July 14, 2025 10:33 PM

10 साल बाद चांदी की नई पालकी में निकले मनमहेश, उज्जैन में महाकाल की पहली सवारी में उमड़ा आस्था का सैलाब

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10 साल बाद चांदी की पालकी में निकले महाकाल, पहली सवारी में उमड़ा जनसैलाब

उज्जैन।
श्रावण मास के पहले सोमवार को उज्जैन में भगवान महाकाल की पहली सवारी भव्य रूप में निकली। इस बार यह सवारी विशेष इसलिए रही क्योंकि भगवान महाकाल 10 वर्षों बाद नई चांदी की पालकी में मनमहेश स्वरूप में नगर भ्रमण पर निकले। यह सवारी शाम 4 बजे महाकाल मंदिर से शुरू होकर करीब साढ़े तीन घंटे में 5 किलोमीटर लंबा रास्ता तय करते हुए शाम 7:30 बजे मंदिर वापस लौटी।

🌿 महाकाल के दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब

देशभर से उमड़े श्रद्धालुओं की आस्था ने मानो उज्जैन की सड़कों को गंगा-सा पवित्र बना दिया। करीब 1.5 लाख से अधिक भक्तों ने बाबा महाकाल के दिव्य रूप के दर्शन किए। लोग घंटों कतारों में खड़े रहे, जयकारों और शंखनाद से नगर का वातावरण शिवमय हो गया।

🌟 नई पालकी में सवार हुए मनमहेश

इस बार की सवारी की सबसे खास बात रही नई चांदी की पालकी, जो करीब 10 साल बाद पहली बार शामिल की गई। यह पालकी नवंबर 2023 में छत्तीसगढ़ के एक गुप्तदानदाता द्वारा मंदिर को भेंट की गई थी। महाकाल मंदिर प्रशासन ने इस पालकी को भक्तों की आस्था का प्रतीक बताते हुए इसे सवारी में सम्मिलित किया।

🛕 पूजन और शास्त्रसम्मत आयोजन

सवारी के प्रारंभ से पहले सभा मंडप में भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना की गई। शाम ठीक 4 बजे भगवान को मनमहेश स्वरूप में पालकी में विराजमान कर नगर भ्रमण के लिए निकाला गया। सवारी रामघाट पहुंची, जहां मंत्री तुलसी सिलावट और प्रभारी मंत्री गौतम टेटवाल ने पूजन-अर्चन व आरती की। वहां 500 से अधिक वेदपाठी बटुकों ने सस्वर वेदपाठ कर भगवान महाकाल का स्वागत किया।

🎶 लोककलाओं और जनजातीय दलों ने बढ़ाया भव्यता का स्तर

सवारी के मार्ग में आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक रंग भी नजर आए। 14 लोक व जनजातीय दलों ने विभिन्न स्थानों पर स्वागत किया। इनमें सीधी का घसिया बाजा, हरदा का ढांडल नृत्य दल, और सिवनी का गुन्नूरसाई नृत्य दल प्रमुख रहे। इन दलों की प्रस्तुतियों ने श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।


📸 भाव और भक्ति का अद्वितीय संगम
महाकाल की यह पहली सवारी न सिर्फ धार्मिक आस्था का परिचायक थी, बल्कि यह उज्जैन की सांस्कृतिक पहचान और शिवभक्तों की अटूट श्रद्धा का जीवंत चित्र भी बनी। चांदी की पालकी में मनमहेश रूप में विराजित बाबा महाकाल की एक झलक पाने के लिए उमड़ी भीड़ इस बात का प्रमाण थी कि यह परंपरा आज भी उतनी ही जीवंत है, जितनी सदियों पहले थी।



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