नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन लगातार बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में राजधानी काठमांडू में हजारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर मौजूदा लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और देश में फिर से राजशाही की बहाली की मांग उठाई। इन प्रदर्शनों के चलते नेपाल की राजनीतिक स्थिरता पर सवाल खड़े हो गए हैं और देश में एक नई बहस छिड़ गई है।
लोकतांत्रिक सरकार के खिलाफ बढ़ता असंतोष
नेपाल में 2008 में राजशाही का अंत हुआ था और लोकतांत्रिक प्रणाली की स्थापना की गई थी। लेकिन हाल के वर्षों में राजनीतिक अस्थिरता, भ्रष्टाचार और सरकार की नीतियों से असंतुष्ट लोगों का एक बड़ा वर्ग अब फिर से राजशाही के समर्थन में खुलकर सामने आ रहा है। बीते कुछ हफ्तों में, राजशाही समर्थक प्रदर्शनकारियों ने कई शहरों में रैलियां निकालीं, जिनमें सबसे बड़ा प्रदर्शन काठमांडू में हुआ।
इन प्रदर्शनों में शामिल लोगों का कहना है कि नेपाल में लोकतंत्र आने के बाद से राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। उनके मुताबिक, राजशाही के समय देश अधिक संगठित और स्थिर था, जबकि अब बार-बार सरकारें बदलती हैं और विकास कार्य ठप पड़े हैं।
योगी आदित्यनाथ का पोस्टर बना विवाद का केंद्र
इस पूरे घटनाक्रम में नया मोड़ तब आया, जब एक रैली में भारत के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पोस्टर लहराया गया। इस पोस्टर में योगी आदित्यनाथ को हिंदू राष्ट्रवाद के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया, जिससे विवाद खड़ा हो गया। नेपाल में एक तबका इसे भारत के राजनीतिक प्रभाव के रूप में देखने लगा, जबकि कुछ लोगों ने इसे महज एक भावनात्मक अभिव्यक्ति करार दिया।
योगी आदित्यनाथ के पोस्टर के चलते यह मामला राजनीतिक रूप से और गरमा गया। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि नेपाल की संप्रभुता और राजनीतिक स्थिति पर बाहरी हस्तक्षेप स्वीकार नहीं किया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि नेपाल की राजनीति पूरी तरह स्वतंत्र है और बाहरी प्रभाव को किसी भी रूप में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

नेपाल में बढ़ती अस्थिरता और भविष्य की राह
नेपाल में राजशाही समर्थक प्रदर्शन अब केवल राजधानी तक सीमित नहीं हैं, बल्कि देश के अन्य हिस्सों में भी यह मांग तेजी से उठ रही है। यह स्थिति नेपाल की लोकतांत्रिक सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लेती और जनता के असंतोष को दूर करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाती, तो आने वाले दिनों में नेपाल में और भी बड़े प्रदर्शन देखने को मिल सकते हैं।
नेपाल में राजशाही की वापसी होगी या नहीं, यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इन प्रदर्शनों ने यह साफ कर दिया है कि देश की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था पर जनता का विश्वास कमजोर पड़ रहा है और नेपाल की राजनीति एक नए मोड़ की ओर बढ़ रही है।
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