2021 के बाद तेजी से बढ़ा रुझान, संसद में सरकार ने पेश किए चौंकाने वाले आंकड़े
नई दिल्ली। भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है और यह प्रवृत्ति अब सरकार के लिए भी चिंता का विषय बनती जा रही है। विदेश मंत्रालय ने संसद में जो आंकड़े पेश किए हैं, वे साफ संकेत देते हैं कि हर साल औसतन करीब दो लाख भारतीय अपनी नागरिकता छोड़कर दूसरे देशों के नागरिक बन रहे हैं। बीते पांच वर्षों में लगभग नौ लाख भारतीयों ने भारतीय नागरिकता त्याग दी है, जबकि 2011 से 2024 के बीच कुल मिलाकर करीब 21 लाख लोगों ने विदेशी नागरिकता अपनाई है।
राज्यसभा में इस विषय पर जवाब देते हुए विदेश राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि 2021 के बाद नागरिकता छोड़ने की रफ्तार में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखने को मिली है। कोरोना महामारी के दौरान वर्ष 2020 में यह संख्या घटकर लगभग 85 हजार रह गई थी, लेकिन महामारी के बाद हालात सामान्य होते ही यह आंकड़ा एक बार फिर तेजी से बढ़ा और दो लाख के आसपास पहुंच गया। सरकार का मानना है कि वैश्विक रोजगार के अवसर, बेहतर जीवन स्तर, शिक्षा और स्थायी निवास की संभावनाएं इस बढ़ते रुझान के प्रमुख कारण हो सकते हैं।
कोरोना के बाद बदला ट्रेंड, विदेश बसने की चाह में तेजी
विशेषज्ञों के अनुसार, महामारी के बाद दुनिया भर में वर्क-फ्रॉम-होम, स्किल बेस्ड वीजा और स्थायी निवास योजनाओं ने भारतीय युवाओं और पेशेवरों को विदेशों में बसने के लिए और अधिक प्रेरित किया है। कनाडा, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों के साथ-साथ खाड़ी देशों में भी बड़ी संख्या में भारतीय काम और बसने के विकल्प तलाश रहे हैं। नागरिकता छोड़ने का यह आंकड़ा सिर्फ व्यक्तिगत निर्णयों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा असर देश की मानव संसाधन क्षमता और सामाजिक संरचना पर भी पड़ रहा है।
तीन साल में लगभग छह हजार भारतीय मिडिल ईस्ट से सुरक्षित निकाले गए
सरकार ने संसद को यह भी जानकारी दी कि बीते तीन वर्षों में सुरक्षा कारणों से मिडिल ईस्ट के विभिन्न देशों से 5,945 भारतीय नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला गया। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने लोकसभा में बताया कि इसमें इजराइल से चलाया गया ‘ऑपरेशन अजय’ और ईरान-इजराइल संकट के दौरान किया गया ‘ऑपरेशन सिंधु’ शामिल है। इन अभियानों के जरिए संकटग्रस्त इलाकों में फंसे भारतीयों को सुरक्षित स्वदेश लाया गया।
इसके अलावा हाल ही में हुए कुवैत अग्निकांड का भी उल्लेख किया गया, जिसमें जान गंवाने वाले 45 भारतीय नागरिकों के शव भारत लाए गए। सरकार का कहना है कि विदेशों में रह रहे भारतीयों की सुरक्षा उसकी प्राथमिकता है और संकट की स्थिति में हरसंभव सहायता उपलब्ध कराई जाती है।
शिक्षा पर बड़ा प्रस्ताव: सुधा मूर्ति ने रखी नई पहल
इसी बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी एक अहम प्रस्ताव सामने आया है। राज्यसभा की मनोनीत सांसद सुधा मूर्ति ने तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा एवं देखभाल की गारंटी देने का सुझाव दिया है। उन्होंने इसके लिए संविधान में नया अनुच्छेद 21बी जोड़ने की मांग की। सुधा मूर्ति का कहना है कि शुरुआती बचपन की शिक्षा बच्चों के मानसिक और सामाजिक विकास के लिए बेहद जरूरी है और इसमें किसी तरह की कमी भविष्य पर गहरा असर डाल सकती है। उन्होंने आंगनवाड़ी व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने पर जोर देते हुए कहा कि यदि इस प्रणाली को सही संसाधन और प्रशिक्षण मिले, तो यह देश की नींव को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा सकती है।
नागरिकता छोड़ने का बढ़ता आंकड़ा, नीति निर्माताओं के लिए संकेत
भारतीय नागरिकता छोड़ने वालों के बढ़ते आंकड़े यह सवाल खड़ा कर रहे हैं कि देश के भीतर अवसरों, जीवन गुणवत्ता और सामाजिक सुरक्षा को लेकर लोगों की अपेक्षाएं किस दिशा में जा रही हैं। सरकार के लिए यह सिर्फ आंकड़ों का विषय नहीं, बल्कि एक गंभीर सामाजिक और आर्थिक संकेत है, जिस पर आने वाले समय में नीतिगत स्तर पर मंथन होना तय माना जा रहा है।
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