नेपाल में लोकतंत्र और राजतंत्र को लेकर लोग आमने-सामने आ गए हैं। वहाँ एक बड़ी जनसंख्या का दो दशक के भीतर ही लोकतांत्रिक व्यवस्था से मोहभंग हो गया है। दरअसल, जिन उम्मीदों के साथ नेपाल की जनता राजशाही को हटाकर लोकतंत्र लेकर आई थी, वे उम्मीदें टूट गईं। कहना होगा कि नेपाल के लोकतंत्र को कम्युनिस्ट पार्टियों ने हड़प लिया। कम्युनिस्ट सरकारों ने नेपाल की संस्कृति के विरुद्ध आचरण किया। कम्युनिस्ट सरकारों ने चीन की गोद में बैठने की कोशिश की। नेपाल के हितों का संरक्षण उस प्रकार नहीं हो सका, जैसा कि जनता को उम्मीद थी। जनता के एक हिस्से को लगने लगा है कि इससे अच्छी तो राजशाही ही थी। इसलिए नेपाल में अब एक बड़ा आंदोलन राजशाही को वापस लाने के लिए खड़ा हो गया है। चिंताजनक बात यह है कि लोकतंत्र और राजशाही समर्थक आमने-सामने हैं और इसका नुकसान पूरे देश को हिंसा एवं अस्थिरता के रूप में भुगतना पड़ रहा है। नेपाल में इस समय विभाजन साफ तौर पर देखा जा सकता है। एक तरफ तमाम लोकतंत्र समर्थक दल हैं और दूसरी तरफ राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी। 2008 में जब व्यापक जन आंदोलन के बाद संविधान सभा का गठन किया गया और राजा के शासन का अंत हुआ, उसके बाद से राजशाही समर्थक कभी इतने मजबूत और आक्रामक नहीं रहे। बीते शुक्रवार को जिस तरह राजधानी काठमांडू में विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो उठा और उसमें जानें गई, वह स्थिति की गंभीरता को दिखाता है। नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र बीर बिक्रम शाह ने भी पिछले कुछ समय से अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। इसके पहले तक वह सार्वजनिक रूप से बहुत कम दिखा करते थे। लेकिन, 9 मार्च को जब वह पोखरा से काठमांडू पहुंचे, तो उनके स्वागत में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो गई। इसके बाद भी वह कुछ मौकों पर जनता के बीच आए और लोगों ने उन्हें समर्थन दिया। यह प्रश्न उठ रहा है कि आखिर नेपाल की जनता को क्यों फिर से अपने पूर्व राजा में उम्मीद दिखने लगी है? इसका जवाब है राजनीतिक दलों की विफलता। गणतंत्र लागू होने के बाद से यह देश 13 प्रधानमंत्री देख चुका है। किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया और गठबंधन की राजनीति ने कभी देश को स्थिरता नहीं दी। नेपाल की जनता का गुस्सा भ्रष्टाचार को लेकर भी है। कोई भी ऐसी पार्टी नहीं रही, जिसे भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना न करना पड़ा हो। इसी दौरान, नेपाल की अर्थव्यवस्था लगातार डांवाडोल होती चली गई। विश्व बैंक की 2024 की रिपोर्ट कहती है कि सरकार का बजट सही तरीके से खर्च नहीं हो पा रहा है, और यह समस्या 2018 से चली आ रही है। टैक्स कम मिल रहा है और विकास कार्यों पर खर्च बहुत धीमा है। वित्तीय वर्ष 24 में सुधार के बावजूद जीडीपी ग्रोथ 3.9 है। हालांकि, वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में राजशाही की अपेक्षा लोकतंत्र ही अधिक व्यवहारिक शासन व्यवस्था है। यह नेपाल की जनता को ही तय करना है कि उन्हें क्या चाहिए- राजशाही या लोकतंत्र?
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