2024 में 25% तक गिरी भारतीय छात्रों की वैश्विक उड़ान, वीज़ा नियम और करियर अनिश्चितता बनी वजह
नई दिल्ली।
एक दशक की तेज़ बढ़त के बाद, साल 2024 भारतीय छात्रों के लिए एक नया ट्रेंड लेकर आया है। विदेशों में पढ़ाई के लिए जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 25 प्रतिशत की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। यह गिरावट खासतौर पर अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे प्रमुख शैक्षणिक केंद्रों में देखने को मिली, जो अब तक भारतीय छात्रों के सबसे पसंदीदा गंतव्य माने जाते रहे हैं।
अमेरिकी विश्वविद्यालयों में 34% की गिरावट
अमेरिका की बात करें तो 2023 में जहां लगभग 1.31 लाख भारतीय छात्र वहां पढ़ाई के लिए गए थे, वहीं 2024 में यह संख्या घटकर 86,110 रह गई। यह 34 प्रतिशत की गिरावट दर्शाती है। यह आंकड़ा वैश्विक शिक्षा बाजार में भारत की बदलती प्राथमिकताओं की ओर इशारा करता है।
कनाडा में भी कम हुआ आकर्षण
कनाडा जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या 2023 में 2.78 लाख थी, जो 2024 में घटकर 1.89 लाख हो गई — 32% की गिरावट। इसका एक बड़ा कारण कनाडा द्वारा हाल ही में लागू किए गए कड़े आव्रजन नियम माने जा रहे हैं, जिसमें स्टूडेंट डायरेक्ट स्ट्रीम (SDS) जैसे फास्ट-ट्रैक वीज़ा प्रोग्राम का समापन भी शामिल है। कनाडा सरकार ने अस्थायी निवासियों की संख्या को 2026 तक अपनी कुल आबादी के 5% तक सीमित करने की योजना बनाई है।
ब्रिटेन में भी टूटा भरोसा
ब्रिटेन में भी 2024 में भारतीय छात्रों को जारी छात्र वीज़ा की संख्या घटकर 88,732 रह गई, जबकि 2023 में यह 1.2 लाख से अधिक थी। महामारी के बाद 2023 में ही यहां पहली गिरावट देखने को मिली थी (13%) और 2024 में इसमें 26% की गिरावट और दर्ज की गई।
गिरावट की प्रमुख वजहें
विश्लेषकों का मानना है कि इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं:
- वीज़ा प्रक्रिया में जटिलता और देरी
- नौकरी और पोस्ट-स्टडी वर्क वीज़ा के अवसरों में कमी
- विदेशी डिग्री के प्रति घटता आकर्षण
- विदेश में जीवन-यापन की बढ़ती लागत
- परिवार को साथ ले जाने पर पाबंदियां (Dependent Visa Restrictions)
बदलते रुझान: एशिया और यूरोप के अन्य देश उभर रहे विकल्प
इन तीन पारंपरिक गंतव्यों से मोहभंग के चलते, अब भारतीय छात्र अन्य विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड और सिंगापुर जैसे देश अब तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं, जहां फीस तुलनात्मक रूप से कम है और रोजगार के बेहतर अवसर मिल रहे हैं।
क्या यह अस्थायी बदलाव है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह गिरावट स्थायी भी हो सकती है, यदि विदेशों की नीतियां और अधिक सख्त होती गईं। साथ ही, भारत में भी अब उच्च शिक्षा के लिए आईआईटी, आईआईएम और निजी विश्वविद्यालयों का स्तर बेहतर हो रहा है, जिससे छात्र अब ‘ब्रेन ड्रेन’ की बजाय ‘ब्रेन रिटेन’ की दिशा में सोचने लगे हैं।
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