July 30, 2025 4:37 AM

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: 12 आरोपितों की रिहाई के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंची महाराष्ट्र सरकार, 24 जुलाई को होगी सुनवाई

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मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: 12 आरोपितों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार

नई दिल्ली।
2006 के मुंबई लोकल ट्रेन विस्फोट मामले में 12 आरोपितों को बरी किए जाने के बॉम्बे उच्च न्यायालय के निर्णय को महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी है। यह मामला अब 24 जुलाई को सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ इस गहन और संवेदनशील मामले पर सुनवाई करेगी।

सॉलिसिटर जनरल ने की तत्काल सुनवाई की मांग

महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से मामले की तत्काल सुनवाई की मांग करते हुए कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और न्याय प्रणाली की प्रतिष्ठा से जुड़ा अत्यंत गंभीर मामला है। इसके बाद अदालत ने इसे गुरुवार, 24 जुलाई के लिए सूचीबद्ध किया।

उच्च न्यायालय ने क्यों किया आरोपितों को बरी?

21 जुलाई 2025 को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने इस बहुचर्चित केस में 12 आरोपितों को बरी कर दिया था। अदालत का कहना था कि आरोप सिद्ध करने के लिए पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं।
इससे पहले, सितंबर 2015 में विशेष मकोका अदालत ने इस मामले में 5 आरोपितों को मृत्युदंड और 7 को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इन सभी ने उच्च न्यायालय में इस निर्णय को चुनौती दी थी, जिस पर उच्च न्यायालय ने सबूतों की कमी के आधार पर सभी को रिहा कर दिया।

2006 का वो भयावह हमला

11 जुलाई 2006 को मुंबई की भीड़भरी लोकल ट्रेनों में सिलसिलेवार 7 बम धमाके हुए थे। इन धमाकों में 189 लोगों की जान गई और 820 से अधिक यात्री गंभीर रूप से घायल हुए। यह हमला शहर के सार्वजनिक परिवहन तंत्र पर सबसे बड़ा आतंकी हमला माना जाता है, जिसने न केवल मुंबई बल्कि पूरे देश को हिला दिया था।

उच्च न्यायालय के फैसले पर उठे सवाल

उच्च न्यायालय के फैसले के बाद देशभर में न्यायिक प्रणाली की भूमिका और जांच एजेंसियों की कार्यशैली पर चर्चा शुरू हो गई थी। कई विशेषज्ञों और पीड़ितों के परिवारों ने इस निर्णय पर नाराजगी जताई और इसे “न्याय में चूक” करार दिया।

अब सर्वोच्च न्यायालय से उम्मीद

अब जब महाराष्ट्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की है, तो पूरे देश की निगाहें इस सुनवाई पर टिकी हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट उच्च न्यायालय के फैसले को पलटता है, तो यह दोषियों को पुनः न्याय के कटघरे में लाने की संभावना को जन्म देगा।

क्या कहती है न्याय व्यवस्था?

कानून विशेषज्ञों के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय अब इस बात पर विचार करेगा कि क्या उच्च न्यायालय ने साक्ष्यों की सही व्याख्या की या नहीं। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि महत्वपूर्ण साक्ष्यों की अनदेखी हुई, तो मामला पुनः निचली अदालत में पुनः परीक्षण के लिए भेजा जा सकता है।



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