- भ्रष्टाचार के खिलाफ भड़के जनआंदोलन ने अब भयावह रूप ले लिया
- असामाजिक तत्व स्थिति का फायदा उठाकर लूटपाट, आगजनी और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे
काठमांडू। नेपाल में सोशल मीडिया बैन और भ्रष्टाचार के खिलाफ भड़के जनआंदोलन ने अब भयावह रूप ले लिया है। लगातार बढ़ती हिंसा और अराजकता को देखते हुए मंगलवार रात 10 बजे से नेपाली सेना ने पूरे देश का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। सेना के प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा कि कुछ असामाजिक तत्व स्थिति का फायदा उठाकर लूटपाट, आगजनी और सरकारी संपत्तियों को नुकसान पहुंचा रहे हैं। सेना ने जनता से अपील की कि वह हिंसक गतिविधियों से दूर रहें और शांति बनाए रखें। इस बीच, जनआक्रोश बढ़ता देख प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और सुरक्षा कारणों से काठमांडू छोड़ दिया है। लेकिन उनके इस्तीफे के बावजूद स्थिति सामान्य नहीं हो पाई। गुस्साए प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री ओली के निजी आवास, राष्ट्रपति भवन और सुप्रीम कोर्ट परिसर में आगजनी कर दी। राजधानी और आसपास के इलाकों में हुई झड़पों में अब तक 22 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 400 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं।

पूर्व प्रधानमंत्रियों और मंत्रियों को भी बनाया निशाना
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा सिर्फ वर्तमान सरकार तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों के घरों को आग के हवाले कर दिया।
- पूर्व पीएम झालानाथ खनाल के घर में आग लगने से उनकी पत्नी राजलक्ष्मी चित्रकार गंभीर रूप से झुलस गईं। उन्हें कीर्तिपुर बर्न अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई।
- पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा को उनके घर में घुसकर प्रदर्शनकारियों ने बुरी तरह पीटा।
- वहीं, वित्त मंत्री विष्णु पौडेल को उनके घर के पास प्रदर्शनकारियों ने दौड़ा-दौड़ाकर मारा।
इसके अलावा पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल प्रचंड के घर में भी आगजनी की गई। इस हिंसा ने नेपाल की राजनीति को गहराई से हिला कर रख दिया है।
जेल में आगजनी, 500 कैदी फरार
अशांति के बीच नवलपरासी पश्चिम जिला कारागार में कैदियों ने रिहाई की मांग को लेकर बगावत कर दी। जेल में आगजनी की गई और सुरक्षाकर्मियों पर हमला किया गया। इस अफरा-तफरी में 500 से ज्यादा कैदी भागने में सफल रहे।
स्थिति को काबू में करने के लिए सेना, पुलिस और सशस्त्र बलों की भारी तैनाती की गई, लेकिन अधिकांश कैदी भागने में कामयाब रहे। इससे आम जनता में दहशत और बढ़ गई है।

नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता की जड़ें
नेपाल में 2008 तक 250 वर्षों तक राजशाही रही।
- 1951 में लोकतंत्र की शुरुआत हुई, लेकिन इसे बार-बार बाधित किया गया।
- 1996 से 2006 तक माओवादी विद्रोहियों और राजशाही के बीच 10 साल तक गृहयुद्ध चला, जिसमें 17 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
- अंततः 2008 में नेपाल को लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया।
नेपाल की लगभग 3 करोड़ आबादी 100 से अधिक जातीय समूहों और भाषाओं में बंटी हुई है, जिससे राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा।
2008 के बाद से लगातार सरकारें बदलीं और भ्रष्टाचार के मामलों में बढ़ोतरी होती गई।
- केपी शर्मा ओली 2015 में पहली बार प्रधानमंत्री बने।
- 2024 में उन्होंने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और तय किया गया था कि 2027 तक दोनों पार्टियां बारी-बारी से सत्ता चलाएंगी।
- लेकिन बढ़ते भ्रष्टाचार और सोशल मीडिया बैन के खिलाफ भड़के जनाक्रोश ने सरकार को हिला दिया और अंततः ओली को मंगलवार को पद छोड़ना पड़ा।
नेपाल में हालात बेहद नाजुक
काठमांडू और अन्य प्रमुख शहरों में कर्फ्यू जैसे हालात हैं।
- सेना ने सभी जिलों में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था लागू की है।
- इंटरनेट और सोशल मीडिया सेवाएं पहले से ही बंद हैं, जिससे सूचना का प्रवाह पूरी तरह रुक गया है।
- आम लोग घरों में कैद हैं और बाजार पूरी तरह बंद हैं।
नेपाली सेना ने स्पष्ट किया है कि स्थिति को सामान्य करने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे, लेकिन प्रदर्शनकारियों का गुस्सा थमता नजर नहीं आ रहा है।
