2015 में सुनाई गई थी मौत और आजीवन कारावास की सजा, कोर्ट ने कहा– संदेह से परे साबित नहीं हुआ अपराध
मुंबई ट्रेन धमाका केस में सभी आरोपी बरी, महाराष्ट्र सरकार जाएगी सुप्रीम कोर्ट
मुंबई। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए श्रृंखलाबद्ध बम धमाकों के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निचली अदालत के निर्णय को पलट दिया और सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि आरोपियों ने अपराध किया। अब महाराष्ट्र सरकार इस निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी।
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2015 में सुनाई गई थी सजा, पांच को फांसी और सात को उम्रकैद
विशेष मकोका कोर्ट ने अक्टूबर 2015 में मामले की सुनवाई पूरी कर पांच आरोपियों को फांसी और सात को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। मौत की सजा पाने वालों में कमाल अंसारी, मोहम्मद फैसल, एहतेशाम सिद्दीकी, नवीद हुसैन खान और आसिफ खान शामिल थे। बाद में इन सज़ाओं की पुष्टि के लिए राज्य सरकार ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। वहीं, दोषियों ने भी सजा के खिलाफ अपील की थी।
उच्च न्यायालय का फैसला: पर्याप्त साक्ष्य नहीं
मुख्य न्यायाधीश अनिल किलोर और न्यायाधीश श्याम चांडक की विशेष पीठ ने फैसले में कहा कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में विफल रहा और साक्ष्य संदेह से परे नहीं थे। कोर्ट ने इस आधार पर सभी आरोपियों को बरी कर दिया।
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राज्य सरकार जाएगी सर्वोच्च न्यायालय
इस निर्णय के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने एक आधिकारिक बयान में स्पष्ट किया कि राज्य सरकार इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि यह घटना राज्य के इतिहास का सबसे भयावह आतंकी हमला था और न्याय के लिए सरकार हरसंभव कदम उठाएगी।
11 मिनट में 7 धमाके, 200 से अधिक की मौत
गौरतलब है कि 11 जुलाई 2006 की शाम मुंबई की पश्चिम रेलवे की लोकल ट्रेनों के सात डिब्बों में मात्र 11 मिनट में प्रेशर कुकर बमों से धमाके हुए थे। इन धमाकों में 209 लोग मारे गए थे और 800 से अधिक घायल हुए थे। बोरीवली, माहिम, माटुंगा रोड जैसे स्टेशनों पर शवों के ढेर लग गए थे। यह हादसा मुंबई के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज है।
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वर्षों तक चला मुकदमा
इस मामले में कुल 13 लोगों पर मुकदमा चला, जिनमें से एक आरोपी की 2021 में कोविड-19 के दौरान मृत्यु हो गई थी। आठ साल से अधिक चली सुनवाई के बाद सेशन कोर्ट ने 2015 में फैसला सुनाया था। विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे ने राज्य की ओर से इस मामले में पैरवी की।
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट में यह मामला किस दिशा में बढ़ता है, और क्या पीड़ितों को न्याय मिल सकेगा।
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