सुकमा। देश के सबसे बड़े आतंरिक सुरक्षा संकट माने जाने वाले नक्सलवाद के मोर्चे पर बड़ा घटनाक्रम सामने आया है। छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले से माओवादी संगठन ने संकेत दिए हैं कि वह शांति वार्ता के लिए तैयार है और अस्थायी रूप से हथियार छोड़ सकता है। संगठन के प्रवक्ता अभय ने 15 अगस्त को एक विज्ञप्ति जारी कर केंद्र सरकार से एक महीने के औपचारिक संघर्षविराम (सीजफायर) की मांग की है। साथ ही तलाशी अभियानों और सुरक्षाबलों की आक्रामक कार्रवाई को रोकने की अपील भी की गई है।
सरकार के दबाव में बदला रुख
पिछले एक महीने में नक्सलियों को लगातार बड़े झटके लगे हैं। गरियाबंद में बालकृष्ण का मारा जाना, झारखंड में सहदेव का ढेर होना और महिला कमांडर सुजाता का आत्मसमर्पण संगठन के लिए करारा झटका साबित हुआ है। इन घटनाओं ने नक्सल संगठन की कमर तोड़ दी है। यही कारण है कि अब माओवादी अस्थायी संघर्षविराम की घोषणा कर वार्ता का प्रस्ताव दे रहे हैं।
नक्सलियों का बयान
प्रवक्ता अभय द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि नक्सली सरकार के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। बातचीत चाहे सीधे केंद्रीय गृह मंत्री से हो या फिर उनके द्वारा नियुक्त किसी प्रतिनिधिमंडल से, संगठन को कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, नक्सलियों ने यह भी शर्त रखी है कि वे एक महीने का समय चाहते हैं ताकि जेल में बंद अपने साथियों और संगठन के अंदरूनी कैडर से सलाह-मशविरा कर सकें।
शांति की पहल या रणनीति?
सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि नक्सलियों का यह रुख असल में उनकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। जब-जब संगठन को बड़े स्तर पर नुकसान पहुंचता है, वे शांति वार्ता या संघर्षविराम की बात करने लगते हैं। लेकिन जैसे ही उन्हें अवसर मिलता है, वे फिर हिंसा की राह पकड़ लेते हैं। इसलिए इस बयान को लेकर सतर्क रहना जरूरी है।
सरकार की आक्रामक नीति का असर
पिछले कुछ वर्षों में केंद्र और राज्य सरकारों ने नक्सल प्रभावित इलाकों में ऑपरेशन प्रहार और ऑपरेशन प्रहार-2 जैसे अभियान चलाए हैं। आधुनिक हथियारों, ड्रोन निगरानी और खुफिया तंत्र की मदद से सुरक्षा बल लगातार जंगलों में घुसकर माओवादियों को घेर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि नक्सलियों का शीर्ष नेतृत्व कमजोर पड़ा है और कैडर में भी असंतोष बढ़ा है।
प्रभावित क्षेत्रों में उम्मीद की किरण
सुकमा, बस्तर, गरियाबंद और दंतेवाड़ा जैसे इलाकों में दशकों से नक्सली हिंसा का असर देखने को मिलता रहा है। वहां के ग्रामीण भय और असुरक्षा में जीते आए हैं। लेकिन सरकार की कड़ी कार्रवाई और अब नक्सलियों की ओर से शांति वार्ता की बात सामने आने के बाद लोगों में उम्मीद जगी है कि शायद हिंसा का दौर थम सके।
वार्ता की राह आसान नहीं
हालांकि, सुरक्षा विशेषज्ञ यह भी कहते हैं कि शांति वार्ता की राह आसान नहीं है। नक्सली केवल रणनीतिक तौर पर हथियार डालने की बात कर रहे हैं। वे स्थायी समाधान के लिए तैयार होंगे या नहीं, यह अभी साफ नहीं है। सरकार भी किसी जल्दबाज़ी में कदम नहीं उठाना चाहती। वार्ता तभी आगे बढ़ेगी जब नक्सली हिंसा पूरी तरह छोड़कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में शामिल होने की ईमानदार पहल दिखाएंगे।
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