संस्कृत शिक्षक भर्ती मामला: मप्र सरकार, PEB और चयन मंडल को नोटिस जारी
जबलपुर।
मध्यप्रदेश में संस्कृत माध्यमिक व प्राथमिक शिक्षक भर्ती को लेकर उच्च न्यायालय ने बड़ा निर्देश जारी किया है। भर्ती प्रक्रिया के नियमों में परीक्षा के बाद अचानक किए गए बदलावों पर गंभीर रुख अपनाते हुए हाईकोर्ट ने कहा है कि सरकारी नियुक्तियां याचिका के अंतिम निर्णय के अधीन रहेंगी। न्यायालय ने राज्य सरकार सहित लोक शिक्षण संचालनालय, प्रोफेशनल एग्जामिनेशन बोर्ड (PEB) और कर्मचारी चयन मंडल को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का आदेश भी दिया है। अगली सुनवाई इसी अवधि के बाद तय की जाएगी।
याचिका में भर्ती पात्रता नियमों में बदलाव को दी गई चुनौती
यह निर्देश प्रदीप कुमार पांडे बनाम मध्यप्रदेश राज्य व अन्य मामले में पारित किया गया है। याचिकाकर्ता ने माध्यमिक शिक्षक (संस्कृत) पद की पात्रता में भर्ती प्रक्रिया के बीच किए गए बदलावों को संविधान के अनुच्छेद-14 का उल्लंघन बताया है।
एडवोकेट आर्यन उरमलिया द्वारा प्रस्तुत तर्कों में कहा गया कि “सरकार ने 2023 में पात्रता परीक्षा (TET) आयोजित की, जिसमें याचिकाकर्ता ने पूर्व निर्धारित पात्रता के अनुसार परीक्षा उत्तीर्ण की। लेकिन 2024 में अचानक नया परीक्षा संचालन मैनुअल लाकर पात्रता बदल दी गई। यह न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि समानता के अधिकार का सीधा उल्लंघन है।”
क्या था पहले और अब क्या बदला गया?
- 2018 के नियमों के अनुसार: माध्यमिक शिक्षक (संस्कृत) पद के लिए शास्त्री उपाधि (द्वितीय श्रेणी), संस्कृत साहित्य या व्याकरण के साथ अनिवार्य थी।
- 2024 के संशोधन में: अब नए मैनुअल के तहत उम्मीदवार को संस्कृत साहित्य को तीन वर्षों तक मुख्य विषय के रूप में पढ़ना अनिवार्य कर दिया गया।
इस बदलाव के चलते पहले से योग्य माने जा रहे अनेक उम्मीदवार अचानक अयोग्य घोषित हो गए, जिससे भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और अभ्यर्थियों के अधिकारों पर प्रश्न उठ खड़े हुए हैं।
न्यायालय का स्पष्ट रुख: पारदर्शिता और अधिकारों का सम्मान जरूरी
जस्टिस डीडी बंसल की एकल पीठ ने मामले की गंभीरता को देखते हुए नियुक्तियों को अंतिम निर्णय तक रोकने जैसा निर्देश देते हुए सरकार को स्पष्ट किया कि जब तक इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं हो जाता, तब तक कोई नियुक्ति न की जाए। साथ ही सभी संबंधित पक्षों से विस्तृत जवाब तलब किया गया है।
भविष्य की भर्तियों पर असर संभव
यह मामला केवल संस्कृत शिक्षक भर्ती तक सीमित न होकर, पूरे भर्ती तंत्र की पारदर्शिता, प्रक्रियागत न्याय और अभ्यर्थियों के संवैधानिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है। यदि याचिकाकर्ता का पक्ष न्यायालय में साबित होता है, तो इससे प्रदेश की अन्य भर्ती प्रक्रियाओं में भी समान परिस्थितियों में हस्तक्षेप की संभावनाएं खुल सकती हैं।
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