ट्रंप की घोषणा के बाद बढ़ी वैश्विक चिंता, भारत की स्थिति पर नई बहस शुरू 

नई दिल्ली। पिछले महीने अक्टूबर में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह घोषणा करके दुनिया को चौंका दिया कि अमेरिका जल्द ही परमाणु हथियारों की टेस्टिंग करेगा। उनके इस बयान ने वैश्विक राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। रूस ने इस घोषणा पर कड़ी प्रतिक्रिया दी और साफ संकेत दिए कि यदि अमेरिका परीक्षण करता है, तो वह भी इसका अनुसरण कर सकता है। हालांकि, ट्रंप ने यह नहीं बताया कि टेस्ट किस प्रकार का होगा। मीडिया रिपोर्टों में आशंका जताई गई है कि यह परीक्षण भूमिगत हो सकता है। कॉम्प्रीहेंसिव टेस्ट बैन ट्रीटी ऑर्गेनाइजेशन (सीटीबीटीओ) ने अमेरिका को चेतावनी दी है कि यदि यह परीक्षण होता है, तो इससे विश्व की शांति और सुरक्षा को गंभीर खतरा उत्पन्न होगा। इस बीच यह सवाल भी उठने लगा है कि अमेरिकी कदम का भारत पर क्या प्रभाव पड़ सकता है और क्या भारत भी पुनः परमाणु परीक्षण कर सकता है?

सीटीबीटीओ का सदस्य नहीं है भारत

भारत ने अंतिम बार 1998 में ‘ऑपरेशन शक्ति’ के तहत परमाणु परीक्षण किए थे, जिनके बाद उसने स्वयं को परमाणु संपन्न राष्ट्र घोषित किया। भारत ने अभी तक सीटीबीटीओ  पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, इसलिए यह संधि भारत को कानूनी रूप से परीक्षण करने से नहीं रोकती। यही कारण है कि हर बार वैश्विक तनाव बढ़ने पर भारत के संभावित परीक्षण को लेकर चर्चाएं फिर तेज हो जाती हैं।

2008 का भारत–अमेरिका परमाणु समझौता और उसकी बाध्यता

साल 2008 में भारत ने अमेरिका के साथ नागरिक परमाणु समझौता किया था। इस समझौते में यह स्पष्ट है कि यदि भारत दोबारा परमाणु परीक्षण करता है, तो अमेरिका इस समझौते को रद्द कर सकता है, जिसके बाद भारत पर तकनीकी और कूटनीतिक प्रतिबंधों की वापसी संभव है। यही कारण है कि भारत, तकनीकी क्षमता होने के बावजूद, परीक्षण को लेकर अत्यधिक सतर्क रुख अपनाता है। बीते कुछ वर्षों में भारत ने अपनी मिसाइल तकनीक, विशेषकर अग्नि श्रृंखला, को अत्यंत आधुनिक बनाया है। अग्नि-5 की सफल परीक्षण श्रृंखला ने भारत की सामरिक क्षमताओं को और मजबूत किया है। इसके बावजूद परमाणु परीक्षण पर चर्चा शुरू होते ही यह सवाल उठता है कि क्या भारत को अपनी परमाणु नीति में बदलाव करना चाहिए?

यदि भारत ने परीक्षण किया तो क्या होंगे नतीजे?

परमाणु परीक्षण करने के लाभ तो सीमित और सामरिक होंगे, लेकिन इसके नतीजे बहुत व्यापक और कूटनीतिक हो सकते हैं। भारत की विदेश नीति का एक बड़ा स्तंभ यह रहा है कि वह ‘जिम्मेदार परमाणु शक्ति’ के रूप में व्यवहार करता है। भारत की ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति ने उसकी अंतरराष्ट्रीय छवि को और मजबूत किया है। यदि भारत दोबारा परीक्षण करता है, तो जापान और फ्रांस जैसे करीबी मित्र देश भी इसकी आलोचना कर सकते हैं। भारत की अर्थव्यवस्था और तकनीकी प्रगति बड़े पैमाने पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग पर निर्भर करती है, ऐसे में संबंधों में दरार पड़ने का जोखिम काफी बढ़ जाएगा।

भारत के सामने कूटनीतिक चुनौतियां

भारत की सामरिक जरूरतें और सुरक्षा चिंताएँ वाजिब हैं, लेकिन मौजूदा वैश्विक परिस्थिति में परमाणु परीक्षण करना बड़ी कूटनीतिक कीमत चुकाने जैसा हो सकता है। ट्रंप के बयान के बाद जहां दुनिया के कई देश तनाव में हैं, वहीं भारत परीक्षण की तकनीकी क्षमता होने के बावजूद अपनी कूटनीतिक स्थिति को अधिक महत्व देता दिख रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अपने हितों और वैश्विक संतुलन दोनों को देखते हुए फिलहाल जिम्मेदार परमाणु राष्ट्र की भूमिका निभाना जारी रखेगा।