मणिपुर में राष्ट्रपति शासन 6 माह के लिए बढ़ा, राज्यसभा से प्रस्ताव पारित

नई दिल्ली। संसद के मानसून सत्र के दौरान मंगलवार को राज्यसभा ने मणिपुर में राष्ट्रपति शासन को आगामी छह महीने के लिए बढ़ाने का प्रस्ताव पारित कर दिया। यह प्रस्ताव पहले 30 जुलाई को लोकसभा से भी पारित हो चुका है। राज्य में शांति और स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से केंद्र सरकार ने यह निर्णय लिया है।

गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने सदन में यह प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि मणिपुर में हालात सामान्य हो रहे हैं, और ऐसे समय में प्रशासनिक स्थिरता बनाए रखने के लिए राष्ट्रपति शासन को जारी रखना आवश्यक है।

publive-image

राज्यसभा में प्रस्ताव पारित, विपक्ष का विरोध

मंगलवार को दोपहर 2:00 बजे के बाद राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हुई, जिसमें गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
हालांकि विपक्षी दलों ने इस मुद्दे पर सदन में नारेबाजी और हंगामा किया।

  • कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी को बोलने का अवसर दिया गया, लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
  • इसके बाद तृणमूल कांग्रेस की सांसद सुष्मिता देव ने नियम 259 के तहत बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण पर चर्चा की मांग की, जिससे सदन में शोरगुल बढ़ गया।
  • डीएमके सांसद त्रिची शिवा ने भी एसआईआर पर चर्चा कराने की मांग रखी।

विपक्षी हंगामे के बीच प्रस्ताव को चर्चा के बाद पारित कर दिया गया।


नित्यानंद राय ने कहा – “जातीय संघर्ष था, धार्मिक नहीं”

गृह राज्यमंत्री ने प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए कहा कि मणिपुर में हुई हिंसा उच्च न्यायालय के आरक्षण संबंधी आदेश के कुछ पहलुओं के कारण भड़की थी। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह संघर्ष जातीय था, धार्मिक नहीं।

  • पिछले आठ महीनों में केवल एक हिंसक घटना हुई है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हुई।
  • पिछले चार महीनों में कोई हिंसा नहीं हुई है, जिससे यह स्पष्ट है कि राज्य में शांति धीरे-धीरे लौट रही है।

उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 356ए के तहत यह प्रस्ताव लाया गया है और शांति प्रक्रिया बनाए रखने के लिए यह आवश्यक है कि राष्ट्रपति शासन को 6 महीने के लिए बढ़ाया जाए।

publive-image

राष्ट्रपति शासन की पृष्ठभूमि

  • 13 फरवरी 2025 को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था, जब मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
  • राष्ट्रपति शासन की अवधि 13 अगस्त 2025 को समाप्त होने जा रही थी।
  • चूंकि संविधान के तहत राष्ट्रपति शासन अधिकतम छह माह तक ही वैध रहता है, अतः उसे आगे बढ़ाने के लिए संसद की मंजूरी आवश्यक थी।
  • इसी क्रम में संसद के दोनों सदनों से यह प्रस्ताव पारित किया गया।

मणिपुर की स्थिति: राजनीतिक अस्थिरता से प्रशासनिक हस्तक्षेप तक

मणिपुर में वर्ष 2023 से ही जातीय संघर्ष और राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। कुकी और मैतेई समुदायों के बीच गहराते तनाव, और आरक्षण विवाद ने राज्य को उथल-पुथल में डाल दिया था।

  • इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्य में संवैधानिक संकट उत्पन्न हुआ, जिसके समाधान के रूप में केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन लागू किया।
  • राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद से राज्य में हिंसक घटनाएं कम हुई हैं, लेकिन विपक्ष इसे लोकतंत्र पर आघात मान रहा है।

विपक्ष की नाराज़गी: चर्चा से इनकार, प्रक्रियागत सवाल

राज्यसभा में प्रस्ताव के दौरान विपक्ष ने न केवल बहस से दूरी बनाई, बल्कि सरकार की मंशा पर भी सवाल उठाए।

  • कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ने अन्य मुद्दों पर चर्चा की मांग रखकर इस प्रस्ताव को नजरअंदाज किया।
  • विपक्षी दलों का मानना है कि केंद्र सरकार मणिपुर में लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गई सरकार बहाल करने में असफल रही है।

आगे क्या?

राष्ट्रपति शासन की यह बढ़ी हुई अवधि 13 फरवरी 2026 तक वैध रहेगी। इस दौरान केंद्र सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होगी कि:

  • राज्य में पूर्ण शांति और सामाजिक सौहार्द बहाल हो।
  • चुनावी प्रक्रिया की बहाली की रूपरेखा तैयार की जाए।
  • प्रशासनिक निर्णय स्थानीय हितों को ध्यान में रखते हुए पारदर्शिता से लिए जाएं।


मणिपुर में राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ने से यह स्पष्ट है कि राज्य में राजनीतिक स्थिरता अभी दूर है। जहां सरकार इसे शांति स्थापना की दिशा में उठाया गया कदम मान रही है, वहीं विपक्ष इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया की अनदेखी बता रहा है। अब देश की निगाहें इस पर रहेंगी कि आने वाले छह महीनों में मणिपुर कितनी दूर तक सामान्य स्थिति की ओर लौटता है।