उपशीर्षक: आधुनिक युद्ध में तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर उपकरणों की भूमिका तेजी से बढ़ी
नई दिल्ली। सेना प्रमुख उपेंद्र द्विवेदी ने कहा है कि यूक्रेन में जारी युद्ध भारतीय सेना के लिए एक जीवित प्रयोगशाला की तरह है, क्योंकि यह हमारे सीमाई हालात से मिलता-जुलता अनुभव प्रदान करता है। दिल्ली में आयोजित ‘रक्षा संवाद 2025’ में संबोधन देते हुए उन्होंने बताया कि आधुनिक युद्ध का स्वरूप तकनीक, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और साइबर क्षमताओं के कारण अभूतपूर्व बदल गया है। उनके अनुसार यह समय धक्का–मुक्की, प्रतिस्पर्धा और दबाव के बीच उभरते नए युद्धक्षेत्र का दौर है।
सेना प्रमुख ने बताया कि दुनिया भर में पचास से अधिक युद्ध किसी न किसी रूप में जारी हैं और सौ से अधिक देश इन संघर्षों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध ने युद्ध की रूपरेखा बदल दी है, जहाँ मानव रहित यंत्रों, इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और अत्यंत सटीक प्रहार की क्षमता ने पारंपरिक सोच को चुनौती दी है।
उन्होंने कहा कि युद्ध के वर्तमान परिदृश्य को तीन तत्व बदल रहे हैं—लोकतंत्रीकरण, प्रसार और जनसांख्यिकी। उनके मुताबिक यह बदलाव ऐसे समय में हो रहा है जब सीमित शांति का दौर घट रहा है और व्यापक संघर्ष बढ़ रहे हैं। इससे स्पष्ट है कि प्रौद्योगिकी का प्रभाव अब पहले से कहीं अधिक है और सैनिक क्षमताएँ तकनीक–आधारित हो रही हैं।
तकनीक से बदलता युद्धक्षेत्र
सेना प्रमुख ने कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम तकनीक, साइबर उपकरण और ऊर्जा–निर्देशित हथियार अब युद्धक्षेत्र की नई सीमाएँ तैयार कर रहे हैं, जिन्हें ‘धुंधला क्षेत्र’ कहा जा रहा है। यहाँ युद्ध घोषित नहीं होता, पर तकनीकी हमले, सूचना युद्ध और साइबर प्रहार एक राष्ट्र की सुरक्षा को निरंतर चुनौती देते रहते हैं। उन्होंने कहा कि लोकतंत्रीकरण एक ऐसी प्रक्रिया बन गई है जिसने हर देश और समूह को नई तकनीक उपलब्ध करा दी है। अब युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि कई स्तरों वाली तकनीकी परतों से लड़ा जा रहा है। इनमें स्वचालित तंत्र, कृत्रिम बुद्धिमत्ता पर आधारित प्रणाली, ऊर्जा–निर्देशित हथियार और साइबर उपकरण शामिल हैं, जिनकी भूमिका तेजी से बढ़ रही है।
भारत के सामने बहु–मोरचा चुनौती
सेना प्रमुख के अनुसार भारतीय परिप्रेक्ष्य में चुनौती कहीं अधिक व्यापक है। देश को दो–ढाई मोर्चों पर सुरक्षा का दबाव झेलना पड़ रहा है। इसलिए यह ज़रूरी है कि नई आने वाली हर तकनीक भारतीय सेना की पाँच पीढ़ियों तक फैली युद्ध–तैयारी के अनुरूप ढल सके। उन्होंने कहा कि सेना को पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रकार की युद्ध–शैलियों में तकनीक का संतुलित उपयोग सुनिश्चित करना होगा। उन्होंने बताया कि भारतीय सेना कृत्रिम बुद्धिमत्ता के सक्षम उपयोग के लिए ‘जिज्ञासा’ नामक एक आंतरिक संवाद–तंत्र तैयार कर रही है। इसके साथ 15 अन्य सॉफ्टवेयर भी विकसित किए जा रहे हैं, जो सेनाओं की क्षमताओं को और मजबूत बनाएंगे। सेना ने ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता डिब्बे में’ नामक प्रणाली का परीक्षण भी पूरा कर लिया है, जो चलते–फिरते दलेल गठन को रणनीतिक बढ़त देने में सक्षम होगी। उन्होंने कहा कि छोटे–छोटे तकनीकी सॉफ्टवेयर और स्वचालित प्रणालियाँ भविष्य में युद्धक्षेत्र के संचालन को अधिक तेज़, सटीक और सुरक्षित बनाएँगी। यूक्रेन युद्ध से मिले संकेतों के आधार पर भारतीय सेना अपनी युद्ध–रणनीति, संरचना और साधनों को तकनीकी रूप से उन्नत बना रही है।
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