भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ ऑपरेशन सिंदूर चलाया। इस ऑपरेशन को लेकर कई खास पहलू थे, जो इसे और भी महत्वपूर्ण बनाते हैं। सबसे पहले तो, इस ऑपरेशन का नाम "सिंदूर" क्यों रखा गया, इसके पीछे गहरी भावनाएं और कारण छिपे हैं।

ऑपरेशन सिंदूर का नाम क्यों रखा गया?

22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकवादी हमले में 26 पर्यटकों की बेरहमी से हत्या की गई थी। इन हमलों में, आतंकवादियों ने धर्म पूछकर केवल पुरुषों को निशाना बनाया। इस हमले में मारे गए 25 भारतीय और एक नेपाली नागरिकों की हत्या ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। खासकर उन महिलाओं की स्थिति ने भारत को प्रेरित किया। आतंकवादी हमले में मारे गए व्यक्तियों की पत्नियों की पीड़ाओं और आंसुओं ने पूरे राष्ट्र को झकझोर दिया, और यही कारण था कि ऑपरेशन का नाम "सिंदूर" रखा गया। यह उन महिलाओं की व्यथा और उनकी याद में एक श्रद्धांजलि था, जिन्होंने अपने पतियों को खो दिया।

प्रेस कॉन्फ्रेंस में महिला अफसरों का योगदान

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान, भारतीय सेना ने एक ऐतिहासिक प्रेस ब्रीफिंग आयोजित की, जिसमें दो महिला सैन्य अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने इस सैन्य ऑपरेशन की पूरी जानकारी दी। यह भारत की सेना में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उनके द्वारा निभाए गए अहम योगदान का प्रतीक था। भारत में महिलाओं की सैन्य सेवाओं में बढ़ती भूमिका यह साबित करती है कि अब महिलाएं भी युद्ध और सुरक्षा की दुनिया में पुरुषों के समान रूप से आगे बढ़ रही हैं।

क्यों मुस्लिम अधिकारी की उपस्थिति?

ऑपरेशन सिंदूर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुस्लिम महिला अफसर की उपस्थिति का भी एक महत्वपूर्ण संदर्भ था। कर्नल सोफिया कुरैशी ने न केवल एक महिला के रूप में, बल्कि एक मुस्लिम अफसर के रूप में भी इस ऑपरेशन में भाग लिया। यह भारत की विविधता और एकता को प्रदर्शित करता है। भारतीय सेना में विभिन्न धर्मों और जातियों के लोग मिलकर काम करते हैं, और यह कर्नल कुरैशी का योगदान उन सभी के लिए प्रेरणा है जो किसी भी धर्म, जाति या लिंग से जुड़ी सीमाओं को तोड़कर देश की सेवा में काम करते हैं।

इस तरह से, ऑपरेशन सिंदूर न सिर्फ एक सैन्य अभियान था, बल्कि यह देश की एकता, विविधता और आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष का प्रतीक भी बन गया।

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