August 2, 2025 4:29 AM

रूसी हिस्सेदारी वाली नायरा एनर्जी पर पश्चिमी पाबंदियों का असर: माइक्रोसॉफ्ट ने फिर शुरू की IT सेवाएं, भारत ने कहा- ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि

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रूसी तेल पर पश्चिमी पाबंदियों से नायरा एनर्जी पर असर, भारत बोला- ऊर्जा सुरक्षा पहले

नई दिल्ली।
भारत की तीसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी कंपनी नायरा एनर्जी पर यूरोपियन यूनियन (EU) और अमेरिका की पाबंदियों का असर साफ दिखने लगा है। हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट ने नायरा की ईमेल और संचार सेवाएं रोक दी थीं, जिसे अब फिर से बहाल कर दिया गया है। माइक्रोसॉफ्ट का यह कदम EU के रूस पर नए प्रतिबंधों के बाद सामने आया, क्योंकि नायरा एनर्जी में रूस की सरकारी कंपनी रोजनेफ्ट समेत अन्य रूसी निवेशकों की करीब 49.13% हिस्सेदारी है। EU का दावा है कि इससे रूस को यूक्रेन युद्ध में आर्थिक मदद मिल रही है।

अचानक बंद की गई थी माइक्रोसॉफ्ट की सेवाएं

18 जुलाई 2025 को EU ने यूक्रेन युद्ध को लेकर रूस पर नए आर्थिक प्रतिबंध लागू किए। इसके ठीक बाद 22 जुलाई से माइक्रोसॉफ्ट ने नायरा एनर्जी की ईमेल (Outlook) और टीम मैसेजिंग सेवाएं अचानक बंद कर दीं। इस निर्णय के खिलाफ नायरा एनर्जी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए इसे एकतरफा और अनुचित बताया। कंपनी ने कहा कि बिना किसी पूर्व सूचना के सेवाएं बंद करना व्यापारिक स्वतंत्रता पर आघात है।

वैकल्पिक समाधान के तौर पर भारतीय सेवा प्रदाता से जोड़ा गया संपर्क

माइक्रोसॉफ्ट की सेवाएं बंद होने के बाद, नायरा एनर्जी ने तत्काल भारतीय IT फर्म रेडिफ डॉट कॉम की सेवाएं लेना शुरू किया ताकि दैनिक कार्यों में रुकावट न आए। कंपनी ने इसे राष्ट्रीय हित से जुड़ा मामला बताते हुए विदेशी तकनीकी निर्भरता पर पुनर्विचार की जरूरत भी जताई।

प्रतिबंध क्यों लगे? EU का तर्क

EU ने अपने प्रतिबंधों के तहत रूसी क्रूड ऑयल के प्राइस कैप को $60 प्रति बैरल

से घटाकर $47.6 कर दिया। साथ ही रूस से रिफाइंड उत्पाद जैसे पेट्रोल, डीजल और जेट फ्यूल के आयात पर भी रोक लगा दी। चूंकि नायरा एनर्जी रूसी तेल को रिफाइन कर कई देशों को निर्यात करती है, इसलिए EU का मानना है कि इससे रूस को अप्रत्यक्ष आर्थिक लाभ मिल रहा है।

नायरा की अहम भूमिका: देश की तीसरी सबसे बड़ी रिफाइनरी

नायरा एनर्जी गुजरात के वडिनार में स्थित है और इसकी दैनिक रिफाइनिंग क्षमता 4 लाख बैरल है। यह देश की कुल रिफाइनिंग क्षमता का लगभग 8% संभालती है। साथ ही कंपनी के देशभर में 6,750 से अधिक पेट्रोल पंप हैं। ऐसे में इसके परिचालन पर किसी भी तरह का अंतरराष्ट्रीय असर भारत की ऊर्जा व्यवस्था को भी प्रभावित कर सकता है।

भारत का जवाब: ‘ऊर्जा सुरक्षा सर्वोपरि’

विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट कहा कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा सबसे बड़ी प्राथमिकता है। 22 जुलाई को दिए बयान में उन्होंने कहा कि भारत अपने 1.4 अरब नागरिकों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेगा, भले ही पश्चिमी देशों का कोई भी दबाव हो। उनका यह बयान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रस्तावित ब्रिटेन यात्रा से ठीक पहले आया, जो कि कूटनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम माना जा रहा है।

अमेरिकी दबाव भी बढ़ा

केवल EU ही नहीं, अमेरिका भी लगातार भारत, चीन और ब्राजील जैसे BRICS देशों पर दबाव बना रहा है कि वे रूस से तेल आयात बंद करें। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और सीनेटर लिंडसे ग्राहम ने यहां तक कह दिया कि यदि ये देश रूसी तेल खरीदना नहीं रोकते, तो अमेरिका इन पर 100% से 500% तक टैरिफ लगा सकता है।

सीनेटर ग्राहम ने फॉक्स न्यूज पर कहा, “अगर ये देश रूस से सस्ता तेल खरीदते रहेंगे, जिससे युद्ध चलता रहे, तो हम इनकी अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर देंगे। ये खून के पैसों जैसा है।”

भारत के पेट्रोलियम निर्यात पर भी संकट

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, भारत के EU को पेट्रोलियम उत्पादों के 5 अरब डॉलर के निर्यात पर संकट मंडरा रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में यह निर्यात $19.2 अरब था, जो 2024-25 में 27.1% घटकर $15 अरब रह गया। यदि पाबंदियां जारी रहती हैं, तो भारत के पेट्रोलियम व्यापार पर गहरा असर पड़ सकता है।

रूस से तेल आयात में बढ़ोतरी: भारत की रणनीतिक मजबूरी?

यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले रूस से भारत का क्रूड ऑयल आयात 1% से भी कम था, जो अब 40-44% के बीच हो गया है। वित्त वर्ष 2025 में भारत ने रूस से $50.3 अरब का तेल खरीदा, जो उसके कुल तेल आयात ($143.1 अरब) का एक-तिहाई से भी ज्यादा है। यह स्थिति बताती है कि रूस से सस्ते दरों पर तेल मिलना भारत के लिए महंगाई पर नियंत्रण का एक प्रमुख जरिया बन चुका है।


नायरा एनर्जी पर आईटी सेवाएं रोकना और फिर से बहाल करना सिर्फ एक तकनीकी मामला नहीं, बल्कि भूराजनीतिक दबाव और राष्ट्रीय हितों के टकराव की बड़ी तस्वीर है। भारत को जहां अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना है, वहीं अंतरराष्ट्रीय मंच पर दबाव से भी जूझना है। यह स्थिति आने वाले समय में भारत की विदेश नीति, व्यापार नीति और तकनीकी आत्मनिर्भरता के लिए एक अहम मोड़ साबित हो सकती है।



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