• पाकिस्तान की ओर से हुए हर हवाई हमले को नाकाम करने के बाद भारतीय वायुसेना अब और ज्यादा शक्तिशाली एयर डिफेंस प्रणाली तैयार करने में जुट गई

नई दिल्ली। 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान पाकिस्तान की ओर से हुए हर हवाई हमले को नाकाम करने के बाद भारतीय वायुसेना अब और ज्यादा शक्तिशाली एयर डिफेंस प्रणाली तैयार करने में जुट गई है। सूत्रों के अनुसार, वायुसेना अमेरिका के 'पैट्रियट सिस्टम' और इजराइल के 'आयरन डोम' से भी बेहतर एयर डिफेंस सिस्टम बनाने की दिशा में अग्रसर है। यह सिस्टम न केवल सीमाओं की रक्षा करेगा, बल्कि पूरे देश को हवाई खतरों से सुरक्षित रखने में सक्षम होगा।

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स्वदेशी तकनीक से बनेगा दुनिया का सबसे स्मार्ट एयर डिफेंस सिस्टम

भारतीय वायुसेना का डिज़ाइन ब्यूरो फिलहाल ऐसे एयर डिफेंस सिस्टम्स पर काम कर रहा है, जो नॉन-रोटेटिंग AESA राडार तकनीक पर आधारित होंगे। ये राडार एक साथ 200 दुश्मन ड्रोन को 360 डिग्री कवरेज के साथ ट्रैक कर सकेंगे। साथ ही, एयर-माइन सेंसर सिस्टम 2,000 मीटर की ऊंचाई और 1 किमी परिधि में वायुमंडलीय गड़बड़ी के बीच ड्रोन की मौजूदगी को पहचानने में सक्षम होगा।

स्मार्ट ड्रोन और स्टेल्थ हथियार भी लाइन में

भारतीय वायुसेना केवल डिफेंस नहीं, बल्कि आक्रामक तैयारी में भी तेजी से काम कर रही है। स्टेल्थ कॉम्बैट ड्रोन, मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्योरेंस UAV और स्मार्ट लॉइटरिंग म्यूनिशन्स जैसे अत्याधुनिक हथियारों की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है। कुछ ड्रोन ऐसे होंगे जिन्हें हेलिकॉप्टर के जरिए दुश्मन की सीमा के पास से लॉन्च किया जा सकेगा, जिससे दुश्मन की एयरस्पेस में सटीक निगरानी और आक्रमण संभव होगा।

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रूस से जल्द मिलेगी नई S-400 मिसाइलें

'ऑपरेशन सिंदूर' में इस्तेमाल हुई S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की मिसाइलों की भरपाई रूस से जल्द की जाएगी। रक्षा मंत्रालय के अनुसार, एक और S-400 स्क्वॉड्रन भारत को आगामी एक-दो महीने में मिल सकता है। वर्ष 2026 तक एक अतिरिक्त स्क्वॉड्रन की आपूर्ति भी निर्धारित है। गौरतलब है कि एक S-400 स्क्वॉड्रन में कुल 256 मिसाइलें होती हैं।

चीन और पाकिस्तान के खतरे को ध्यान में रखते हुए रणनीति

विशेषज्ञ मानते हैं कि चीन और पाकिस्तान की ओर से भविष्य में किसी भी संभावित हवाई खतरे से निपटने के लिए भारत को बहुस्तरीय, तीव्र प्रतिक्रिया वाले और पूर्णतः स्वदेशी डिफेंस प्लेटफॉर्म की आवश्यकता है। ऐसे में वायुसेना की यह नई पहल न केवल सामरिक मजबूती है, बल्कि तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम भी है।