मध्य प्रदेश में ओबीसी आरक्षण पर सर्वदलीय सहमति, सुप्रीम कोर्ट में 22 सितंबर से होगी रोजाना सुनवाई

भोपाल: मध्य प्रदेश में ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के मुद्दे पर गुरुवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निवास पर सर्वदलीय बैठक संपन्न हुई। इस बैठक में भाजपा, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी समेत सभी दलों ने एक स्वर में ओबीसी वर्ग को उनका हक दिलाने का संकल्प लिया। मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि 22 सितंबर से सर्वोच्च न्यायालय इस मामले की रोजाना सुनवाई करेगा और उससे पहले 10 सितंबर को सभी वकीलों को बुलाकर साझा रणनीति तय की जाएगी।

बैठक में बनी सर्वसम्मति

बैठक के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि प्रदेश के सभी राजनीतिक दल इस बात पर सहमत हैं कि ओबीसी वर्ग को 27 प्रतिशत आरक्षण मिलना चाहिए। विधानसभा में भी इस विषय पर पहले सहमति बनी थी। उन्होंने कहा कि अदालत में फिलहाल अलग-अलग वकील बहस कर रहे हैं, लेकिन अब जरूरत है कि सभी वकील मिलकर एक साझा पक्ष रखें ताकि राज्य का पक्ष और मजबूत हो।

मुख्यमंत्री ने बताया कि सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से संकल्प लिया गया है कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर इस मामले को आगे बढ़ाएंगे। फिलहाल ओबीसी वर्ग को 14 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिल रहा है, जबकि शेष 13 प्रतिशत पद कोर्ट के निर्णय तक रोके गए हैं। सरकार की इच्छा है कि शीघ्र ही अंतिम निर्णय आए और सभी उम्मीदवारों को लाभ मिल सके।

कांग्रेस का रुख

बैठक के बाद कांग्रेस नेताओं ने इसे अपनी जीत बताया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी, नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार, पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव समेत अन्य नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि यह लड़ाई कांग्रेस ने लड़ी है। उमंग सिंघार ने कहा, “देर आए, दुरुस्त आए। सरकार ने गलती मानी और सुधारने का प्रयास किया। लेकिन सरकार की करनी और कथनी में अंतर है। कांग्रेस के बनाए घर में नारियल फोड़कर श्रेय लेना चाहते हैं। किसी के हक की बात पर राजनीति नहीं होनी चाहिए।”

आप और अन्य दलों की प्रतिक्रिया

आम आदमी पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रानी अग्रवाल ने कहा कि 27 प्रतिशत आरक्षण पहले ही लागू होना चाहिए था। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकार होने के बावजूद आरक्षण को लेकर जानबूझकर देरी की जा रही है। उन्होंने कहा, “अगर सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है तो केवल औपचारिकता न हो, बल्कि आरक्षण का रास्ता भी निकले।”

publive-image

कमलनाथ का हमला

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सर्वदलीय बैठक को लेकर सरकार पर निशाना साधा। उन्होंने एक्स पर लिखा कि “प्रदेश सरकार बार-बार अपने ही बुने जाल में फंस रही है। एमपीपीएससी ने 18 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दायर शपथ पत्र में कहा था कि 27 प्रतिशत आरक्षण की मांग करने वाली याचिकाएं सुनवाई योग्य नहीं हैं। अब वही आयोग माफी मांगकर वह एफिडेविट वापस ले रहा है। यह मानना कि आयोग का रुख सरकार से अलग है, एक मजाक है।”

नाथ ने कहा कि कांग्रेस सरकार ने प्रक्रियाएं पूरी कर कानून बनाकर 27 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था और सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट ने कई बार स्पष्ट कर दिया है कि इस पर कोई रोक नहीं है। फिर भी वर्तमान सरकार नई पेचीदगियों के जरिए आरक्षण की प्रक्रिया को उलझा रही है।

सुप्रीम कोर्ट में लंबित मामला

मध्य प्रदेश में 2019 से 27 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण का कानून लागू है, लेकिन कोर्ट के आदेश के चलते फिलहाल केवल 14 प्रतिशत पदों पर नियुक्ति दी जा रही है। शेष 13 प्रतिशत पदों को रोक दिया गया है। ओबीसी वर्ग के छात्रों और संगठनों ने इसके खिलाफ याचिकाएं दाखिल की थीं। यह मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में विचाराधीन है, जहां 22 सितंबर से रोजाना सुनवाई होगी।

इस सर्वदलीय बैठक ने साफ कर दिया है कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सभी राजनीतिक दल एकमत हैं। अब नजरें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं, जिससे लाखों युवाओं के भविष्य का रास्ता साफ हो सकेगा।