फ्रांस की सरकारी एजेंसी ने खोला फर्जी लेटर अभियान का राज, बहु-अरब डॉलर के रक्षा सौदे को बदनाम करने की कोशिश
नई दिल्ली। भारत की सामरिक और रक्षा क्षमताओं को कमजोर दिखाने की कोशिश में पाकिस्तान एक बार फिर बेनकाब हुआ है। भारतीय नौसेना के लिए खरीदे जा रहे 26 राफेल मरीन लड़ाकू विमानों को लेकर पाकिस्तान की ओर से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर झूठ और दुष्प्रचार फैलाया जा रहा है। इस पूरे फर्जी अभियान का खुलासा फ्रांस की सरकारी साइबर सुरक्षा एजेंसी Viginum ने किया है। एजेंसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह दुष्प्रचार अभियान एक सुनियोजित रणनीति के तहत चलाया गया, जिसका उद्देश्य भारत और फ्रांस के बीच हुए बहु-अरब डॉलर के रक्षा सौदे को लेकर भ्रम और अविश्वास पैदा करना था।
25 नवंबर से शुरू हुआ फर्जी लेटर अभियान
Viginum की जांच के मुताबिक, यह अभियान 25 नवंबर को शुरू हुआ, जब खुद को पाकिस्तानी डिजिटल विशेषज्ञ बताने वाले एक व्यक्ति ने सोशल मीडिया पर डसॉल्ट एविएशन के सीईओ एरिक ट्रैपियर के नाम से एक नकली लेटर पोस्ट किया। इस फर्जी पत्र में दावा किया गया कि भारत के स्वदेशी विमानवाहक पोत INS विक्रांत के लिए राफेल मरीन विमानों की डिलीवरी में भारी देरी हो रही है।
फर्जी लेटर में यह भी झूठा दावा किया गया कि विमानों की डिलीवरी से पहले भारतीय पायलटों को नई दिल्ली में दस सप्ताह का अनिवार्य प्रशिक्षण लेना होगा, जिससे कार्यक्रम और ज्यादा पीछे खिसक सकता है। इस तरह के दावे पूरी तरह मनगढ़ंत बताए गए हैं।
एक के बाद एक फर्जी पत्र, भ्रम फैलाने की कोशिश
इस दुष्प्रचार को यहीं नहीं रोका गया। 26 नवंबर को एक अन्य प्रो-पाकिस्तानी सोशल मीडिया अकाउंट से इसी तरह का दूसरा फर्जी लेटर जारी किया गया, जिसमें पहले जारी किए गए पत्र को सही ठहराने का प्रयास किया गया। इसके बाद 8 दिसंबर को एक तीसरा फर्जी लेटर सामने आया, जिसे भारत के विदेश मंत्री के नाम से जारी बताया गया। इस पत्र में फ्रांस के दिल्ली स्थित राजदूत पर राफेल मरीन डील में कथित देरी को लेकर तीखी आलोचना की गई थी। जांच में यह भी पूरी तरह फर्जी पाया गया।
फ्रांसीसी एजेंसी ने माना संगठित दुष्प्रचार
Viginum ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ये सभी फर्जी दस्तावेज एक संगठित सूचना युद्ध का हिस्सा हैं। इनका मकसद भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया पर सवाल खड़े करना, फ्रांस की रक्षा कंपनियों की साख को नुकसान पहुंचाना और दोनों देशों के बीच रणनीतिक भरोसे को कमजोर करना है। रिपोर्ट में संकेत दिया गया है कि इस तरह की गतिविधियों के पीछे पाकिस्तान समर्थित नेटवर्क सक्रिय हैं।
डसॉल्ट एविएशन की चुप्पी, रणनीति में बदलाव
जब फ्रांसीसी मीडिया ने इन फर्जी पत्रों को लेकर डसॉल्ट एविएशन से प्रतिक्रिया मांगी, तो कंपनी ने इन पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। कंपनी का कहना था कि वह इस तरह के दुष्प्रचार को और हवा नहीं देना चाहती। विशेषज्ञों का मानना है कि यह चुप्पी दरअसल रणनीतिक है, ताकि झूठी सूचनाओं को दोबारा चर्चा का विषय न बनाया जाए। यह रुख कंपनी की पहले की रणनीति से अलग माना जा रहा है, जब वह अफवाहों का सार्वजनिक खंडन किया करती थी।
पहले भी फैलाता रहा है झूठ
राफेल लड़ाकू विमानों को लेकर पाकिस्तान की यह पहली नापाक हरकत नहीं है। इससे पहले भी सोशल मीडिया पर कई बार अफवाहें फैलाई गईं। मई में भारत और पाकिस्तान की सेनाओं के बीच तनाव के दौरान पाकिस्तान समर्थित अकाउंट्स ने झूठा दावा किया था कि उसने भारतीय राफेल लड़ाकू विमान को मार गिराया है। बाद में भारत सरकार ने इन दावों को पूरी तरह खारिज कर दिया था और इन्हें मनगढ़ंत बताया था।
भारत की रक्षा तैयारियों पर असर नहीं
रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के दुष्प्रचार अभियानों का भारत की रक्षा तैयारियों या राफेल मरीन डील पर कोई वास्तविक असर नहीं पड़ता। भारत और फ्रांस के बीच यह सौदा पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया के तहत हुआ है और भारतीय नौसेना की विमानवाहक क्षमताओं को मजबूत करने की दिशा में यह एक अहम कदम माना जा रहा है।
अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की छवि पर सवाल
इस पूरे मामले के बाद अंतरराष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान की विश्वसनीयता पर एक बार फिर सवाल खड़े हो गए हैं। फर्जी दस्तावेजों और झूठी सूचनाओं के जरिए भारत को बदनाम करने की कोशिशें उल्टा पाकिस्तान की नीतियों और मंशा को ही उजागर कर रही हैं।
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