नवरात्रि में बाल और नाखून क्यों नहीं काटते? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक कारण
22 सितंबर 2025 से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो चुका है। यह नौ दिन मां दुर्गा की भक्ति, साधना और आराधना के लिए समर्पित माने जाते हैं। भक्तजन व्रत रखते हैं, पूजा-पाठ करते हैं और अनेक नियमों का पालन करते हुए देवी की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। इन नियमों में से एक है नवरात्रि के दौरान बाल और नाखून न काटना। अक्सर लोग इस परंपरा का पालन तो करते हैं, लेकिन इसके पीछे छिपे कारणों और महत्व से अनजान रहते हैं। आइए विस्तार से समझते हैं कि आखिर क्यों नवरात्रि में बाल और नाखून काटना वर्जित माना गया है।
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पौराणिक मान्यता: देवी का घर में वास
धार्मिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना के साथ मां दुर्गा का घर में आगमन होता है। इन नौ दिनों तक देवी को घर में विराजमान माना जाता है। जब देवी स्वयं आपके घर में हों, तब वातावरण को सात्विक और पवित्र बनाए रखना अनिवार्य है। इस दौरान बाल और नाखून काटने जैसे कार्य अशुद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। इसलिए भक्त इससे परहेज़ करते हैं, ताकि उनका पूरा ध्यान केवल भक्ति और साधना में केंद्रित रहे।
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साधना और एकाग्रता का पहलू
नवरात्रि में साधना का विशेष महत्व है। भक्तजन ध्यान, जप और व्रत के माध्यम से अपनी आत्मिक शक्ति को जाग्रत करने का प्रयास करते हैं। इस दौरान शरीर और मन को संयम में रखना आवश्यक होता है। धार्मिक आचार्य मानते हैं कि बाल और नाखून काटना शरीर में ऊर्जा और एकाग्रता को भंग करता है। इसलिए साधना की पूर्णता के लिए इसे वर्जित किया गया है।
नकारात्मक ऊर्जा से सुरक्षा
एक अन्य मान्यता यह है कि नवरात्रि के दिनों में वातावरण में आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह बढ़ जाता है। ऐसे में बाल और नाखून काटना न केवल इस ऊर्जा के प्रवाह में बाधा डालता है, बल्कि इससे व्यक्ति पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है। इसलिए कहा जाता है कि इन नौ दिनों में जितना संभव हो सादगीपूर्ण और सात्विक जीवन व्यतीत करना चाहिए।
व्रत और पूजा का पूर्ण फल
धर्मशास्त्रों के अनुसार, देवी की साधना में नियमों का पालन न करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। यह विश्वास है कि यदि कोई व्यक्ति नवरात्रि में नियम तोड़ता है तो देवी प्रसन्न नहीं होतीं। बाल और नाखून काटना नियमभंग की श्रेणी में आता है, इसलिए इसे नकारात्मक माना गया है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
धार्मिक कारणों के अलावा, इसके पीछे कुछ व्यावहारिक और वैज्ञानिक पहलू भी हैं।
- शरीर की लय और ऊर्जा प्रवाह: कहा जाता है कि बाल और नाखून काटने से शरीर की प्राकृतिक ऊर्जा चक्र में हल्का व्यवधान आता है। नवरात्रि जैसे आध्यात्मिक दिनों में यह बाधा साधना को प्रभावित कर सकती है।
- स्वच्छता और रोग से बचाव: पुराने समय में नाखून काटने के लिए आधुनिक उपकरण नहीं थे और इससे चोट या संक्रमण का खतरा रहता था। व्रत के दौरान शरीर कमजोर रहता है, इसलिए यह नियम स्वास्थ्य सुरक्षा से भी जुड़ा हो सकता है।
परंपरा और संस्कृति का संबंध
भारतीय परंपराओं में हर धार्मिक अनुष्ठान में कुछ नियम होते हैं। इन नियमों का पालन केवल आस्था ही नहीं बल्कि अनुशासन और मानसिक शांति का अभ्यास भी है। नवरात्रि में बाल और नाखून न काटने का नियम हमें यह सिखाता है कि जीवन में संयम और साधना के माध्यम से आत्मिक शक्ति को बढ़ाया जा सकता है।
आधुनिक समय में महत्व
आज के समय में भले ही कई लोग इन मान्यताओं को केवल परंपरा मानकर छोड़ देते हों, लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से यह नियम हमें आत्मसंयम, साधना और सकारात्मक ऊर्जा की ओर ले जाता है। भक्ति और विश्वास का अर्थ केवल देवी की पूजा नहीं, बल्कि अपने भीतर सात्विक गुणों को स्थापित करना भी है।
निष्कर्ष नहीं, परंपरा का संदेश
नवरात्रि केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन में अनुशासन, संयम और आध्यात्मिक शक्ति को जगाने का अवसर है। बाल और नाखून न काटने की परंपरा इस बात की याद दिलाती है कि इन दिनों हमें अपनी ऊर्जा को बाहर खर्च करने के बजाय भीतर की साधना पर केंद्रित करना चाहिए। यही साधना हमें देवी की कृपा और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन की ओर ले जाती है।
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