निर्मला सीतारमण का बयान: वैश्विक उथल-पुथल का भारत की GDP पर सीमित असर, 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य
कहा – वैश्विक उथल-पुथल के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत, 8% ग्रोथ दर हासिल करनी होगी ज़रूरी
नई दिल्ली, 3 अक्टूबर। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि मौजूदा वैश्विक उथल-पुथल और अस्थिरता का असर भारत की अर्थव्यवस्था पर सीमित रहेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत आज इतनी मजबूती से खड़ा है कि बाहरी झटकों और ऊर्जा-व्यापार असंतुलन से निपटने में सक्षम है। सीतारमण नई दिल्ली में शुरू हुए चौथे कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव (KEC) के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रही थीं।
2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का लक्ष्य
वित्त मंत्री ने कहा कि भारत का बड़ा लक्ष्य वर्ष 2047 तक देश को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। इसके लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को लगातार 8% की औसत वार्षिक ग्रोथ रेट हासिल करनी होगी। उन्होंने कहा कि “विकसित भारत” का सपना आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी दोनों के सहारे पूरा किया जा सकता है। आत्मनिर्भरता का अर्थ बंद अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि उत्पादन, तकनीक और नवाचार में भारत को आत्मनिर्भर बनाना है।

घरेलू कारक हैं विकास की रीढ़
सीतारमण ने अपने संबोधन में कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि मुख्य रूप से घरेलू कारकों पर आधारित है। यही मजबूती हमें वैश्विक संकटों के दौर में भी स्थिर बनाए रखती है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय की उथल-पुथल किसी अस्थायी रुकावट की तरह नहीं है, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक बदलाव हो रहे हैं। भारत के लिए यह अवसर भी है कि वह नई परिस्थितियों के अनुरूप अपनी रणनीति तैयार करे।
वैश्विक व्यवस्था पर सवाल और सुधार की ज़रूरत
वित्त मंत्री ने अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि अब वैश्विक संस्थान विश्व समुदाय का भरोसा खो रहे हैं। हाल ही में हुई G20 बैठक का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि विशेषज्ञों ने भी इन संस्थानों में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया है, ताकि वैश्विक स्थिरता को फिर से बहाल किया जा सके।
सीतारमण ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय नियमों को नए सिरे से लिखा जा रहा है और नई वैश्विक संतुलन प्रणाली तैयार हो रही है। इस प्रक्रिया में कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें अस्थिर ऊर्जा मूल्य, कम निवेश और व्यापार बाधाएं प्रमुख हैं।
भू-राजनीतिक संघर्ष और नए गठबंधन
वित्त मंत्री ने अपने संबोधन में वर्तमान भू-राजनीतिक परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि आज दुनिया में युद्ध और रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता तेजी से बढ़ रही हैं। इससे सहयोग और संघर्ष की परिभाषा बदल रही है। प्रतिबंध, टैरिफ और अलगाव की रणनीतियां वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को नए ढंग से आकार दे रही हैं।
उन्होंने कहा कि “कुछ पुराने गठबंधन कमजोर हो रहे हैं और दुनिया में नए गठबंधन उभर रहे हैं।” ऐसे माहौल में भारत के सामने चुनौतियां भी हैं, लेकिन साथ ही यह हमारी लचीलापन और जुझारूपन को उजागर करने का अवसर भी है।

आरबीआई का अनुमान और भारत की स्थिरता
गौरतलब है कि हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में चालू वित्त वर्ष की GDP ग्रोथ दर का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है। यह संकेत है कि वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारत की अर्थव्यवस्था स्थिर बनी हुई है।
कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव – समृद्धि की तलाश
इस वर्ष के कौटिल्य इकोनॉमिक कॉन्क्लेव की थीम है – “उथल-पुथल भरे समय में समृद्धि की तलाश”। तीन दिवसीय इस सम्मेलन में 30 से अधिक देशों के 75 विदेशी प्रतिनिधियों समेत कई वैश्विक विशेषज्ञ शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन का समापन 5 अक्टूबर को विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर करेंगे।

वित्त मंत्री ने कहा कि ऐसे समय में जब वैश्विक व्यवस्था नए सिरे से गढ़ी जा रही है, भारत के पास यह अवसर है कि वह अपनी आर्थिक ताकत, जनसंख्या लाभांश और घरेलू बाजार का उपयोग करके विश्व में अपनी स्थिति और भी सशक्त बनाए।
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