ओबीसी आरक्षण मामले में सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई टली, अब अगले माह होगी सुनवाई
सॉलिसिटर जनरल ने मांगा और समय, कमलनाथ ने सरकार पर उठाए सवाल
भोपाल। मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27% आरक्षण देने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) में गुरुवार को फिर सुनवाई टल गई।
इस महत्वपूर्ण संवैधानिक मामले की सुनवाई अब अगले महीने के पहले सप्ताह में की जाएगी।
🏛️ सॉलिसिटर जनरल ने मांगा अतिरिक्त समय
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने अदालत से कहा कि इस मुद्दे में कई तकनीकी और कानूनी पहलू शामिल हैं, जिन्हें गहराई से समझने के लिए थोड़ा और समय चाहिए।
अदालत ने उनकी मांग स्वीकार करते हुए सुनवाई स्थगित कर दी।
बुधवार को हुई पिछली सुनवाई में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि —
“यह मामला मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय (MP High Court) को वापस भेजा जा सकता है, क्योंकि वहां से कोई ठोस फैसला नहीं आया है। अगर उच्च न्यायालय का कोई निर्णय होता तो सुप्रीम कोर्ट के लिए निर्णय देना आसान होता।”
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की थी कि चूंकि राज्य की डेमोग्राफी, टोपोग्राफी और सामाजिक स्थिति से संबंधित पहलुओं की बेहतर समझ उच्च न्यायालय को है, इसलिए यह मामला वहीं सुना जाना उचित रहेगा।
📑 पृष्ठभूमि: कमलनाथ सरकार में लागू हुआ था 27% आरक्षण
यह मामला 2019 में शुरू हुआ था जब कमलनाथ सरकार ने मध्यप्रदेश में ओबीसी वर्ग के लिए आरक्षण 14% से बढ़ाकर 27% कर दिया था।
इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में याचिकाएं दायर की गईं, जिसमें यह कहा गया कि आरक्षण की यह सीमा कानूनी रूप से 50% से अधिक नहीं हो सकती।
इस मुद्दे पर राज्य सरकार और केंद्र के बीच कई बार कानूनी बहसें हो चुकी हैं।
🗣️ कमलनाथ का सवाल — सरकार बार-बार वक्त क्यों मांग रही?
इस बीच, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा —
“मध्यप्रदेश में ओबीसी आरक्षण का मामला अब सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में है, लेकिन सवाल यह है कि सरकार बार-बार वक्त क्यों मांग रही है? पिछली सुनवाई में भी सरकार पूरी तैयारी से नहीं पहुंची थी और अब फिर वही दोहराया जा रहा है।”
उन्होंने आगे कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल उठाए हैं, जो दर्शाता है कि राज्य सरकार इस मुद्दे को लेकर स्पष्ट नीति और तैयारी से वंचित है।
📅 अगली सुनवाई अगले माह
अब यह मामला अगले महीने के पहले सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाएगा।
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, यह निर्णय आने वाले समय में राज्य के आरक्षण ढांचे और सामाजिक संतुलन पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकता है।
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