शिवकुमार विवेक
महाकुंभ के मेले में महेश्वर की एक साधारण किशोरी, जो माला बेचने आई थी, रातों-रात सुर्खियों में आ गई। यह किशोरी किसी खास मकसद से चर्चा में नहीं आई थी, लेकिन टीवी मीडिया ने उसे अनायास ही नायिका बना दिया। महाकुंभ जैसे भव्य आयोजन में, जहां हर चीज एक कहानी बनने की प्रतीक्षा कर रही होती है, मीडिया ने इस किशोरी को ‘भारत की मोनालिसा’ का खिताब दे दिया।
कैसे बना मेला की माला बेचने वाली ‘मोनालिसा’?
इस साधारण किशोरी की नीली आंखें, भोला-भाला चेहरा और मंद-मंद मुस्कान टीवी कैमरों में कैद हुई। मीडिया ने इसे सोलहवीं शताब्दी में लियोनार्दो द विंची द्वारा बनाई गई मोनालिसा की मुस्कान से तुलना कर दी। इस किशोरी को ‘भारत की मोनालिसा’ के तौर पर प्रचारित किया गया और दिनभर टीवी चैनलों ने उसे दिखाया। सोशल मीडिया ने इस ‘नई मोनालिसा’ की तस्वीरों और वीडियो को वायरल कर दिया।
स्टार खोजने की होड़
मीडिया महाकुंभ के इस विशाल आयोजन में स्टार चेहरों की तलाश में था। उन्होंने पहले एक कथित ‘आईआईटियन बाबा’ को खोजा, जो बाद में गायब हो गया। फिर भोपाल की निशा रिछारिया को ‘सौंदर्य साम्राज्ञी साध्वी’ के रूप में पेश किया, जो खुद अपनी कहानी के उलझनों में फंस गईं। इसके बाद, इस किशोरी को एक नई सनसनी के रूप में पेश किया गया।
मीडिया की अतिक्रिया
इस माला बेचने वाली किशोरी के लिए यह सब अप्रत्याशित था। वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए महाकुंभ में आई थी और अपनी मेहनत से बनाई मालाएं बेच रही थी। लेकिन मीडिया ने उसकी मेहनत को दरकिनार कर उसके सौंदर्य को ‘माल’ के रूप में बेच दिया। न तो उसकी मालाएं बिकीं और न ही उसकी मेहनत का सही मोल मिला। उसकी दुकान ठप पड़ गई, जबकि मीडिया ने उसकी मुस्कान और भोलेपन को भुनाकर अपनी दुकान चमका ली।
श्रद्धालुओं की नजर में ‘मोनालिसा’
महाकुंभ में मौजूद श्रद्धालुओं ने इस किशोरी की शालीनता और शांत स्वभाव की सराहना की। एक श्रद्धालु ने कहा कि उनकी शालीनता ने उन्हें सबसे अलग बना दिया। लेकिन मीडिया ने इस शालीनता को बेचने की बजाय इसे ‘मोनालिसा’ के भोले सौंदर्य के रूप में पेश किया।
वायरल वीडियो और जवाब
इस किशोरी के कुछ वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गए, जहां उसकी सादगी और संस्कार की झलक देखने को मिली। एक क्लिप में, जब उससे शादी के बारे में पूछा गया, तो उसने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं उनमें से किसी को क्यों पसंद करूँगी? वे सभी मेरे भाई हैं।” यह जवाब उसकी मासूमियत और संस्कारों का प्रतीक बना। उसने अपने विवाह के निर्णय में माता-पिता की पसंद पर विश्वास जताया, जिसने दर्शकों को गहराई से प्रभावित किया।
मीडिया का हस्तक्षेप कहां तक उचित?
मीडिया ने इस साधारण ग्रामीण किशोरी के जीवन में एक असहज हस्तक्षेप किया। इस किशोरी के लिए यह अनुभव जितना अप्रत्याशित था, उतना ही उसके जीवन को प्रभावित करने वाला भी। सवाल उठता है कि क्या मीडिया को किसी के निजी जीवन में इस हद तक हस्तक्षेप करना चाहिए? क्या किसी साधारण व्यक्ति को स्टार बना देना या उसके भोलेपन का व्यावसायिक लाभ उठाना उचित है?
महाकुंभ की इस ‘मोनालिसा’ की कहानी ने यह सवाल खड़ा किया है कि मीडिया की प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए। क्या मीडिया को किसी की मेहनत और व्यक्तित्व को सही रूप में प्रस्तुत करना चाहिए या केवल टीआरपी बढ़ाने के लिए उसके सौंदर्य और मासूमियत का उपयोग करना चाहिए? इस घटना ने न केवल मीडिया की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी दिखाया है कि सादगी और संस्कार का मूल्य आज भी लोगों के दिलों में गहराई तक बसा हुआ है।