2026 विधानसभा चुनाव से पहले स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन, ‘अनकलेक्टेबल’ पाए गए लाखों फॉर्म
नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने बड़ा कदम उठाया है। मंगलवार सुबह आयोग ने 2026 की ड्राफ्ट इलेक्टोरल रोल जारी कर दी, जिसमें 58 लाख से ज्यादा मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। ये नाम 2025 की मतदाता सूची में शामिल थे, लेकिन स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (एसआईआर) 2026 के तहत सत्यापन के दौरान बाहर कर दिए गए। यह ड्राफ्ट सूची अब चुनाव आयोग की आधिकारिक वेबसाइट पर उपलब्ध है।
58 लाख से ज्यादा फॉर्म ‘अनकलेक्टेबल’
चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार, एसआईआर प्रक्रिया के दौरान 58 लाख से अधिक मतदाता फॉर्म ‘अनकलेक्टेबल’ पाए गए। इसका मतलब यह है कि या तो ये फॉर्म जमा नहीं हो सके, या फिर संबंधित मतदाताओं का भौतिक सत्यापन नहीं हो पाया। आयोग का कहना है कि यह पूरी प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से की गई है और इसका मकसद मतदाता सूची को अधिक सटीक और विश्वसनीय बनाना है।
नाम हटाने के प्रमुख कारण
आयोग ने साफ किया है कि मतदाता सूची से नाम हटाने के पीछे कई ठोस कारण हैं। बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता मिले जो अपने दर्ज पते पर मौजूद नहीं थे। कुछ लोग स्थायी रूप से दूसरे स्थानों पर शिफ्ट हो चुके हैं, जबकि कई मामलों में मतदाताओं की मृत्यु हो चुकी है। इसके अलावा, एक ही व्यक्ति का नाम एक से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में दर्ज पाया गया, जिसे डुप्लीकेट मानते हुए हटाया गया। आयोग के मुताबिक, फर्जी और गलत प्रविष्टियों को हटाना निष्पक्ष चुनाव के लिए जरूरी है।
ड्राफ्ट सूची पर आपत्ति का मौका
चुनाव आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह केवल ड्राफ्ट सूची है। जिन मतदाताओं के नाम कटे हैं, वे तय प्रक्रिया के तहत दावा और आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। सत्यापन और आपत्तियों के निपटारे के बाद ही अंतिम मतदाता सूची जारी की जाएगी। आयोग का कहना है कि किसी भी पात्र मतदाता का नाम गलत तरीके से न हटे, इसके लिए सभी कानूनी और प्रशासनिक उपाय अपनाए जाएंगे।
2026 विधानसभा चुनाव से जुड़ी अहम तैयारी
पश्चिम बंगाल की 294 सीटों वाली विधानसभा का कार्यकाल मई 2026 में समाप्त हो रहा है। ऐसे में मार्च-अप्रैल 2026 में चुनाव कराए जाने की संभावना है। इस बार मतदाता सूची की सफाई को लेकर राजनीतिक हलकों में भी काफी चर्चा है, क्योंकि इतने बड़े पैमाने पर नाम हटने से चुनावी गणित पर असर पड़ सकता है। चुनाव आयोग का दावा है कि यह पूरी कवायद केवल मतदाता सूची को शुद्ध करने के उद्देश्य से की गई है, ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से हो सकें।
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