बांग्लादेश में चुनाव से पहले पत्रकारों पर हमले, ढाका में मीडिया दफ्तरों को जलाने की कोशिश

नई दिल्ली। बांग्लादेश में फरवरी 2026 में प्रस्तावित राष्ट्रीय चुनाव से पहले माहौल तेजी से भयावह होता जा रहा है। इस डर का सबसे सीधा निशाना देश के पत्रकार बन रहे हैं, जो अपने पेशेवर कर्तव्यों का निर्वहन कर रहे हैं। बांग्लादेशी पत्रकारों का कहना है कि उन्हें लगातार जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं और निष्पक्ष रिपोर्टिंग को ही सजा बना दिया गया है। ढाका में हाल की घटनाओं ने प्रेस की स्वतंत्रता पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 19 दिसंबर को ढाका में देश के प्रमुख समाचार संस्थानों प्रोथोम आलो और द डेली स्टार के कार्यालयों पर भीड़ ने हमला कर दिया। हमलावरों ने दफ्तरों में तोड़-फोड़ की और आग लगा दी। इस दौरान दो दर्जन से अधिक मीडियाकर्मी इमारत के भीतर फंस गए, जिससे स्थिति बेहद गंभीर हो गई।

‘हमें लगा उस रात जिंदा नहीं बचेंगे’

द डेली स्टार के एक वरिष्ठ पत्रकार ने टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में बताया कि उस रात उन्हें लगा था कि शायद वे जिंदा बाहर नहीं निकल पाएंगे। उनके अनुसार आगजनी की यह घटना केवल शुरुआत है और खतरा अभी टला नहीं है। पत्रकारों ने बताया कि आग लगने के बाद इमारतें धुएं से भर गई थीं, जिससे सांस लेना मुश्किल हो गया। अपनी जान बचाने के लिए कई पत्रकार छत पर जाने को मजबूर हुए। फायर ब्रिगेड और सेना की मदद से करीब 28 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जिनमें अधिकांश पत्रकार थे। हालांकि, प्रेस स्वतंत्रता से जुड़े संगठनों का कहना है कि हालात ऐसे थे मानो भीड़ पत्रकारों को जिंदा जलाना चाहती हो। आरोप है कि हमलावरों ने आपातकालीन सहायता के लिए पहुंची टीमों को भी बचाव कार्य से रोकने की कोशिश की।

सोशल मीडिया निगरानी और वैचारिक निशाना

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों से जुड़े पत्रकारों का कहना है कि हमलावर और कट्टर समूह सोशल मीडिया पर उनकी गतिविधियों पर नजर रख रहे हैं। रिपोर्टरों के अनुसार, सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि कौन पत्रकार किस पक्ष में लिखता है। खासतौर पर अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े या उदारवादी दृष्टिकोण रखने वाले पत्रकारों को सीधे निशाना बनाया जा रहा है। पत्रकारों का कहना है कि यह केवल एक या दो संस्थानों तक सीमित मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश में डर का माहौल बनाया जा रहा है ताकि मीडिया चुप रहे। कई पत्रकारों ने यह भी बताया कि उन्हें व्यक्तिगत रूप से धमकी भरे संदेश और कॉल मिल रहे हैं, जिनमें साफ तौर पर कहा जा रहा है कि अगर उन्होंने लिखना बंद नहीं किया तो अंजाम भुगतना पड़ेगा।

चुनाव से पहले बढ़ता दबाव, प्रेस स्वतंत्रता पर खतरा

विशेषज्ञों का मानना है कि चुनाव से पहले मीडिया पर इस तरह का दबाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए बेहद खतरनाक संकेत है। बांग्लादेश में पत्रकारों पर हो रहे हमले यह दर्शाते हैं कि असहमति की आवाजों को डराकर चुप कराने की कोशिश की जा रही है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इस घटना को लेकर चिंता जताई जा रही है और प्रेस की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग उठ रही है। बांग्लादेशी पत्रकारों का साफ कहना है कि वे केवल अपना काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें उसी काम की सजा दी जा रही है। उनका सवाल है कि अगर सच लिखने की कीमत जान से मारने की धमकी है, तो लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भविष्य क्या होगा।