आत्मनिर्भर भारत की दिशा में बड़ा कदम, रक्षा व आंतरिक सुरक्षा को मिलेगी अकादमिक–तकनीकी मजबूती
नई दिल्ली। भारत की रक्षा और आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को अनुसंधान, शिक्षा और तकनीकी नवाचार के माध्यम से और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में एक अहम पहल की गई है। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन और राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। यह एमओयू रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान, शिक्षा, प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोग को नई ऊंचाइयों तक ले जाने के उद्देश्य से किया गया है।
साउथ ब्लॉक में हुआ समझौते पर हस्ताक्षर
इस समझौता ज्ञापन पर डीआरडीओ की वैज्ञानिक एवं महानिदेशक (उत्पादन समन्वय एवं सेवा अंतःक्रिया) डॉ. चंद्रिका कौशिक और राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिमल एन पटेल ने हस्ताक्षर किए। यह कार्यक्रम नई दिल्ली स्थित साउथ ब्लॉक में आयोजित हुआ, जहां रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में इस सहयोग को औपचारिक रूप दिया गया। इस अवसर पर रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी कामत भी मौजूद रहे।
आत्मनिर्भर भारत और अमृत काल की सोच को बढ़ावा
रक्षा मंत्रालय के अनुसार यह समझौता भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘अमृत काल’ की व्यापक राष्ट्रीय सोच को आगे बढ़ाने वाला है। इसका मुख्य उद्देश्य रक्षा और आंतरिक सुरक्षा प्रणालियों में स्वदेशी तकनीकी क्षमता को मजबूत करना और आयात पर निर्भरता को कम करना है। मंत्रालय का मानना है कि इस साझेदारी से देश की सुरक्षा व्यवस्था को भविष्य की चुनौतियों के अनुरूप तैयार किया जा सकेगा।
अकादमिक और तकनीकी क्षमता का होगा समन्वय
राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय गृह मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय महत्व की संस्था है और इसे यूजीसी द्वारा ‘रक्षा अध्ययन हेतु नोडल केंद्र’ के रूप में नामित किया गया है। यह विश्वविद्यालय आंतरिक सुरक्षा, नीति निर्माण, प्रशिक्षण और अकादमिक अनुसंधान के क्षेत्र में विशेषज्ञता रखता है। वहीं डीआरडीओ देश की सशस्त्र सेनाओं और सुरक्षा एजेंसियों के लिए अत्याधुनिक स्वदेशी तकनीकों और प्रणालीगत समाधानों के विकास में अग्रणी भूमिका निभाता रहा है। अब इस साझेदारी के जरिए अकादमिक ज्ञान, व्यावहारिक प्रशिक्षण, परिचालन अनुभव और अत्याधुनिक तकनीक का एक मजबूत और प्रभावी संयोजन तैयार होगा। इससे न केवल शोध की गुणवत्ता बढ़ेगी, बल्कि शोध के नतीजे सीधे जमीन पर सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने में काम आएंगे।
संयुक्त अनुसंधान और पीएचडी कार्यक्रमों पर जोर
समझौते के तहत रक्षा एवं आंतरिक सुरक्षा से जुड़ी संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएं शुरू की जाएंगी। इसके अलावा उभरती सुरक्षा चुनौतियों पर तकनीकी और नीतिगत अनुसंधान को भी बढ़ावा दिया जाएगा। पीएचडी और फेलोशिप कार्यक्रम इस सहयोग का अहम हिस्सा होंगे, जिससे युवा शोधकर्ताओं और सुरक्षा विशेषज्ञों को उन्नत अनुसंधान के अवसर मिल सकेंगे।
विशेषीकृत प्रशिक्षण और क्षमता-वृद्धि कार्यक्रम
इस एमओयू के तहत विशेषीकृत प्रशिक्षण और क्षमता-वृद्धि कार्यक्रम भी लागू किए जाएंगे। इन कार्यक्रमों का उद्देश्य सुरक्षा बलों, शोधकर्ताओं और नीति निर्माताओं को आधुनिक तकनीकों और उभरते सुरक्षा खतरों के प्रति तैयार करना है। इससे मानव संसाधन की गुणवत्ता और दक्षता में भी उल्लेखनीय सुधार होगा।
भविष्य की सुरक्षा जरूरतों का आकलन
समझौते में केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों और गृह मंत्रालय से संबद्ध अन्य एजेंसियों की भविष्य की आवश्यकताओं का आकलन भी शामिल है। इसमें बदलते सुरक्षा परिदृश्य में उभरते जोखिमों, तकनीकी अंतरालों और भविष्य में आवश्यक क्षमताओं का पूर्वानुमान लगाया जाएगा, ताकि समय रहते रणनीतिक तैयारी की जा सके।
राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को मिलेगी मजबूती
रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि डीआरडीओ और आरआरयू के बीच यह सहयोग ज्ञान-साझाकरण, संयुक्त नवाचार और तकनीकी एकीकरण को नए आयाम देगा। यह साझेदारी भारत की सामरिक क्षमता, परिचालन तैयारी और तकनीकी स्वावलंबन को मजबूत करते हुए राष्ट्रीय सुरक्षा ढांचे को और अधिक सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
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