लड्डू घोटाले के बाद एक और बड़ा घोटाला, मंदिर ट्रस्ट का दावा—55 करोड़ का हुआ नुकसान

नई दिल्ली । देश के सबसे प्रतिष्ठित और धनी मंदिरों में शामिल तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) में एक और बड़ा घोटाला सामने आया है। पहले लड्डू घोटाले और परकमानी विवाद ने मंदिर प्रशासन को हिलाया था, और अब खुलासा हुआ है कि पिछले करीब 10 वर्षों से भक्तों और दानदाताओं को शुद्ध रेशम (सिल्क) के नाम पर 100% पॉलिएस्टर के दुपट्टे दिए जा रहे थे। यह गंभीर धोखाधड़ी 2015 से लेकर 2025 तक जारी रही, जिसमें मंदिर को भारी आर्थिक नुकसान हुआ और आस्था से जुड़े वस्त्रों की पवित्रता पर भी सवाल उठ गए।

55 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी, ट्रस्ट का आरोप

मंदिर नियमों के अनुसार, टीटीडी द्वारा दिए जाने वाले हर दुपट्टे में शुद्ध शहतूत रेशम और रेशम होलोग्राम होना अनिवार्य है। लेकिन जांच में पाया गया कि सप्लाई करने वाली कंपनी ने सस्ते पॉलिएस्टर दुपट्टे बेचे और करीब 55 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की। दुपट्टा सप्लाई का यह मामला लंबे समय से बिना जांच के चलता रहा, जिसके चलते यह बड़ी गड़बड़ी ट्रस्ट की निगाह से बची रही।

जांच के बाद सामने आई सच्चाई

टीटीडी चेयरमैन बीआर नायडू की अध्यक्षता में हुई बोर्ड बैठक के बाद दुपट्टों की जांच की जिम्मेदारी आंध्र प्रदेश एंटी-करप्शन ब्यूरो को सौंप दी गई। गोडाउन और मंदिर परिसर से दुपट्टों के सैंपल लेकर बेंगलुरु और धर्मवरम की सेंट्रल सिल्क बोर्ड लैब में जांच कराई गई। दोनों रिपोर्टों में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि दुपट्टे शुद्ध सिल्क नहीं थे, बल्कि पूरी तरह से पॉलिएस्टर के बने थे। यह मंदिर के नियमों का घोर उल्लंघन है।

15,000 नए दुपट्टों के ठेके पर रोक

घोटाले की पुष्टि के बाद तिरुपति ट्रस्ट ने तुरंत कार्रवाई करते हुए दुपट्टा सप्लायर कंपनी वीआरएस एक्सपोर्ट्स का नया जारी किया गया 15,000 दुपट्टों का ठेका रोक दिया है। बोर्ड ने एसीबी को निर्देश दिया है कि वह इस धोखाधड़ी में शामिल सभी व्यक्तियों की पहचान करे और कार्रवाई शुरू करे। बताया जाता है कि वीआईपी दर्शन के दौरान रंगनायकुला मंडपम में दानदाताओं को दिया जाने वाला दुपट्टा इस पूरे धार्मिक कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। ऐसे में इस पवित्र वस्तु की गुणवत्ता से छेड़छाड़ को बड़ी आस्था भंग के रूप में देखा जा रहा है।

क्या है दुपट्टे का मानक?

टीटीडी ने दुपट्टों के निर्माण को लेकर स्पष्ट और सख्त मानक तय किए हैं दुपट्टा शुद्ध शहतूत रेशम से बुना होना चाहिए। ताना और बाना दोनों में 20/22 डेनियर की रेशमी डोरी होनी अनिवार्य। न्यूनतम मोटाई 31.5 डेनियर। एक ओर संस्कृत में और दूसरी ओर तेलुगु में ‘ॐ नमो वेंकटेशाय’ लिखा होना चाहिए। शंख, चक्र और ‘नमम्’ (भगवान वेंकटेश के चिह्न) के प्रतीक मौजूद होने चाहिए। जांच में पाया गया कि सप्लायर कंपनी ने इन सभी मानकों की अनदेखी की और वर्षों से पॉलिएस्टर सामग्री मंदिर को बेचती रही।