकर पितरों का नाम लेकर “ॐ पितृभ्यः स्वधा” मंत्र के साथ अर्पण करें।
  • यह क्रिया तीन बार करनी चाहिए—पहली बार पितरों के लिए, दूसरी बार ऋषियों के लिए और तीसरी बार देवताओं के लिए।
  • इसके बाद पिंडदान किया जाता है, जिसमें आटे या चावल के गोले तिल और घी के साथ अर्पित किए जाते हैं।
  1. भोजन दान:
    श्राद्ध कर्म के अंत में ब्राह्मणों और जरूरतमंदों को भोजन कराना तथा दक्षिणा देना आवश्यक है। इससे पितरों की आत्मा को संतोष मिलता है।

पितरों की शांति के लिए विशेष उपाय

  1. पितृपक्ष के दिनों में रोजाना शाम को घर के दक्षिण भाग में दीपक जलाना चाहिए।
  2. पीपल के पेड़ के नीचे जल अर्पण करना और दीपक जलाना पितरों की तृप्ति के लिए उत्तम माना गया है।
  3. गाय, कुत्ते, कौए और चींटियों को भोजन कराना पितरों को प्रसन्न करने का सरल उपाय है।
  4. सर्वपितृ अमावस्या के दिन गरीबों और ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र और दान-दक्षिणा देना अत्यंत पुण्यकारी है।
  5. “ॐ नमः शिवाय” और “ॐ पितृभ्यः स्वधा” मंत्र का जप पितृदोष निवारण में सहायक है।
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122 साल बाद का दुर्लभ संयोग

इस बार का पितृपक्ष इसलिए खास है क्योंकि इसकी शुरुआत पूर्ण चंद्र ग्रहण और समापन सूर्य ग्रहण के साथ हो रहा है। ज्योतिषाचार्यों का मानना है कि ऐसा संयोग अत्यधिक शक्तिशाली होता है। ग्रहणकाल में किया गया तर्पण और दान सामान्य दिनों की अपेक्षा कई गुना फलदायी होता है। यह पितृ शांति, वंश वृद्धि और पितृदोष निवारण का उत्तम अवसर है।