August 1, 2025 1:59 AM

17 साल बाद आया मालेगांव ब्लास्ट केस का फैसला: सबूतों के अभाव में साध्वी प्रज्ञा समेत सभी 7 आरोपी बरी, पीड़ित पक्ष जाएगा हाईकोर्ट

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मालेगांव ब्लास्ट केस में साध्वी प्रज्ञा समेत सभी आरोपी बरी, पीड़ित पक्ष हाईकोर्ट जाएगा

मुंबई/नई दिल्ली। मालेगांव बम विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने ऐतिहासिक निर्णय देते हुए साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित समेत सातों आरोपियों को दोषमुक्त करार दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अभियोजन पक्ष आरोप साबित करने में असफल रहा है, जिसके चलते सभी आरोपियों को संदेह का लाभ दिया गया है।

यह फैसला उस बम धमाके के करीब 17 साल बाद आया है, जिसने महाराष्ट्र के मालेगांव शहर को दहला दिया था। 29 सितंबर 2008 की शाम को एक भीड़भाड़ वाले इलाके में हुए इस धमाके में 6 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 100 से ज्यादा लोग घायल हुए थे।


अदालत का तर्क: “सबूत नहीं, केवल संदेह”

एनआईए की विशेष अदालत के न्यायाधीश एके लाहोटी ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। कोर्ट के अनुसार:

  • यह साबित नहीं हो सका कि विस्फोटक मोटरसाइकिल में रखा गया था।
  • मोटरसाइकिल के स्वामित्व को लेकर यह सिद्ध नहीं हो पाया कि वह साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की ही थी।
  • कोर्ट ने यह भी कहा कि कर्नल प्रसाद पुरोहित द्वारा बम बनाने या साजिश रचने का कोई पुख्ता प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया।

न्यायालय ने इस आधार पर कहा कि जब तक अभियोजन पक्ष संदेह से परे कोई ठोस प्रमाण नहीं दे पाता, तब तक किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।


कौन थे आरोपी?

इस केस में कुल 7 मुख्य आरोपी थे:

  1. साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर – पूर्व भाजपा सांसद
  2. कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित – भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी
  3. रमेश उपाध्याय
  4. अजय राहिरकर
  5. सुधाकर चतुर्वेदी
  6. समीर कुलकर्णी
  7. सुधाकर धर द्विवेदी

इन सभी पर आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता, आपराधिक षड्यंत्र, हत्या और अन्य गंभीर धाराओं के अंतर्गत आरोप लगाए गए थे।


पीड़ित पक्ष की नाराज़गी, हाईकोर्ट में अपील की तैयारी

विस्फोट में मारे गए लोगों के परिजनों और पीड़ितों के वकील शाहिद नवीन अंसारी ने फैसले पर असहमति जताते हुए कहा कि एनआईए, सरकार और जांच एजेंसियां पूरी तरह से विफल रही हैं। उन्होंने कहा, “हम इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती देंगे। यह सिर्फ पीड़ितों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश के न्यायिक तंत्र की साख का मामला है।”


17 साल का लंबा सफर: 3 एजेंसियां, 4 जज, कई मोड़

इस केस ने भारतीय न्याय व्यवस्था और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली को लेकर कई सवाल खड़े किए। मामले की पड़ताल में जिन प्रमुख बिंदुओं पर ध्यान दिया गया:

  • शुरुआती जांच महाराष्ट्र एटीएस (ATS) ने की थी, जिसने 2008 में ही आरोपियों को गिरफ्तार किया।
  • 2011 में मामला एनआईए (NIA) को सौंपा गया।
  • 2016 में एनआईए ने अंतिम चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कुछ आरोपों को कमजोर किया गया या हटाया गया।
  • इस केस में अब तक 3 जांच एजेंसियां (ATS, CBI, NIA) और 4 न्यायाधीश बदल चुके हैं।
  • अदालत को फैसला 8 मई 2025 को सुनाना था, लेकिन उसे 31 जुलाई 2025 तक सुरक्षित रखा गया था।

राजनीति और विचारधारा की बहस

मालेगांव ब्लास्ट केस केवल एक आतंकी घटना के तौर पर ही नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति में ‘हिंदू आतंकवाद’ शब्द के प्रवेश के रूप में भी जाना गया। साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी ने देशभर में तीखी बहस छेड़ दी थी।

भाजपा ने आरोप लगाया कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने राजनीतिक लाभ के लिए हिंदू संगठनों को बदनाम किया, वहीं कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने कहा कि कानून को अपना काम करने देना चाहिए।


न्याय या विफलता?

एनआईए कोर्ट का यह फैसला निश्चित ही एक मील का पत्थर है, लेकिन यह विवाद और असहमति से अछूता नहीं है। जहां एक ओर आरोपी पक्ष ने इसे न्याय की जीत बताया है, वहीं पीड़ित पक्ष इसे न्यायिक प्रक्रिया की विफलता मान रहा है। आने वाले समय में हाईकोर्ट और संभवतः सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला पहुंच सकता है।

मालेगांव धमाके में जिन लोगों की जान गई और जिन परिवारों ने वर्षों तक इंसाफ की उम्मीद लगाए रखी, उनके लिए यह फैसला मिश्रित भावनाओं का कारण बना है।



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