नागपुर में ‘धर्म जागरण न्यास’ के कार्यालय का उद्घाटन, कहा – विविधता को स्वीकार करना ही सच्चा धर्म
धर्म कर्तव्य है, आडंबर नहीं: मोहन भागवत का बड़ा बयान नागपुर में
नागपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने बुधवार को नागपुर में एक अहम संदेश देते हुए कहा कि धर्म केवल पूजा-पद्धति या अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मानवता, जिम्मेदारी और कर्तव्यबोध का गहन सिद्धांत है। वे नागपुर में ‘धर्म जागरण न्यास’ के नवनिर्मित कार्यालय के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने धर्म की व्यापकता, उसकी सार्वकालिकता और सामाजिक समरसता में उसकी भूमिका को रेखांकित किया।
🌿 “धर्म परम सत्य है, कर्तव्यबोध का नाम है”
डॉ. भागवत ने कहा कि धर्म कोई काल्पनिक अवधारणा नहीं, बल्कि जीवन को दिशा देने वाला शाश्वत सत्य है। उन्होंने कहा –
“धर्म वह शक्ति है, जो हमें संकट के समय भी साहस और विवेक से निर्णय लेने की क्षमता देती है। यदि आपकी धर्म के प्रति प्रतिबद्धता अडिग है, तो आप कभी भी परिस्थितियों के आगे हार नहीं मानेंगे।”
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे इतिहास में न केवल राजा-महाराजा, बल्कि आम जनों ने भी धर्म के लिए बलिदान दिए हैं, और यही हमारी सांस्कृतिक विरासत है।
Nagpur, Maharashtra: RSS Chief Mohan Bhagwat addresses the inauguration ceremony of the newly constructed office of Dharma Jagran Nyas, says, "Though we may appear separate in our actions, in essence, we are one…" pic.twitter.com/t8npQF6hM3
डॉ. भागवत ने कहा कि वर्तमान विश्व में एक ऐसे धर्म की आवश्यकता है, जो विविधताओं को आत्मसात करे, और हिंदू धर्म इस आदर्श का साक्षात उदाहरण है। उन्होंने कहा –
“हम सभी भिन्न हैं, लेकिन अलग नहीं हैं। धर्म हमें यह सिखाता है कि भिन्नता को अपनाएं, परंतु विभाजन न करें। हम सबमें एकत्व है, यही अंतिम सत्य है।”
उन्होंने आगे कहा कि धर्म एकात्मता, समरसता और सह-अस्तित्व का मार्ग प्रशस्त करता है, न कि टकराव का।
💡 “धर्म का वास्तविक अर्थ – कर्तव्यों की पूर्ति”
भागवत ने स्पष्ट किया कि धर्म का आशय केवल पूजा-अर्चना नहीं है, बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपने दायित्वों को निभाना ही सच्चा धर्म है।
पितृधर्म – माता-पिता के प्रति जिम्मेदारी
मातृधर्म – मातृत्व की मर्यादा
राजधर्म – सत्ता की जवाबदेही
प्रजाधर्म – नागरिक के कर्तव्य
उन्होंने कहा कि जैसे गुरुत्वाकर्षण एक अदृश्य शक्ति है, वैसे ही धर्म भी मानव जीवन में अव्यक्त रूप से कार्य करता है। जो इसका पालन करता है, वह समाज में सम्मान और स्थायित्व प्राप्त करता है, जबकि उल्लंघन करने वाला संकटों में घिरता है।
🎥 “‘छावा’ फिल्म के उदाहरण से बलिदान का स्मरण”
अपने वक्तव्य में डॉ. भागवत ने छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित हालिया फिल्म ‘छावा’ का भी उल्लेख किया और कहा –
“धर्म के लिए अपने प्राण देने वाले केवल शासक वर्ग के लोग नहीं थे, आम नागरिक भी धर्म रक्षा के लिए बलिदान देने से पीछे नहीं हटे।“
📣 संघ करेगा 1000 से अधिक कार्यक्रम, मोहन भागवत देंगे मार्गदर्शन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील अंबेकर ने जानकारी दी कि संघ अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर देशभर में 1000 से अधिक विशेष कार्यक्रम आयोजित करेगा।
‘सौ वर्ष की संघ यात्रा और नए क्षितिज’ शीर्षक से होने वाले इन आयोजनों में 138 से अधिक सामाजिक वर्गों और उपवर्गों को जोड़ा जाएगा।
प्रमुख कार्यक्रम दिल्ली, कोलकाता, मुंबई और बंगलुरू में होंगे, जिनमें डॉ. मोहन भागवत स्वयं मुख्य वक्ता होंगे।
दिल्ली कार्यक्रम में विदेशी राजनयिकों को भी आमंत्रित किया जाएगा।
कार्यक्रम के अंतिम दिन आमजन के प्रश्नों का उत्तर मोहन भागवत स्वयं देंगे।
इन आयोजनों में सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले भी शामिल होंगे।
🪔 धर्म से ही समाज में टिकाऊ शांति संभव
डॉ. मोहन भागवत का यह संबोधन धर्म की व्याख्या को केवल धार्मिक आडंबर से ऊपर उठाकर समाजिक कर्तव्यों और मानवीय मूल्यों से जोड़ता है। उन्होंने स्पष्ट किया कि धर्म वह सूत्र है, जो समाज को जोड़े रखता है और प्रत्येक नागरिक को अपने जीवन की दिशा तय करने में सहायक बनता है।
धर्म का सही पालन न केवल आत्मिक बल देता है, बल्कि सामाजिक संरचना को भी मजबूत बनाता है।
स्वदेश ज्योति के द्वारा | और भी दिलचस्प खबरें आपके लिए… सिर्फ़ स्वदेश ज्योति पर!